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  अन्य समाचार  यूपी के कारोबारी दो साल से निराश, अब त्योहारों से है आस
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यूपी के कारोबारी दो साल से निराश, अब त्योहारों से है आस

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —August 20, 2021 11:28 AM IST0
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लगातार दो साल कोरोना संकट में महीनों का लॉकडाउन हुआ, मांग चौपट हो गई और अब महंगाई का हथौड़ा चल गया है, जिससे उत्तर प्रदेश के कारोबारी हलाकान हैं। अब कारोबारियों को अक्टूबर में शुरू हो रहे त्योहारी सीजन और सहालग से ही धंधा सुधरने की आस है। उनका कहना है कि पिछले साल त्योहार और सहालग पूरी तरह फीके रहे, लेकिन इस साल प्रदेश से कोरोना का असर खत्म होते देखकर बहुत आस बंध गई है। अभी तो हालत यह है कि लखनऊ का चिकन हो या वाराणसी का सिल्क, मुरादाबाद का पीतल हो या कन्नौज का इत्र, सभी के सामने धंधे में बने रहने का संकट है। विदेश से मिलने वाले ऑर्डरों में भारी गिरावट आयी है और देसी बाजारों में भी माल की मांग खासी घटी है। सबसे बड़ा संकट यह है कि कच्चा माल महंगा होने के बाद भी दाम पुराने स्तर पर रखने पड़ रहे हैं। कारोबारियों का कहना है कि इन हालात में तैयार माल मंहगा है और दाम नहीं बढ़े तो धंधा बचाना मुश्किल हो जाएगा। उनका यह भी कहा है कि फिलहाल अपने मुनाफे पर चोट खाकर धंधा बचाने की मशक्कत हो रही है।
चिकनकारी पर दोहरी मार

सालाना 2,000 करोड़ रुपये कारोबार वाला चिकनकारी का धंधा सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। इस धंधे पर कोरोना महामारी की सबसे ज्यादा मार पड़ी थी। चिकन का धंधा गर्मी के मौसम में शबाब पर होता है और पिछले दो साल से उसी मौसम में लॉकडाउन लगता आ रहा है। होली से लेकर बारिश के मौसम तक चिकन के कपड़ों की मांग सबसे ज्यादा रहती है और ईद का त्योहार भी इन्हीं दिनों पड़ता है, जब चिकन का धंधा एकदम चरम पर पहुंच जाता है।
लखनऊ के प्रमुख चिकन कारोबारी और निर्यातक अजय खन्ना बताते हैं कि पिछले साल होली के बाद से बाजार की दशा जो बिगड़ी तो आज तक संभल नहीं पाई है। इस साल जनवरी-फरवरी में बाजार पूरी तरह खुले थे तो धंधा पटरी पर आता दिख रहा था मगर अप्रैल आते-आते फिर वही हाल हो गया। उनका कहना है कि दो साल से कच्चे माल की कीमत लगातार बढ़ती गई है मगर मांग इतनी कम हुई है कि कारोबारी दाम बढ़ा ही नहीं पा रहे हैं। बाहर के कारोबारी तो माल का पुराना दाम लगाने को भी राजी नहीं हैं ऐसे में दाम बढ़ाने की बात कौन कहे।

लखनऊ में ही चिकन कारोबार करने वाले अरुण तनेजा कहते हैं कि इस समय कारोबारी अपना मुनाफा कटाकर ही धंधे में बना हुआ है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में दौरान लगातार दो साल धंधा घटा तो बहुत से कारीगर भाग गए और दूसरे काम में लग गए। बाजार खुलने पर अब कुछ मांग आ रही है मगर उनमें से ज्यादतर कारीगर वापस आने को तैयार नहीं हैं। तनेजा बताते हैं कि बहुत से छोटे कारोबारियों ने तो धंधा तक समेट लिया है या रेडीमेड कपड़े बेचने लगे हैं।
रेशम के धंधे में लगा घुन

बीते कई सालों से सूरत के हाथों धंधा खोते जा रहे वाराणसी के सिल्क उद्योग के लिए कोरोना और महंगाई काल बनकर आई है। इस बार कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सिल्क कारोबारियों ने खुद ही बाजार बंद करने का फैसला किया था। वाराणसी के एक प्रमुख सिल्क निर्यातक का कहना है कि ऐसा सेहत की फिक्र में नहीं किया गया बल्कि बाजार इसलिए बंद हुए थे कि न तो धंधा रह गया था और न ही लागत निकल पा रही थी। दो साल से विदेशी मांग न के बराबर है और देसी बाजारों की चमक गायब है। सहालग फीका जा रहा है। उसके बाद भी कच्चे माल की कीमत ऊंची बनी हुई है। माल भाड़ा भी बढ़ गया है। ऐसे में माल महंगा तो क्या बेचें पुरानी कीमत पर माल निकालना भी मुश्किल हो रहा है।
सिल्क निर्यातक रजत पाठक का कहना है कि ज्यादातर लोग अनिश्चितता के इस दौर में पैसा अपनी मुट्ठी में दबाकर चल रहे हैं। कोई अब उधारी पर धंधा करना नहीं चाहता है और न ही ज्यादा कच्चा माल उठा कर पैसा फंसाना चाहता है। उनके मुताबिक धंधा करीब 40 फीसदी घट गया है और उसमें सुधार की गुंजाइश भी नहीं दिख रही है। इस बार तो आलम यह था कि बनारसी साडिय़ां बेचने वालों ने सहालग के दिनों में भी सूरत से मंगाया पावरलूम का माल बेचा। इसका बड़ा कारण यही है कि बनारसी सिल्क महंगा है और ग्राहक जेब ज्यादा ढीली नहीं करना चाहता।
उडऩे लगी कन्नौज के इत्र की खुशबू

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में कन्नौज के मशहूर इत्र का धंधा चमकाने के लिए म्यूजियम और पार्क बनाने का ऐलान किया है। फिर भी इत्र कारोबारियों के चेहरे पर रौनक नहीं दिखती। गुलाब, खस, चमेली और कई तरह के नायाब इत्रों के लिए मशहूर कन्नौज के कारोबारियों के पास काम नहीं के बराबर है और कारीगरों का भी टोटा हो गया है। एक कारोबारी का कहना है कि अभी लोगों के पास पैसा ही नहीं है तो इत्र कौन खरीदेगा। विदेश से आने वाले ऑर्डर भी पिछले साल से बंद हैं। मुंबई और दिल्ली के बाजारों से मांग नहीं के बराबर है। स्थानीय बाजारों में कन्नौज के इत्र के दाम देने वाले ही नहीं मिल पाते।
इत्र कारोबारियों का कहना है कि सबसे ज्यादा मार तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढऩे से पड़ी है। यहां का ज्यादातर माल बाहर से आता है और तैयार होकर जाता है। दोनों सूरत में ढुलाई पर डीजल महंगा होने का असर पड़ता है। फिर भी कारोबारी दाम बढ़ाने की सोच नहीं सकते और अपने मुनाफे पर ही चाकू झेल रहे हैं। इत्र कारोबारी राजीव दीक्षित कहते हैं कि पहले यहां हर साल 1,200 करोड़ रुपये से ज्यादा का धंधा होता था और अब 500 करोड़ रुपये का काम भी नहीं बचा है।
रेवड़ी, गजक पर भी मंदी

अकेले लखनऊ से हर साल गर्मियों में 300 करोड़ रुपये की सुगंधित रेवड़ी का काम होता था, जो दो साल से चौपट है। गर्मियों में लॉकडाउन रहा और बरसात का मौसम आते-आते मांग ही नहीं रही। लखनवी रेवड़ी के थोक विक्रेता राजेश मिश्रा कहते हैं कि इस धंधे में मात्रा भले छोटी है मगर इसके उत्पाद से लेकर बिक्री तक हजारों लोग जुड़े हैं, जो प्रभावित हुए हैं। चीनी के दाम बढ़े, मजदूरी बढ़ी और माल भेजने का खर्च भी बढ़ गया मगर रेवड़ी की कीमत जस की तस रही है। मिश्रा कहते हैं कि कुल मिलाकर रेवड़ी कारोबारी इस समय घाटा उठाकर ही धंधा कर रहे हैं मगर ऐसा लंबे अरसे तक नहीं चल पाएगा। गजक की मांग यूं तो जाड़ों में ज्यादा रहती है मगर इसके उत्पादन की तैयारी बरसात से ही शुरू हो जाती है। मिश्रा बताते हैं कि जिस तरह भाड़ा बढ़ा है और कच्चा माल मंहगा हुआ है, उससे समझ में नहीं आ रहा है कि बिना दाम बढ़ाए कैसे काम चलेगा। कच्चे माल की कीमत 20 फीसदी और भाड़ा 10 से 12 फीसदी बढ़ा है, जो कारोबारियों पर बहुत भारी पड़ रहा है।
मांग बढ़े बिना गुजारा नहीं

उत्तर प्रदेश के उद्यमियों का कहना है कि राहत का कोई भी पैकेज तब तक नाकाफी ही रहेगा, जब तक बाजार में मांग नहीं बढ़ती है। उनका यह भी कहना है कि पेट्रोल-डीजल के दामों में कटौती बहुत जरुरी है। उद्योग भारती के सचिव डॉ अजय का कहना है कि नकदी की समस्या ग्राहक के पास भी है और उत्पादक के पास भी। संकट के इस दौर में हर किसी ने अपना हाथ सिकोड़ लिया है और केवल जरुरी खर्च ही किए जा रहे हैं। माल भाड़ा इस कदर बढ़ता जा रहा है कि लागत का गणित हर रोज बिगड़ जाता है तो कारोबारी मूल्य का निर्धारण कैसे करे। सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा। बाजार कब तक खुले रहेंगे और कब दोबारा बंद हो जाएंगे, यह भी अनिश्चित है। इन हालात में कारोबारी किसी दीर्घकालिक योजना पर अमल भी नहीं कर रहे हैं।
हालांकि व्यापार मंडल के पदाधिकारी अब प्रदेश में कोरोना के कम हो रहे मामलों और आने वाले त्योहारों से उम्मीद संजो रहे हैं। उनका कहना है कि आज प्रदेश के डेढ़ दर्जन जिलों में कोरोना का एक भी मामला नहीं है और दो-तिहाई से ज्यादा जिलों में एक भी नया मामला नहीं आ रहा है। प्रदेश सरकार ने बंदी अब केवल रविवार तक सीमित कर दी है, जिससे आने वाले दिनों में बाजार सुधरने की उम्मीद बढ़ गई है।

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