भारत इस वित्त वर्ष में 4 लाख करोड़ (ट्रिलियन) डॉलर से अधिक की अर्थव्यवस्था बनने की ओर है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने मंगलवार को बताया कि मार्च 2025 की समाप्ति पर सकल घरेलू उत्पाद 3.9 लाख करोड़ डॉलर के आंकड़े को पार कर गया था।
नागेश्वरन ने आईवीसीए ग्रीन रिटर्न समिट 2025 में मुख्य संबोधन देते हुए कहा, ‘अर्थव्यवस्था इस वित्त वर्ष में काफी हद तक 4 लाख करोड़ डॉलर के आंकड़े को पार कर रही है। हम मार्च, 2025 के अंत में 3.9 लाख करोड़ डॉलर पर थे और भूराजनीतिक स्थिति बेहद उथल पुथल की स्थिति में है। इसमें बेहद अनियमितता है। आर्थिक वृद्धि न केवल समृद्धि के लिए जरूर है बल्कि वैश्विक परिदृश्य में हमारी स्थिति व प्रभाव को बनाए रखने के लिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण शर्त है।’ आर्थिक वृद्धि पर्यावरणीय व पारिस्थितिक स्थिरता के लिए आवश्यक शर्त है।
उन्होंने कहा, ‘अगर हमें आने वाले 10-15 वर्षों में हर साल 80 लाख नौकरियों का सृजन करना है तो आर्थिक वृद्धि जरूर है। अगर हमें एक देश के बतौर 3.9 लाख करोड़ डॉलर के स्तर को पार करना है तो हमारी ऊर्जा जरूरतों का बढ़ना तय है।’ नागेश्वरन ने इंगित किया कि देश को पर्यावरण को ध्यान में रखने हुए वृद्धि व प्रगति दर्ज करनी चाहिए।
उन्होंने बताया, ‘हम जब अर्थव्यवस्था को पर्यावरण अनुकूल बनाने, ऊर्जा बदलाव, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन से निपटने और जलवायु अस्थिरता के संबंध में जो भी करें, वह निकट भविष्य व मध्यम अवधि दोनों में हमारी प्राथमिकताओं के अनुरूप होनी चाहिए।’
भारत को जलवायु अनुकूलन को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि जलवायु संबंधी ज्यादातर नुकसान उत्सर्जन के बजाय संवेदनशीलता के कारण होते हैं। उन्होंने कहा कि तटीय सुरक्षा, जल प्रणालियों, ताप प्रतिरोधक क्षमता और जलवायु-अनुकूल कृषि को मज़बूत करने से प्रणालीगत जोखिम कम होंगे और हमारा परिवर्तन अधिक स्थिर होगा।
सीईए के अनुसार देश की ऊर्जा मांग में वृद्धि निश्चित है। इसलिए केवल ऊर्जा परिवर्तन के स्टार्टअप से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण ऊर्जा तीव्रता में कमी लाने वाले स्टार्टअप हैं। ज्यादातर देशों ने ऊर्जा खपत के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने के बाद वर्ष 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन का संकल्प लिया है। भारत निम्न मध्यम आय वाला देश है और इसे ऊर्जा के उच्चतम स्तर को प्राप्त करना है।
एमएसएमई को विकास, आधुनिकीकरण और औपचारिक वित्त व आपूर्ति श्रृंखला के साथ समन्वय करने के समय पर वित्त और पूंजी मुहैया कराना महत्त्वपूर्ण है। नागेश्वरन ने कहा कि ग्लोबल अलायंस ऑफ मॉस आन्ट्रप्रनशिप की तीसरी डिलेड पेमेंट रिपोर्ट में कहा, ‘हमें एमएसएमई के मामले में नवाचार और गुणवत्ता के माध्यम से बाजार में अपनी पैठ बनाने की संस्कृति को बढ़ावा देने की जरूरत है। इसके लिए उनके उनके साथ निरंतर जुड़े रहना है।’ रिपोर्ट के अनुसार एमएसएमई को विलंबित भुगतान वित्त वर्ष 2022 में 10.7 लाख करोड़ रुपये से घटकर वित्त वर्ष 2024 में 8.1 लाख करोड़ रुपये हो गया है।