बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने से भानुमति का पिटारा खुल जाने की आशंका बन जाएगी। विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि ऐसा होता है तो अन्य राज्य भी अपने लिए विशेष दर्जे की मांग उठाने लगेंगे।
नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी ने केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार को समर्थन देने के एवज में अपने-अपने राज्य के लिए विशेष दर्जा दिए जाने की मांग रखी है।
जदयू नेता केसी त्यागी ने बुधवार को कहा, ‘राजग सरकार के लिए हम बिना शर्त समर्थन दे रहे हैं, लेकिन हम चाहते हैं बिहार के लोगों की भलाई के लिए प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए। बिना विशेष दर्जा मिले, राज्य में विकास को गति देना असंभव है।’
चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) ने वर्ष 2018 में इसलिए राजग सरकार से समर्थन वापस ले लिया था कि बंटवारे के बाद आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया गया था।
पूर्व में राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा विशेष राज्य का दर्जा ऐसे प्रदेशों को दिया गया, जो कई तरह के संकट से जूझ रहे थे और इस गर्त से निकलने के लिए उन्हें विशेष श्रेणी में लाना आवश्यक था। जैसे पहाड़ी और विकट क्षेत्रीय स्थिति, कम जनसंख्या घनत्व और आदिवासी लोगों की अधिक जनसंख्या, पड़ोसी देशों से लगती सीमा से सटे होना, आर्थिक और बुनियादी ढांचे का पिछड़ापन और राज्य के वित्तीय ढांचे का अलाभकारी होना आदि ऐसे कारक हैं, जिन्हें किसी भी राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने के लिए मानक के तौर पर रखा जाता है।
लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा योजना आयोग को समाप्त किए जाने और 14वें वित्त आयोग के शुरू होने के साथ राज्यों में इस प्रकार का भेद खत्म कर दिया गया।
ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार और 15वें वित्त आयोग के सदस्य डीके श्रीवास्तव ने कहा, ‘कोई भी गरीब राज्य अपने लिए विशेष दर्जे की मांग कर सकता है। यदि कई राज्य इस तरह की मांग करते हैं और यदि सरकार व्यवस्थित तरीके से इस मुद्दे से निपटना चाहती है तो उसे यह मामला नीति आयोग के हवाले कर देना चाहिए और ऐसे राज्यों को वित्तीय सहायता देने के लिए विशेष व्यवस्था की जा सकती है।’
14वें वित्त आयोग के सदस्य एम गाविंद राव ने कहा कि किसी राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने की स्थिति में केंद्र सरकार पर कितना वित्तीय बोझ पड़ेगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उसे किस तरह का पैकेज दिया जाता है। उन्होंने कहा, ‘यदि झारखंड जैसे राज्य भी विशेष दर्जे की मांग करने लगे तो इससे केंद्र के समक्ष समस्याओं का पिटारा खुल जाएगा।’
मामले ने इसलिए भी राजनीतिक मोड़ ले लिया है, क्योंकि ‘इंडिया’ गठबंधन टीडीपी को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहा है। वर्ष 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नवगठित आंध्र प्रदेश को अगले पांच साल के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा किया था। जबकि भजापा नेता वेंकैया नायडू ने इससे आगे बढ़कर कहा था कि यदि भाजपा सत्ता में आई तो राज्य का विशेष दर्जा दस साल के लिए बढ़ा दिया जाएगा।
बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस वादे को दोहराया, लेकिन पिछले दस साल से केंद्र में भाजपा सरकार है, लेकिन इस दिशा में कुछ नहीं किया गया। इस वर्ष के आम चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में मनमोहन के वादे यानी आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिए जाने की बात पुन: दोहरायी। बीते 4 जून को कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, ‘यह हमारी गारंटी है।’
मार्च 2023 में एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्रालय ने कहा था, ‘बिहार को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग पर अंतर-मंत्रालीय समूह (आईएमजी) ने विचार विमर्श किया था। इसने 30 मार्च 2012 को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एनडीसी को कसौटी मानें तो बिहार की यह मांग पूरी नहीं की जा सकती।’