कोल इंडिया द्वारा आपूर्ति किए जाने वाले कोयले की गुणवत्ता को लेकर कोयला और बिजली मंत्रालय तथा ताप विद्युत संयंत्रों के बीच वाक्-युद्घ और आरोप-प्रत्यारोप फिर से शुरू हो गया है। करीब आधा दर्जन राज्यों और सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी ने बिजली मंत्रालय को पत्र लिखकर कोयले की गुणवत्ता को लेकर शिकायत की है। उसका कहना है कि खराब गुणवत्ता के कोयले की आपूर्ति होने से उसे सालाना 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो रहा है।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों तथा बिजली मंत्रालय और एनटीपीसी ने इस मामले की जांच करने के लिए कोयला मंत्रालय को पत्र लिखे हैं।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने भी यह पत्र देखा है। इसमें आरोप लगाया गया है कि लोडिंग के समय कोयले की गुणवत्ता और मात्रा तथा उन्हें प्राप्त होने वाले कोयले की गुणवत्ता-मात्रा में अंतर होता है। राज्य सरकारों का कहना है कि कोयले की कमतर गुणवत्ता की वजह से उपभोक्ताओं के लिए बिजली की लागत बढ़ती है।
बिजली क्षेत्र के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कोयले की लागत का भार उपभोक्ताओं पर डाला जाता है तो राज्यों को सालाना 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है यानी उपभोक्ता के बिजली बिल में 10 पैसे का इजाफा होता है।
बिजली उत्पादकों का कहना है कि कोयला लोड करते समय तीसरे पक्ष द्वारा नमूना लेने की कवायद उपयोगी साबित नहीं हो रही है। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा, ‘राज्य वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति खस्ताहाल है और कोयले की आपूर्ति में अंतर से बोझ और बढ़ रहा है।’
हालांकि कोल इंडिया ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि कंपनी कोयले के ग्रेड और गुणवत्ता का सख्त अनुपालन करती है और सही मायने में ग्रेड में कमी के मामले घटे हैं। ईमेल से भेजे गए जवाब में कोल इंडिया ने कहा, ‘अप्रैल-फरवरी 2021 के दौरान कोल इंडिया द्वारा आपूर्ति किए गए कोयले की गुणवत्ता पिछले साल की समान अवधि के 59 फीसदी की तुलना में सुधरकर 65 फीसदी हो गई है। कोयला कंपनियां अपने से कोयले की औसत किस्म की घोषणा नहीं करती हैं बल्कि इसका निर्धारण सरकार के सांविधिक निकाय कोयला नियंत्रक कार्यालय द्वारा सालाना आधार पर किया जाता है।’
2015 में सरकार तीसरे पक्ष द्वारा कोयले के नमूने लेने तथा गुणवत्ता संबंधी विवाद के निपटारे के लिए विस्तृत प्रक्रिया लाई थी। एनटीपीसी और कोल इंडिया के बीच कोयले की गुणवत्ता को लेकर विवाद के सार्वजनिक होने के बाद यह निर्णय लिया गया था।
कोयला कंपनी और बिजली उत्पादकों की ओर से कोयले के नमूने लेने के लिए खनन एवं ईंधन अनुसंधान का केंद्रीय संस्थान (सीआईएमएफआर) को तीसरे पक्ष की एजेंसी नियुक्त किया गया था। संस्थान लोडिंग के समय कोयले के ग्रेड और गुणवत्ता का नमूना लेता है और उसके अनुसार बिल बनाया जाता है।
राज्य सरकार के स्वामित्व वाली बिजली उत्पादक कंपनियों का आरोप है कि कोयले के ग्रेड और गुणवत्ता में कम से कम 2 से 3 फीसदी का अंतर होता है और बिलिंग संयंत्र में कोयले की अनलोडिंग के आधार पर किया जाना चाहिए।
कोल इंडिया ने हाल ही में कहा था कि मंत्रालय द्वारा उसकी 35 खदानों के कोयले की ग्रेडिंग का पुनर्मूल्यांकन किया गया है लेकिन चार सहायक इकाइयों में कोयले की गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं पाया गया, अलबत्ता तीन सहायक इकाइयों में मामूली अंतर दिखा। चालू वित्त वर्ष में 374 खदानों का मूल्यांकन किया गया जिनमें से 335 खदानों में गुणवत्ता में कोई बदलाव नहीं हुआ। अलबत्ता 15 खदानों में कोयले की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
कोयला मंत्रालय ने हाल ही में अंतर-विभागीय बैठक में इस मसले पर चर्चा की और सुझाव दिया कि सीआईएमएफआर के अलावा अन्य एजेंसियों को कोयले का नमूना लेने के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए। कोयला मंत्रालय ने यह भी सुझाव दिया कि रेलवे को भी गुणवत्ता आश्वासन में पक्ष बनाना चाहिए।
सूत्रों ने कहा कि मंत्रालय ने निजी प्रयोगशालाओं तथा परीक्षण एजेंसियों को नमूना लेने के लिए साथ लाया जाना चाहिए। कोयला मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि बिजली मंत्रालय के साथ हुई अंतर-विभागीय बैठक में तीसरे पक्ष से कोयले के नमूना लेने के तरीके का मूल्यांकन करने का सुझाव दिया गया। इसमें कहा गया कि कोयला खरीदारों को परीक्षण एजेंसी नियुक्त करनी चाहिए और इन एजेंसियों के चयन में मंत्रालयों की कोई भूमिका नहीं होगी।
