देश की मुख्य आर्थिक वृद्धि या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में अप्रैल-जून 2022 की तुलना में 7.8 फीसदी बढ़ा है। ये आंकड़े 2011-12 की स्थिर कीमत पर निकाले गए हैं।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) के अनुमान के अनुमार यह पिछली चार तिमाही में सबसे तेज जीडीपी वृद्धि है। हालांकि यह वृद्धि पूरी तरह से जीडीपी डीफ्लेटर (अपस्फीतिकारक) में तेज गिरावट या अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधि या कुल मांग में तेज वृद्धि के बजाय मुद्रास्फीति अनुमान के कारण थी। जीडीपी डीफ्लेटर एक मूल्य सूचकांक है जो दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में समय के साथ कैसे औसतन बदलाव आता है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुमान के अनुसार जीडीपी डीफ्लेटर वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में गिरकर 0.2 फीसदी रह गया, जो पिछली 17 तिमाही में सबसे कम आंकड़ा है। वित्त वर्ष 2023 की पहली तिमाही में यह 14.6 फीसदी और चौथी तिमाही में 4.3 फीसदी था। इसकी तुलना में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में औसतन 4.6 फीसदी रही थी।
बीते 12 साल में जीडीपी डीफ्लेटर महज एक बार मार्च 2019 तिमाही में 0.2 फीसदी से कम था। उस बार यह -1.0 फीसदी रहा था। अगर खुदरा मुद्रास्फीति को जीडीपी डीफ्लेटर माना जाए तो वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में मुख्य जीडीपी वृद्धि घटकर 10 तिमाही के निचले स्तर 3.4 फीसदी पर रह जाती।
दूसरी ओर वर्तमान मूल्यों पर देश की जीडीपी वृद्धि में लगातार नवें महीने गिरावट आई है। इसे नॉमिनल जीडीपी भी कहा जाता है और इसमें अर्थव्यवस्था की कुल मांग शामिल होती है। पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के मुकाबले यह 8 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा, जो वित्त वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही के बाद सबसे धीमी वृद्धि है।
पिछले 10 वर्षों में नॉमिनल जीडीपी औसतन 10.8 फीसदी की दर से बढ़ा है, जबकि स्थिर मूल्य पर जीडीपी की वृद्धि इस दौरान औसतन 5.9 फीसदी रही है। इस दौरान जीडीपी डीफ्लेटर 4.9 फीसदी रहा।
स्थिर मूल्य पर जीडीपी वृद्धि निकालने के लिए उसी अवधि में नॉमिनल जीडीपी वृद्धि में से जीडीपी डीफ्लेटर घटाया जाता है। जीडीपी वृद्धि का नॉमिनल जीडीपी वृद्धि की तुलना में कम या ज्यादा होना इस्तेमाल किए गए डीफ्लेटर पर निर्भर करता है।
जीडीपी हमेशा ही खुदरा मुद्रास्फीति पर नजर रखने के लिए इस्तेमाल होता था मगर हाल की तिमाहियों में यह थोक मुद्रास्फीति के ज्यादा करीब हो गया है। वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में थोक मुद्रास्फीति औसतन -2.9 फीसदी रही जो वित्त वर्ष 2023 की पहली तिमाही की 16.1 फीसदी और चौथी तिमाही की 3.4 फीसदी से काफी कम है।
नॉमिनल जीडीपी में तेज गिरावट कारोबारी क्षेत्र की वृद्धि और देश के सार्वजनिक वित्त के लिए खराब मानी जाती है। नॉमिनल जीडीपी वृद्धि में सुस्ती का मतलब है कि नॉमिनल जीडीपी वृद्धि अब 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड के रिटर्न से महज 80 आधार अंक ऊपर है, जो वित्त वर्ष 2020 की तीसरी तिमाही के बाद सबसे कम है। यह कर राजस्व और सार्वजनिक ऋण पर ब्याज दर के बीच संभावित वृद्धि में विसंगति को दर्शाती है।
नॉमिनल जीडीपी वृद्धि और बेंचमार्क बॉन्ड यील्ड के बीच कम अंतर का मतलब है कि सार्वजनिक ऋण पर सरकार की ब्याज देनदारी कर राजस्व की तुलना में तेजी से बढ़ सकती है। इससे सार्वजनिक वित्त पर दबाव बढ़ता है।
वर्तमान मूल्य पर जीडीपी वृद्धि और सूचीबद्ध कंपनियों (बैंक, वित्त और बीमा को छोड़कर) की शुद्ध बिक्री वृद्धि के बीच आम तौर पर सीधा संबंध रहा है।
उदाहरण के लिए हाल की तिमाहियों में नॉमिनल जीडीपी वृद्धि घटी तो सूचीबद्ध कंपनियों की शुद्ध बिक्री वृद्धि में भी तेज गिरावट आई। सूचीबद्ध कंपनियों (बीएफएसआई को छोड़कर) की कुल शुद्ध बिक्री चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 0.8 फीसदी ही बढ़ी, जो 10 तिमाही की सबसे कम रफ्तार है। वित्त वर्ष 2023 की पहली तिमाही में यह 46.5 फीसदी और चौथी तिमाही में 10.7 फीसदी बढ़ी थी।
इसी तरह नॉमिनल जीडीपी और देश के कुल सार्वजनिक ऋण (केंद्र और राज्य सरकारों की कुल बकाया उधारी) के बीच विपरीत संबंध होता है। उदाहरण के लिए सरकार की कुल उधारी पिछले दो साल में धीमी गति से बढ़ी है जबकि नॉमिनल जीडीपी में तेजी से इजाफा हुआ है। इसके उलट वित्त वर्ष 2020 और 2021 में कोविड लॉकडाउन के दौरान सरकार की उधारी तेजी से बढ़ी थी और नॉमिनल जीडीपी वृद्धि में तेज गिरावट आई थी।
इसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2021 में देश का सार्वजनिक ऋण जीडीपी के 88.5 फीसदी के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। वित्त वर्ष 2023 में यह घटकर 83.1 फीसदी रह गया।
वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में नॉमिनल जीडीपी में गिरावट से सरकार के कर राजस्व में कमी आ सकती है और सरकार की उधारी बढ़ सकती है।