अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अपने विजयी भाषण में कहा था कि अमेरिका के पास दुनिया के किसी भी देश से अधिक तरल सोना (पेट्रोलियम) मौजूद है, जबकि कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने संबंधी उनके बयान का उद्देश्य ईंधन कीमतों पर अंकुश बनाए रखना है।
ट्रंप ने बुधवार को कहा था कि देश के कच्चे तेल के विशाल भंडार का इस्तेमाल ऋण चुकाने में करेंगे। ट्रंप ने ऐलान किया, ‘हम कर्ज चुकाने पर ध्यान देंगे और करों का भार कम करेंगे। हम चीजों को इस तरह दुरुस्त करेंगे कि कोई अन्य नहीं कर सकता। जो संपदा हमारे पास है, वह चीन के पास नहीं है।’
यह कड़े तेवर वाला बयान इस बात का संकेत है कि अमेरिका अब ऊर्जा परिवर्तन नीतियों में बदलाव कर सकता है, जिसने जो बाइडन के कार्यकाल में हरित मोड़ लिया था। जलवायु परिवर्तन कार्यवाही के विरुद्ध स्पष्ट रुख अपनाने वाले ट्रंप ने पूर्व में भी जलवायु परिवर्तन को फर्जी करार दिया था।
ट्रंप के नेतृत्व में रिपब्लिकन पार्टी ने जीवाश्म ईंधन के प्रति थोड़ा नरम रवैया रखा है। अपने चुनावी अभियान के दौरान भी ट्रंप ने कोयला क्षेत्र में नौकरियां वापस लाने का वादा किया था। विशेषज्ञों का कहना है कि गरीब देशों को वित्तीय मदद समेत अमेरिका की जलवायु प्रतिबद्धताओं पर ग्रहण लग सकता है और इसी तरह का रुझान अन्य विकसित देशों में भी देखने को मिल सकता है।
द फासिल फ्यूल नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी इनिशिएटिव के ग्लोबल एंगेजमेंट डायरेक्टर हरजीत सिंह कहते हैं, ‘यदि ट्रंप अपने रुख पर कायम रहते हैं तो इसका उन देशों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा जो जलवायु परिवर्तन के लिए बहुत अधिक जिम्मेदार भी नहीं है।’
फौरी तौर पर इसका प्रभाव बाकू में होने वाले कॉप 29 पर देखने को मिल सकता है। रिपोर्ट के अनुसार ऐसी आशंका जताई जा रही है कि इस कॉप में वैश्विक नेतृत्वकर्ता देश शामिल नहीं होंगे। अगर यह आशंका सच साबित हुई तो फिर जलवायु परिवर्तन से निपटने को विकसित देशों से फंड जुटाने के प्रयासों को धक्का लग सकता है। कॉप29 अगले सप्ताह बाकू में आयोजित होगी।