अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलीना जॉर्जीवा ने गुरुवार को कहा कि भारत जैसे देशों में क्रिप्टो संपत्ति की स्वीकार्यता ज्यादा है। उन्होंने कहा कि ज्यादा क्रिप्टो संपत्ति अपनाने से वृहद आर्थिक स्थिरता कमजोर होने की चुनौती है।
सोल में डिजिटल मुद्रा पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए जॉर्जीवा ने कहा कि क्रिप्टो संपत्तियों से ब्याज दरों में बदलाव करने की मौद्रिक नीति का मकसद कमजोर हो सकता है। साथ ही इससे विदेशी मुद्रा रखने को लेकर पूंजी प्रवाह के प्रबंधन उपाय कमजोर पड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर कर संग्रह अस्थिर होगा या कर संग्रह के कानून लागू करना कठिन होगा तो इससे राजकोषीय स्थिरता को खतरा हो सकता है।
उन्होंने कहा, ‘चैनालिसिस के मुताबिक भारत, नाइजीरिया और वियतनाम जैसे उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं में क्रिप्टो संपत्ति की स्वीकार्यता ज्यादा है। हालांकि यह आंकड़े दुर्लभ हैं।
आईएमएफ स्टाफ द्वारा किए जा रहे शोध के मुताबिक ब्राजील में विदेशी प्रतिभूतियों पर किए गए 100 वास्तविक व्यय में 25 क्रिप्टो संपत्ति में जाता है। चुनौती यह है कि ज्यादा क्रिप्टो संपत्ति की स्वीकार्यता से वृहद आर्थिक स्थिरता कमजोर हो सकती है।’
ब्लॉकचेन डेटा एनालिटिक्स कंपनी चैनालिसिस की अक्टूबर में प्रकाशित एक रिपोर्ट में क्रिप्टो की वैश्विक स्वीकार्यता में भारत को शीर्ष पर रखा गया है। यह रिपोर्ट क्रिप्टो की जमीनी स्तर पर स्वीकार्यता को मापने के लिए कच्चे लेन देन की मात्रा, क्रय शक्ति और देशों की आबादी जैसे संकेतकों को आधार बनाया गया है।
इसमें कहा गया है, ‘नियामक व्यवस्था और कर वसूली के नियमों के बावजूद भारत एक शीर्ष क्रिप्टोकरेंसी बाजार के रूप में उभरा है। यह इससे दूर होने के हिसाब से उद्योग के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।’
पिछले 2 साल में भारत की नियामकीय एजेंसियों ने तमाम मसलों पर स्थिति साफ की है। इसमें धनशोधन के नियम क्रिप्टो संपत्ति के लेनदेन पर भी लागू किया जाना शामिल है। भारत ने क्रिप्टो संपत्ति के हस्तांतरण से हुई आमदनी पर 30 प्रतिशत कर लगा दिया है और क्रिप्टो प्लेटफॉर्मों पर 1 प्रतिशत स्रोत पर कर (टीडीएस) लगता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘देश में चल रहे हर एक्सचेंज को भारत के यूजर्स से टीडीएस लेना होता है, तमाम अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज इसे प्रभावी तरीके से नहीं कर रहे हैं, जिसकी वजह से भारत के यूजर्स उधर जा सकते हैं, जो एक्सचेंज भारत पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं।’
सदस्य देशों से चर्चा के बाद आईएमएफ और वित्तीय स्थिरता बोर्ड ने पिछले सितंबर में एक सिंथेसिस पेपर प्रकाशित किया है, जिसमें क्रिप्टो संपत्तियों के लिए नियम पर दिशानिर्देश सुझाए गए हैं। इसमें क्रिप्टो संपत्तियों से जुड़ी गतिविधियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के खिलाफ तर्क दिए गएहैं क्योंकि यह कदम महंगा पड़ सकता है और तकनीकी रूप से भी यह चुनौतीपूर्ण होगा।
जॉर्जीवा ने कहा कि आईएमएफ का लक्ष्य नियम मुहैया कराकर ज्यादा कुशल, लागू करने योग्य और सरल वित्तीय व्यवस्था तैयार करना है, जिससे कि क्रिप्टो करेंसी के जोखिम से बचा जा सके और इसकी कुछ तकनीकों के माध्यम से बुनियादी ढांचा बन सके।
उन्होंने कहा, ‘प्रमुख तत्वों में (आईएमएफ-एफएसबी सिंथेसिस पेपर के) क्रिप्टो संपत्ति को कानूनी या आधिकारिक मुद्रा न बनाया जाना शामिल है। धन शोधन और आतंकवाद के लिए धन मुहैया कराने को रोकने के लिए कानून बनाने सहित स्पष्ट कानून और और उसे लागू करने व इसका मानक तय करने की जरूरत पर जोर दिया गया है।’
उन्होंने कहा, ‘साथ ही स्पस्ट कर प्रावधान विकसित करने की जरूरत बताई गई है। साथ ही नीतियों के साथ वैश्विक रूप से तालमेल बिठाने और नियामकीय मध्यस्थता से बचने पर जोर दिया गया है क्योंकि क्रिप्टो संपत्ति मुहैया कराने वाले अपना स्थल बदल सकते हैं।’
आईएमएफ प्रमुख ने कहा कि इन दिशानिर्देशों को लागू करने वाले देश अपने कानून में बदलाव करने के साथ सुपरवाइजरों और ओवरसियर्स को प्रशिक्षण दे रहे हैं और अनुपालन सुनिश्चित कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘इन नियमों का मकसद क्रिप्टो के पहले की दुनिया में लौटना या नवोन्मेष खत्म करना नहीं है। सभी क्रिप्टो पर धोखेबाजी का दाग नहीं है।’
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास क्रिप्टो संपत्तियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध की जरूरत पर जोर देते रहे हैं। उनका मानना है कि इसमें अंतर्निहित मूल्य की कमी है और यह 17वीं सदी के सट्टेबाजी के बुलबुले की तरह है, जिसने हॉलैंड को जकड़ लिया था।
अक्टूबर में मार्खेज में जी20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के क्रिप्टो करेंसी पर खाके की स्वीकार्यता के बाद घरेलू क्रिप्टो उद्योग को उम्मीद जगी है कि क्रिप्टो संपत्तियों के नियमन को लेकर सरकार आम राय बनाने का काम करेगी। बहरहाल अक्टूबर के आखिर में दास ने कहा कि क्रिप्टो संपत्तियों पर प्रतिबंध को लेकर केंद्रीय बैंक का रुख नहीं बतला है, भले ही वैश्विक धारणा इसे नियमित करने को लेकर बन रही है।