बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) के जरिये जुटाई गई दोगुनी से अधिक होकर 20.3 अरब डॉलर हो गई है। ये आंकड़े एक साल पहले के मुकाबले पिछले साल अप्रैल से लेकर इस साल फरवरी के बीच के है। इसका आंशिक कारण विदेशी फंड जुटाने की लागत में कमी है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2023 से फरवरी 2024 के बीच 8.8 अरब डॉलर जुटाए गए थे, जो कम से कम पांच वर्षों में सबसे ज्यादा है। इस साल फरवरी में 1.9 अरब डॉलर जुटाए, जबकि एक साल पहले यानी फरवरी 2024 में बाह्य वाणिज्यिक उधारी के जरिये 1.3 अरब डॉलर जुटाए गए थे।
कुल मिलाकर, पिछले साल अप्रैल से इस साल फरवरी के बीच बाह्य वाणिज्यिक उधारी के लिए 50.1 अरब डॉलर के पंजीकरण और 46.1 अरब डॉलर का संवितरण हुआ है, जो पिछले साल के 8.6 अरब डॉलर के पंजीकरण और 13.4 अरब डॉलर के संवितरण से अधिक है।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के निदेशक सौम्यजित नियोगी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि पिछले साल अप्रैल के मुकाबले कुल उधारी दर में करीब 40 से 50 आधार अंकों की कमी आई है। अमेरिका में अभी दरों में और कटौती की उम्मीद है। अधिकतर ईसीबी छह महीने से एक साल की बेंचमार्क दर से जुड़े हैं।
रिजर्व बैंक की इस साल अप्रैल की बुलेटिन में प्रकाशित स्टेट ऑफ इकनॉमी आलेख के मुताबिक, पंजीकृत ईसीबी की कुल लागत में साल भर में 35 आधार अंकों की गिरावट आई है, जो वैश्विक ब्याज दरों और सुरक्षित ओवरनाइट फाइनैंसिंग दरों (एसओएफआर) और भारित औसत ब्याज मार्जिन (डब्ल्यूएआईएम) में गिरावट के कारण हुई है। उससे पहले अप्रैल 2023 से फरवरी 2024 के बीच एसओएफआर जैसी वैश्विक बेंचमार्क दरें स्थिर थीं मगर ऊंचे स्तर पर थीं। इस साल जनवरी में डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने और उनके प्रशासन द्वारा नीतिगत घोषणाओं की झड़ी लगने के बाद दुनिया भर के बाजारों की स्थिति बदल गईं।