भारतीय रिजर्व बैंक ने एक रिपोर्ट में कहा है कि अगर खाद्य महंगाई का दबाव बना रहता है तो मौद्रिक नीति को लेकर सतर्क रुख अपनाने की जरूरत है। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एमडी पात्र और अन्य द्वारा लिखी गई रिपोर्ट ‘आर फूड प्राइसेज स्पिलिंग ओवर?’ में कहा गया है कि खाद्य महंगाई जैसे झटके संभव है कि अस्थायी न हों और सामान्य महंगाई दर पर भी इसका असर पड़ सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था में एकमात्र सक्रिय अवस्फीतिकारक एजेंट है। आगे की स्थिति देखें तो अगर खाद्य वस्तुओं की कीमतों का दबाव बना रहता है और लंबे समय तक जारी रहता है तो सतर्क मौद्रिक नीति की जरूरत होगी।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि मौद्रिक नीति निर्धारण में खाद्य वस्तुओं की कीमत में उतार-चढ़ाव को अस्थायी मानने की परंपरागत मान्यता लगातार असहनीय हो रही है। इसमें कहा गया है, ‘इस वृद्धि का बड़ा हिस्सा खाद्य महंगाई की उम्मीदों में लगातार ऊपर की ओर बहाव से प्रेरित है।’
लेखकों ने पाया कि 2020 के दशक में खाद्य महंगाई दर ज्यादा रहना बड़ी समस्या बन गई है। उन्होंने कहा कि जून 2020 से जून 2024 के दौरान 57 फीसदी महीनों में खाद्य महंगाई दर 6 फीसदी या इससे अधिक रही है। इस दौरान 50 फीसदी या इससे अधिक महीनों के दौरान 12 खाद्य उप समूहों में करीब 6 की महंगाई दर 6 फीसदी या इससे ऊपर रही है।
इसमें कहा गया है, ‘यह बढ़ी हुई खाद्य महंगाई दर की व्यापक प्रकृति को साबित करता है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान खाद्य महंगाई दर का दबाव लगातार बना रहा है, जबकि मुख्य महंगाई दर गिरकर ऐतिहासिक निचले स्तर पर आ गई है। यह महंगाई दर को रोकने वाली मौद्रिक नीति के कारण हुआ है। रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि इसकी वजह से कम मुख्य महंगाई का लाभदायक असर खत्म हो सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘उच्च खाद्य महंगाई का असर परिवारों की महंगाई को लेकर धारणा और उम्मीदों पर पड़ रहा है। ऐसे में इसकी संभावना है कि इसका प्रसार गैर खाद्य कीमतों पर भी पड़ जाए।’ इसमें आगे कहा गया है कि खाद्य महंगाई दर को भारत में इसके लक्ष्य के भीतर रखना होगा और मौद्रिक नीति तय करते समय इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है।
रिपोर्ट में खाद्य महंगाई के झटकों की वजह हाल के दौर में आपूर्ति संबंधी समस्याओं, जलवायु संबंधी बदलावों, मॉनसून के वितरण, तापमान बढ़ने और बेमौसम बारिश को बताया गया है। इसमें कहा गया है कि ला नीना में गिरावट और अल नीनो की स्थितियों सहित वैश्विक जलवायु व्यवस्था ने भी 2020 से असर डाला है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य महंगाई दर 2020 के दशक में औसतन 6.3 फीसदी रही है, जबकि इसके पहले 2016 से 2020 की अवधि काफी अलग थी, जब औसत खाद्य महंगाई दर सिर्फ 2.9 फीसदी थी।