भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े क्षेत्र, सेवा क्षेत्र में सितंबर माह में गतिविधियां अगस्त की तुलना में धीमी रहीं और आईएचएस मार्किट परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) सर्वे सूचकांक अगस्त के 56.7 से गिरकर सितंबर में 55.2 रह गया। यह गिरावट इस तथ्य के बावजूद आई कि राज्यों ने कोविड के कारण लगे प्रतिबंधों को शिथिल किया।
सर्वे के अनुसार इस गिरावट के बावजूद यह फरवरी 2020 के बाद दूसरा सबसे बेहतर प्रदर्शन वाला महीना रहा। पीएमआई सूचकांक में 50 का आंकड़ा विस्तार दर्शाता है जबकि उससे नीचे गिरावट दर्ज की जाती है। संदर्भ के लिए बता दें कि सितंबर में पीएमआई अगस्त के 18 महीने के उच्चतम स्तर से नीचे आया।
इस बीच कंपनियों ने धीमी गति से ही सही लेकिन नौ महीने के अंतराल के बाद अतिरिक्त कर्मचारियों को काम पर रखना शुरू किया। मुद्रास्फीति में कमी के बावजूद कीमतों पर दबाव देखने को मिला। अन्य प्रमुख संकेतकों के साथ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति चालू वर्ष में अपने वृद्धि और कम मुद्रास्फीति अनुमानों को बढ़ाएगी जबकि अपनी बैठक में दरों को अपरिवर्तित रखेगी।
बार्कले के मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) राहुल बाजोरिया ने कहा, ‘हमें आशा है कि केंद्रीय बैंक सकारात्मक वृहद आर्थिक घटनाक्रम को देखते हुए वृद्धि अनुमान बढ़ाएगा और मुद्रास्फीतिक अनुमानों को कम करेगा।’ उन्होंने आशा जताई कि मौद्रिक नीति समिति नीतिगत दरों को अक्षुण्ण रखेगी लेकिन वह दिसंबर में अगली बैठक में नीति में बदलाव ला सकती है। महामारी का असर कम होने के साथ ही बाजार जाने वाले उपभोक्ता बढ़े हैं।
इसके साथ ही मार्केटिंग के प्रयासों ने भी कारोबारी सुधार में मदद की है। मांग में सुधार से उत्साहित सेवा प्रदाताओं ने सितंबर में नए कर्मचारियों की तादाद में इजाफा किया। रोजगार में इस सुधार ने रोजगार में कमी के नौ महीने पुराने सिलसिले को तोड़ा लेकिन यह सुधार आंशिक ही रहा क्योंकि कुछ कंपनियों ने कहा कि उनके पास मौजूदा काम के लिए पर्याप्त कर्मचारी हैं।
कुछ कंपनियों ने कहा कि लागत में हुए इजाफे को कीमत बढ़ाकर ग्राहकों के साथ साझा किया गया। हालांकि कुछ अन्य कंपनियों ने नए काम हासिल करने के लिए शुल्क बढ़ाने से परहेज किया है। सितंबर में सेवाओं के औसत मूल्य में बढ़ोतरी हुई लेकिन मुद्रास्फीति की दर में भी कमी आई।
