कारोबारियों ने कहा कि कॉरपोरेट सौदों के कारण डॉलर की मांग बढ़ने और व्यापारियों के अपनी लॉन्ग पोजीशन की बिकवाली करने से रुपये ने शुरुआती बढ़त गंवा दी। भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम पर सहमति और सीमा पर तनाव कम होने के कारण शुरुआती कारोबार में भारतीय मुद्रा में लगभग 74 पैसे की बढ़त हुई थी। लेकिन सरकारी बैंकों ने केंद्रीय बैंक की ओर से डॉलर की खरीद की जिससे रुपये की बढ़त कम हो गई।
स्थानीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले 85.34 पर टिकी जो एक दिन पहले 85.38 पर बंद हुई थी। एक बाजार प्रतिभागी ने कहा, कल बाजार बंद था। इसलिए आज हमने बड़ी मात्रा में बिकवाली देखी। यह बड़ा बदलाव इसलिए हुआ क्योंकि लोगों ने रुपये में बिकवाली से पहले खरीदारी का रुख अपनाया।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के वरिष्ठ शोध विश्लेषक दिलीप परमार ने कहा, घरेलू शेयर बाजारों में कमजोरी और व्यापारियों के लॉन्ग पोजीशन बेचने के कारण भारतीय रुपये ने इंट्राडे में बढ़त गंवा दी। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने भारतीय तेल आयातकों को अपनी हेजिंग गतिविधियां बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
डीलरों ने कहा, इसके अलावा करीब 60 करोड़ डॉलर के कर्ज भुगतान, एंट ग्रुप द्वारा पेटीएम में 24.6 करोड़ डॉलर में 4 फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री और जनरल अटलांटिक सिंगापुर फंड द्वारा केफिन टेक्नोलॉजीज में 14.3 करोड़ डॉलर में 7 फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री से भी डॉलर की मांग बनी रही जिससे घरेलू मुद्रा पर दबाव पड़ा।
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फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजरी प्रमुख और कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भंसाली ने कहा, आरबीआई 84.64 प्रति डॉलर के स्तर पर हस्तक्षेप कर रहा था। उन्होंने कितनी बिक्री की, इस बारे में बताना कठिन है क्योंकि तेल आयातकों और एफपीआई की ओर से भी डॉलर की खरीद हो रही थी। निर्यातक आज बाजार से गैर-हाजिर थे।
सीमा पर तनाव कम होने और अप्रैल में महंगाई के नरम आंकड़े आने के बाद सरकारी बॉन्ड की यील्ड में भी नरमी आई। बेंचमार्क 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड की यील्ड में 5 आधार अंकों की गिरावट आई और यह 6.33 फीसदी पर आ गई जबकि पिछली बार यह 6.38 फीसदी पर बंद हई थी।
एक निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, हमने संघर्ष विराम के कारण सुबह में तेजी देखी। फिर महंगाई के आंकड़े आने के बाद भी हमने कुछ तेजी देखी। अप्रैल में भारत की मुख्य मुद्रास्फीति छह साल के निचले स्तर 3.16 फीसदी पर आ गई। खाद्य मुद्रास्फीति भी अक्टूबर 2021 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई।
विशेषज्ञों ने कहा कि भारत की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई मुख्य रूप से सब्जियों, दालों और अनाज की कीमतों में गिरावट के कारण कम हुई है। खाद्य और कच्चे तेल की कीमतों में लगातार नरमी से कुल मुद्रास्फीति आरबीआई के 4 फीसदी लक्ष्य से नीचे रहने की उम्मीद है, जिससे आगामी मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में रीपो दर में कटौती की संभावना बढ़ गई है।