सरकार समर्थित विकास वित्त संस्थान (डीएफआई) को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वित्त सुविधा तक सीधी पहुंच उपलब्ध होगी। इससे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के ऋणदाताओं को सस्ती दरों पर कोष जुटाने में मदद मिलेगी।
अवसंरचना एवं विकास के वित्तपोषण के लिए राष्ट्रीय बैंक विधेयक, 2021 के अनुसार, ‘डीएफआई रिजर्व बैंक से पैसे उधार लेने में सक्षम होगा और मांगे जाने पर या शेयर, कोष या प्रतिभूतियों की जमानत पर ली गई राशि तय अवधि पूरी होने, जो कि पैसे लेने की तिथि से 90 दिन से ज्यादा नहीं होगी, पर भुगतान करना होगा।’
वित्त मंत्री द्वारा सदन में आज पेश किए गए विधेयक में कहा गया है कि डीएफआई बिल के विनिमय या इकरारनामे के एवज में आरबीआई से पैसे उधार ले सकता है।
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि आरबीआई डीएफआई को विशेष वित्त की सुविधा उपलब्ध कराएगा, जो अनूठा होगा। उन्होंने कहा कि इससे डीएफआई को अल्पावधि से मध्यम अवधि तक नकद प्रवाह का बंदोबस्त करने में मदद मिलेगी।
डीएफआई के लिए दीर्घावधि उधारी लागत बाजार से जुड़ी होगी, जो आम तौर पर ऊंची होती है। सबनवीस ने कहा कि आरबीआई से उधार मिलने से संभव है कि लागत कम आए, जिससे डीएफआई को कुल वित्तपोषण लागत को कम करने में मदद मिलेगी।
इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, ‘यह सुविधा राज्यों को सरकारी प्रतिभूतियों के एवज में दी जाने वाली विशेष उधारी सुविधा की तरह हो सकती है।’ हालांकि यह सुविधा अल्पावधि में तरलता का प्रबंधन करने के लिए बेहतर हो सकती है।
पंत ने कहा कि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को दीर्घावधि के लिए पूंजी की जरूरत होती है, जो डीएफआई की संपत्तियां होंगी और डीएफआई की देनदारी या उधारी भी दीर्घावधि की होगी।
इसके साथ ही अगर बुनियादी ढांचे के ऋणदाता को जरूरत होगी तो डीएफआई द्वारा जारी बॉन्ड, डिबेंचर और ऋण पर केंद्र सरकार गारंटी भी दे सकती है। डीएफआई को अनुदान या नकद योगदान के जरिये भी सरकार से मदद मिल सकती है, जो बिक्री योग्य सरकारी प्रतिभूतियों के तौर पर हो सकती है। सरकार डीएफआई के गठन के पहले साल नकद या प्रतिभूतियों के तौर पर 5,000 करोड़ रुपये निवेश करेगी।
इन्फ्रास्ट्रक्चर एडवाइजरी प्रैक्टिस में पार्टनर मनीष अग्रवाल ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि सरकार ने बॉन्ड और अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसियों से ऋण पर गारंटी और विदेश में उधारी पर हेजिंग से सुरक्षा का वादा कर डीएफआई को ताकत देने की कोशिश की है। बकौल अग्रवाल, मगर अभी यह देखना बाकी है कि वास्तव में डीएफआई को इन उपायों से कितनी मदद मिलेगी। विधेयक में कहा गया है कि बॉन्ड एवं डिबेंचर सहित डीएफआई द्वारा जारी प्रतिभूतियां स्वीकृत निवेश के तौर पर पात्र होंगी।
विधेयक के अनुसार ये भारतीय वित्तीय नियामकों द्वारा तय मानदंडों के अनुरूप होंगी। डीएफएआई भारत में और भारत से बाहर ढांचागत परियोजनाओं में निवेश या उन्हें कर्ज देने में सक्षम होंगी। डीएफआई परियोजना की संरचना तैयार करने के अलावा पूरी हो चुकीं परियोजनाओं की निगरानी और उनका मौद्रिकरण भी स्वयं या अपनी सहायक इकाइयों द्वारा कर पाएंगी। खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर, सिद्धार्थ श्रीवास्तव ने कहा, ‘डीएफआई की स्थापना के बाद दीर्घ अवधि की ढांचागत परियाजनाओं में पेश आने वाली कमी निश्चित तौर पर पूरी हो जाएगी। इसके अलावा ढांचागत क्षेत्र में रकम का आवंटन भी बढ़ जाएगा। कम लागत के साथ पूंजी मुहैया कर डीएफआई ढांचागत क्षेत्र के विकास को आवश्यक ताकत प्रदान करेंगे।’
डीएफआई की अधिकृत पूंजी 1 लाख करोड़ रुपये होगी और इसका मुख्यालय मुंबई में होगा। इसके शेयर केंद्र सरकार, बड़े संस्थान, सॉवरिन वेल्थ फंड, पेंशन फंड, बीमा कंपनियां, वित्तीय संस्थान, बैंक सहित दूसरी इकाइयों के पास होंगे। किसी भी समय केंद्र के पास डीएफआई के 26 प्रतिशत शेयर रहेंगे। डीएफआई के निदेशकमंडल में एक चेयरपर्सन होगा जिसकी नियुक्ति सरकार आरबीआई के साथ परामर्श के बाद करेगी। इसके अलावा एक प्रबंध निदेशक, तीन डिप्टी प्रबंध निदेशक, दो निदेशक होंगे। 10 प्रतिशत या इससे अधिक हिस्सेदारी रखने वाले अंशधारक तीन निदेशकों की नियुक्ति करेंगे और तीन स्वतंत्र निदेशक भी निदेशकमंडल का हिस्सा होंगे।
