कोविड महामारी की विपरीत परिस्थितियों के बाद वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान राज्यों की वित्तीय सेहत में तेज सुधार हुआ है।
वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) के मुताबिक राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों (UT) का समेकित सकल राजकोषीय घाटा (GFD) वित्त वर्ष 21 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 4.1 प्रतिशत के शीर्ष स्तर पर था। यह वित्त वर्ष 22 और वित्त वर्ष 23 में 2.8 प्रतिशत रह गया। एफएसआर के मुताबिक यह स्तर वित्त वर्ष 23 के 3.4 प्रतिशत बजट अनुमान की तुलना में बहुत कम है।
समेकन की प्रमुख वजह राजस्व व्यय में गिरावट और राज्य जीएसटी के माध्यम से राज्यों का खुद का कर राजस्व बढ़ना है।
चालू वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 24) में राज्यों ने जीएफडी-जीडीपी अनुपात 3.2 प्रतिशत रखा है, जो केंद्र सरकार द्वारा तय सांकेतिक लक्ष्य 3.5 प्रतिशत से कम है। वित्त वर्ष 23 में जीएफडी 2.8 प्रतिशत था। इसके पहले के साल (वित्त वर्ष 21) में यह बहुत ज्यादा था, क्योंकि कोविड-19 की पहली लहर का बुरा असर पड़ा था।
भारतीय रिजर्व बैंक के एफएसआर में कहा गया है कि राज्यों का पूंजीगत व्यय 2021-22 में जीडीपी के 2.5 प्रतिशत के बराबर पहुंच गया था और 2022-23 में भी यह इतना ही बना रहा।
राज्यों का पूंजीगत व्यय 2023-24 के बजट अनुमान में जीडीपी के 3.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। वहीं दूसरी ओर राजस्व व्यय 2021-22 के जीडीपी के 14.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 (पीए) में 13.5 प्रतिशत रह गया। इसकी वजह से व्यय की गुणवत्ता में सुधार आया है।
राज्यों के राजस्व व्यय और पूंजीगत आवंटन (आरईसीओ) का अनुपात 2020-21 के 7.1 की तुलना में सुधरकर 2023-24 में बजट अनुमान के मुताबिक 5.1 प्रतिशत हो गया है।
राज्यों द्वारा राजकोषीय समेकन के गंभीर प्रयास से उनकी कुल बकाया देनदारी में भी पिछले 3 साल में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। मार्च 2021 के अंत में यह 15 साल के शीर्ष स्तर जीडीपी के 31 प्रतिशत के बराबर था, जो मार्च 2023 के अंत में घटकर जीडीपी के 27.9 प्रतिशत पर आ गया है।