भारत की नई नीति में कंपनियों के लिए कंप्यूटर और संबंधित सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उत्पादों के आयात के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया गया है। इससे यहां कारोबार करने वाली लगभग 16 वैश्विक कंपनियों पर असर पड़ेगा, जो उन चार देशों में स्थित हैं, जिनके भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं।
1 नवंबर से लागू होने वाली इस नीति के संभावित असर के बारे में यह निष्कर्ष उद्योग संघों से एकत्र किए गए आंकड़ों से सामने आया है। इन देशों में अमेरिका और जापान शामिल हैं, जहां लगभग छह-छह कंपनियों को नए ऑर्डर के संबंध में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। हालांकि ये दोनों देश भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड) के प्रमुख सदस्य हैं।
प्रभावित होने वाली कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार भी है और जापान एफटीए (मुक्त व्यापार समझौता) भागीदार है।
इन नियमों से जिन कंपनियों पर असर पड़ेगा, उनमें अमेरिका में एचपी, डेल, ऐपल इंक, जुनिपर, सिस्को और एचपीई तथा जापान में तोशिबा, सोनी (वायो), एनईसी, पैनासोनिक, फुजित्सु और डायनाबुक शामिल है। तीसरा देश दक्षिण कोरिया है, जिसके साथ भारत का एफटीए है। दक्षिण कोरिया भारत का 10वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। इस नियम से सैमसंग और एलजी जैसी कंपनियां प्रभावित होंगी।
चौथा देश ताइवान है, जो भारत के वास्ते सेमीकंडक्टर के लिए रणनीतिक प्रौद्योगिकी साझेदार है। इसकी लैपटॉप कंपनियां आसुस और एसर भी प्रभावित होंगी। भारत 14 देशों के हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा (आईपीईएफ) समूह का भी सदस्य है, जिसमें अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया भी शामिल हैं।
एक देश जिसके साथ भारत के तनावपूर्ण संबंध हैं, वह है चीन। यानी लेनोवो को भी आयात लाइसेंस की इस व्यवस्था से चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार नई लाइसेंस व्यवस्था ‘सुरक्षा संबंधी चिंताओं’ के कारण शुरू की गई थी।
लेकिन प्रभावित होने वाली कुछ कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि इसका मकसद मुख्य रूप से उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत उत्पादों के स्थानीय विनिर्माण का संरक्षण करना है। भारत सालाना 19.7 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के लैपटॉप और पीसी का आयात करता है।
जिन कंपनियों को इसकी मार झेलनी पड़ेगी, वे ज्यादातर ऐसी कंपनियां हैं जो अपने पीसी को एक ही देश (चीन) में असेंबल करती हैं, जबकि एचपी और डेल जैसी कुछ कंपनियों का भारत में असेंबली परिचालन सीमित है।
अमेरिका के कारोबारी प्रमुखों का कहना है कि उन्हें इस बात की उम्मीद है कि अमेरिका की व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई, जो 23 से 25 अगस्त के बीच भारत आ रही हैं, इस मामले को भारत के सामने उठाएंगी। अमेरिका के लगभग आठ संगठनों ने 15 अगस्त को लिखे एक पत्र में ताई से आग्रह किया है कि वह सरकार से इस बारे में पुनर्विचार करने का आग्रह करें।