भारत ने अमेरिका के नेतृत्व वाले इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) से संबंधित व्यापार संबंधी अधिनियम से शुक्रवार को हाथ खींच लिया। उसने कहा कि यह स्पष्ट ही नहीं है कि भारत सहित अन्य सदस्य देशों को इस स्तर पर वार्ता के माध्यम से क्या लाभ हो सकता है।
विशेषज्ञ भारत के इस कदम को सही बताते हैं। वे कहते हैं फिलहाल आईपीईएफ के तहत व्यापार संबंधों से बाहर निकलना सही दिशा में उठाया गया कदम है क्योंकि भारत अभी श्रम, पर्यावरण मानकों, डिटिजल व्यापार जैसे मुद्दों से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार ही नहीं है। इन सभी क्षेत्रों में घरेलू विनियम परिपक्वता के स्तर पर नहीं पहुंचे हैं, इसलिए भारत ने यह कदम उठाया है।
उन्होंने यह भी बताया कि इस कदम की तुलना चीन समर्थित एशियाई व्यापार ब्लॉक क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से दूर जाने के लिए भारत के निर्णय से नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वास्तव में भारत चार स्तंभों में से किसी एक में शामिल होने के लिए आईपीएफ की ओर से दी गई ढिलाई का अपने हित में लाभ ले रहा है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर विश्वजित धर ने कहा कि व्यापार संबंधी मुद्दों से दूर रहना भारत के लिए अच्छा होगा क्योंकि आईपीईएफ के तहत व्यापार स्तंभ भारत के लिए कृषि सहित कई संवेदनशील मुद्दों से संबंधित है।
धर ने कहा, ‘यदि एक स्तंभ (व्यापार स्तंभ) बाहर हो जाता है और अमेरिका अपनी रिकवरी में तेजी लाना चाहता है, तो किसी को देखना होगा कि अमेरिकी सरकार आईपीईएफ के समग्र संतुलन को लेकर क्या सोचती है। अगर भारत के बाहर चले जाने पर सभी समीकरण गड़बड़ हो जाते हैं तो, यह संभव है कि बाद में भारत इसमें शामिल हो सकता है। इस परिदृश्य पर हम नजर बनाए हुए हैं।’सिंगापुर राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज के वरिष्ठ रिसर्च फेलो अमितेंदु पालित कहते हैं कि जहां तक अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ता का सवाल है, भारत के पास श्रम और पर्यावरण मानकों, स्थिरता और डिजिटल व्यापार जैसे मुद्दों से निपटने के लिए पर्याप्त अनुभव नहीं है। पालित कहते हैं, ‘इन सभी क्षेत्रों में घरेलू विनिमय अभी भी परिपक्वता के स्तर पर नहीं पहुंचे हैं, इसके परिणामस्वरूप भारत यह कदम उठा सकता है। जल्दबाजी करने के बजाय, भारत के लिए यह बेहतर होगा कि वह ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के व्यापार समझौते से अनुभव ले और अधिक तैयारी के साथ वापस आए।’