केंद्रीय वित्त सचिव अजय सेठ ने कहा कि भारत के विकास के लिए धन की जरूरतें पूरी करने के लिए सार्वजनिक वस्तु एवं सेवा का उपयोग करने वालों की ओर से अधिक योगदान करने की जरूरत है, साथ ही जरूरतमंद लोगों को सस्ती या मुफ्त सेवाएं मुहैया कराना भी जरूरी है।
सेठ ने कहा कि ऐसे में अर्थव्यवस्था में निवेश का बोझ सिर्फ करदाता और सार्वजनिक उधारी पर न पड़े, जो भविष्य की पीढ़ियों पर एक कर जैसा है।
वित्त मंत्रालय में शीर्ष पद संभालने के बाद अपनी पहली सार्वजनिक टिप्पणी में सेठ ने कहा कि देश को निवेश में तेजी लाने और उत्पादन की सभी जगहों पर उत्पादकता बढ़ाने और सीमित घरेलू बचत को देखते हुए प्रतिस्पर्धी मांग और परिणाम में संतुलन बनाने की जरूरत है।
स्कॉच ग्रुप की ओर से आयोजित कार्यक्रम के दौरान शनिवार को सेठ ने कहा, ‘हमें बाहर से कुछ धन मिलता है, लेकिन वह एक सीमा से ऊपर नहीं हो सकता। ऐसे में विकास के लिए धन कहां से आएगा? मेरे विचार से 3 तरह के लोग हैं। करदाता या अगली पीढी, जिससे हम उधार ले सकते हैं। या फिर दर भुगतानकर्ता हैं। अब तक व्यापक तौर पर हमारी अर्थव्यवस्था करदाताओं या अगली पीढ़ी के भरोसे चल रही है, जो विकास का बोझ उठा रहे हैं। दर भुगतानकर्ताओं की भूमिका भी है, लेकिन वह बहुत मामूली है।’
बाद में बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में उन्होंने कहा कि दर भुगतानकर्ता ऐसे लोग हैं, जो सार्वजनिक सेवाओं के लिए उचित धनराशि का भुगतान करते हैं। उन्होंने कहा, ‘हमारे समाज में हमेशा एक वर्ग रहेगा, जिसे हमें सस्ती दरों पर सेवाएं मुहैया कराने की जरूरत होगी। संभव है कि कुछ सेवाएं मुफ्त देनी पड़ें, क्योंकि वे बहुत जरूरी हैं।’
सेठ ने कहा, ‘जब हम ट्रांसपोर्ट सेवा का इस्तेमाल करते हैं, चाहे व बस, मेट्रो या रेल हो, टिकट का भुगतान करते हैं। एक ऐसा वर्ग हो सकता है, जिसे सब्सिडी पर यह सेवा देने की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन हर किसी को इसकी जरूरत नहीं है। अगर हमारे शहरों में सभी शहरी बस परिवहन सेवा या बिजली मुफ्त कर दी जाए तो उसका कुछ लोगों पर भारी बोझ पड़ेगा।’उन्होंने कहा कि दर भुगतानकर्ताओं की भी विकास के लिए धन मुहैया कराने में अहम भूमिका है। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब राजनीतिक दलों में वोटरों को लुभाने के लिए भारी सब्सिडी पर या मुफ्त सेवाएं देने के वादे बढ़ रहे हैं। उन्होंने विकास को लेकर राज्यों के नजरिये पर भी चिंता जताई।
केंद्रीय वित्त सचिव सेठ ने उत्तर प्रदेश के राजकोषीय विवेक और जीएसडीपी का 5 प्रतिशत पूंजीगत व्यय करने का हवाला देते हुए कहा कि ज्यादा आमदनी वाले कई राज्य पूंजीगत व्यय पर अपने जीएसडीपी का सिर्फ 2 या 3 प्रतिशत खर्च कर रहे हैं और अभी भी राजकोषीय घाटे पर चल रहे हैं।