जब दुनिया में भूराजनीतिक तनाव, व्यापार युद्ध और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में माइग्रेशन के विरोध में बयानबाजी बढ़ रही है, ऐसे समय में वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) श्रम प्रवासन से संबंधित मुद्दों के समाधान के रूप में उभर रहे हैं। श्रम सचिव सुमिता डावरा ने शिवा राजौरा और श्रेया नंदी से बातचीत में कहा कि एआई, फाइनैंस, ईवी, अक्षय ऊर्जा जैसे नए क्षेत्रों के जीसीसी श्रमिकों की आवाजाही में विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। बातचीत के प्रमुख अंश…
क्या आपको लगता है कि भारतीय कामगारों की विदेश में मांग प्रभावित हो रही है और उनकी आवाजाही पर किसी तरह का असर पड़ रहा है?
हकीकत यह है कि तमाम विकसित देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फिनलैंड, जापान के अलावा पश्चिम एशिया में श्रमिकों की कमी है, जो परंपरागत रूप से भारत के विस्थापित श्रमिकों को रोजगार देते हैं। सूचना तकनीक, इंजीनियरिंग और हरित नौकरियों में रोजगार मिल रहा है। ऐसे में वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) श्रमिकों के विस्थापन के मसले पर एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभर रहे हैं। आईटी, नॉलेज प्रॉसेसिंग, फाइनैंस और सेवा जैसे क्षेत्र रोजगार के केंद्र बन रहे हैं। आज हमारे यहां 1,700 से अधिक जीसीसी हैं, जिनकी संख्या 2030 तक बढ़कर 2,400 से अधिक हो जाएगी। ऐसे में जब श्रमिकों की कमी होगी तो कंपनियां निश्चित रूप से विदेश से काम कराएंगी। जीसीसी श्रमिकों की आवाजाही के विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। इसके अलावा हम आईएलओ और ओईसीडी के साथ भी एक ढांचा बनाने पर काम कर रहे हैं।
क्या मौजूदा संरक्षणवादी माहौल से भारतीय कामगारों की वापसी हो सकती है और जीसीसी इन कर्मियों को काम दे पाएंगे?
मुझे नहीं लगता कि बड़े पैमाने पर भारतीय श्रमिकों की वापसी होगी क्योंकि भारतीय कई देशों की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारा विशाल जनसांख्यिकीय लाभांश (35 वर्ष से कम आयु के 65 प्रतिशत लोग) तथा इन देशों में वृद्ध होती जनसंख्या निश्चित रूप से श्रमिकों की आवाजाही के लिए शुभ संकेत है। हर देश विकास करना चाहता है।
मुक्त व्यापार समझौतों पर बातचीत के दौरान तमाम देश अक्सर सवाल उठाते हैं कि भारत का श्रम और सामाजिक सुरक्षा मानक बेहतर नहीं है। भारत कैसे निपट रहा है?
इस तरह की वार्ता और समझौतों में हितधारकों के साथ परामर्श और सहभागिता बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। यह महत्त्वपूर्ण है कि जब हम एफटीए करें तो यह संदेश भेजें कि हमारी आपूर्ति श्रृंखला में काम करने की बेहतर स्थिति है। हमने अपने व्यवसायों से बातचीत में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को शामिल किया है, ताकि न केवल आपूर्ति श्रृंखलाओं में कामकाज की बेहतर स्थिति सुनिश्चित की जा सके, बल्कि विदेश में भी कामकाज की बेहतर स्थिति पेश की जा सके।
श्रम संहिताओं को लागू करने में क्या प्रगति हुई है?
करीब 34 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने मसौदा नियम प्रकाशित कर दिए हैं। यह सामंजस्यपूर्ण एवं मानकीकृत तरीके से किया गया है। पिछले साल हमने क्षेत्रीय बैठकें, राष्ट्रीय कार्यशालाओं का आयोजन किया और उनसे 31 मार्च तक प्रक्रिया पूरी करने को कहा। यह बहुत साफ है कि कारोबारी अलग अलग राज्यों में अलग अलग कानून पसंद नहीं करते। सरकार की मंशा सुधार करना है और हम उम्मीद करते हैं कि नई संहिता जल्द लागू हो जाएगी।