भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मंगलवार को कहा कि बैंकों द्वारा नीतिगत दर में कटौती का लाभ ग्राहकों तक बेहतर तरीके से पहुंचाया गया है। उन्होंने कहा कि भविष्य में नीतिगत दर में कटौती वृद्धि और महंगाई दर के परिदृश्य पर निर्भर होगी। मल्होत्रा ने सीएनबीसी-टीवी 18 से बातचीत में संकेत दिए कि बैंकिंग नियामक विदेशी बैंकों को भारतीय बैंकों में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी की अनुमति दे सकता है।
मल्होत्रा ने कहा कि फरवरी और मई के बीच नीतिगत रीपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती के बाद नए ऋण पर मई तक इसका असर 24 आधार अंक, जबकि पुराने ऋण पर 16 आधार अंक असर हुआ है।
उन्होंने कहा, ‘मैंने आंकड़ों (ब्याज पर असर) की हाल में समीक्षा की थी और मैं बताना चाहता हूं कि यह असर ठीक तरीके से हो रहा है।’ जून में केंद्रीय बैंक की 6 सदस्यों वाली मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत रीपो दर में जून में और 50 प्रतिशत कटौती करने का फैसला किया था, जिससे अब रीपो दर घटकर 5.5 प्रतिशत है।
जून में रीपो दर में 50 आधार अंक की कटौती के साथ केंद्रीय बैंक ने नीतिगत रुख बदलकर तटस्थ कर दिया था। मल्होत्रा ने कहा, ‘ इससे (तटस्थ रुख) हमें ऊपर या नीचे जाने का लचीलापन मिलता है, जो इस पर निर्भर है कि परिदृश्य कैसा रहेगा और आगे किस तरह के बदलाव होगे।’ उन्होंने संकेत दिए कि वृद्धि और महंगाई दर की स्थिति के मुताबिक भविष्य में दरों को लेकर नीतिगत दर तय करने वाली समिति की कार्रवाई होगी। उन्होंने कहा, ‘मौद्रिक नीति समिति हमेशा की तरह बदलती स्थिति और परिदृश्य पर ध्यान रखेगी और उसके बाद फैसला करेगी कि अर्थव्यवस्था को किस तरह की जरूरत है, किस तरह की नीतिगत दर होनी चाहिए। अगर महंगाई दर कम रहती है, जैसा अनुमान है, और वृद्धि सुस्त रहती है तो निश्चित रूप से नीतिगत दर में कटौती की जा सकती है। लेकिन यह ऐसी स्थिति है, जिस पर हमें नजर रखना है।’ उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक आंकड़ों पर निर्भर बना रहेगा और आने वाले आंकड़ों को देखने के बाद फैसला करेगा।
बैंक ऑफ अमेरिका के भारत और आसियान आर्थिक अनुसंधान प्रमुख राहुल बाजोरिया ने कहा, ‘जैसा कि गवर्नर ने आज दोहराया, रिजर्व बैंक के पास आने वाले आंकड़ों के आधार पर दोनों दिशाओं में कदम उठाने की लचीलापन है। महंगाई दर घटना कोई नई जानकारी नहीं है, लेकिन अगर वृद्धि दर अनुमान से बहुत कम रही, तो रिजर्व बैंक और नरम रुख अपना सकता है। अभी तक हमें इसके कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं, इसलिए हमें उम्मीद है कि अगस्त में स्थिति यथावत रहेगी।’
भारतीय बैंकों में विदेशी बैंकों को 26 प्रतिशत हिस्सेदारी देने को लेकर मल्होत्रा ने कहा कि इसकी अनुमति देने को लेकर नियामक का रुख खुला हुआ है। उन्होंने कहा, ‘विदेशी बैंकों के लिए वे 100 प्रतिशत तक जा सकते हैं। ऐसे में अगर आप उन्हें 26 प्रतिशत तक की भी अनुमति नहीं देते हैं, तो यह तर्क के विरुद्ध लगता है।’ इसके पहले रिजर्व बैंक ने विदेशी बैंकों को भारतीय बैंकों में उल्लेखनीय हिस्सेदारी की अनुमति दी थी। उदाहरण के लिए डीबीएस बैंक की भारत इकाई को लक्ष्मी विलास बैंक के अधिग्रहण की अनुमति दी गई, जो पुरानी पीढ़ी का निजी क्षेत्र का बैंक था। फेयरफैक्स बैंक को सीबीएस बैंक (कैथोलिक सीरियन बैंक) में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति दी गई थी।