दवा नियामक बोर्ड, नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने नियंत्रित दामों वाली दवाइयों के मूल्यों में 4.58 प्रतिशत कटौती करने की घोषणा की है। रसायन मंत्री रामविलास पासवान ने बताया कि यह कटौती देश में बेची जाने वाली सभी दवाओं के उत्पाद शुल्क में कटौती के कारण हुई है।
भारतीय उद्योग परिसंघ(सीआईआई) के एक समारोह में आए पासवान ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा कि हम उत्पादकों और विक्रेताओं से दवाओं के दाम कम किए जाने पर बातचीत करेंगे। इस मामले को एनपीपीए भी देख रहा है। उन्होंने कहा कि एनपीपीए को खुली छूट दी गई है कि वह आवश्यक दवाइयों के दामों में कमी लाने की दिशा में प्रयास करे। पासवान की नई कोशिश इस सिलसिले में देखी जा रही है कि केंद्र सरकार ने दवाइयों पर उत्पाद शुल्क 16 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत कर दिया है। सरकार ने जीवन रक्षक दवाओं पर सीमा शुल्क भी 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया है। साथ ही दवा बनाने के लिए जरूरी कच्चे माल पर लगने वाले सीमा शुल्क को खत्म कर दिया गया है।
जीवन रक्षक दवाओं के दाम कम किए जाने की कोशिशों और उसके कोई परिणाम न आने के बारे में पूछे जाने पर पासवान ने कहा, ”उत्पादक और विक्रेता लॉबी बनाकर मंत्रालय पर दबाव बना रहे हैं, जबकि हम लगातार कोशिश कर रहे हैं कि दवाओं के दाम कम हों। मीडिया भी इस मुद्दे पर मंत्रालय का साथ नहीं दे रही है।” उन्होंने कहा, ‘कीमतों का मुद्दा भी फार्मा नीति से संबंधित है, जिस पर मंत्रिसमूह विचार कर रहा है।’
बजट की घोषणा के बाद पासवान ने तत्काल कहा था कि फार्मा क्षेत्र को मिली कर छूट के बाद दवा उत्पादकों को दामों में 5 प्रतिशत की कटौती करनी चाहिए। दवा बनाने के लिए प्रयोग होने वाले क च्चे माल (बल्क ड्रग्स) पर 500 में से केवल 74 पर ही एनपीपीए के माघ्यम से सरकार का नियंत्रण है। देश के 40000 करोड़ रुपये के दवा कारोबार में केवल 30 प्रतिशत दवाइयों पर सरकार का नियंत्रण है। दवाओं के दामों में जो कटौती की गई है, उसका प्रभाव केवल उन्हीं दवाओं पर पड़ेगा जिनका विनिर्माण उत्पाद शुल्क वाले क्षेत्रों में होता है। एनपीपीए के नोटीफिकेशन में कहा गया है कि , ‘कीमतें घटाने का प्रभाव उन्हीं दवाओं पर पड़ेगा, जो उत्पाद शुल्क के दायरे में आती हैं। इसका प्रभाव उन पर नहीं पड़ेगा, जिस पर उत्पाद शुल्क नहीं लगता है। इस तरह दवाओं के अधिकतम खुदरा मूल्य में उत्पाद शुल्क कम कर दिया जाएगा।’
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि करीब 80 प्रतिशत दवाओं का विनिर्माण उन इलाकों में होता है, जहां उत्पाद शुल्क नहीं लगता है। हिमाचल प्रदेश के बद्दी इलाके जैसे क ई क्षेत्र बनाए गए हैं, जहां उत्पाद शुल्क लगता ही नहीं है।