अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान में 20 आधार अंक कमी कर दी है। IMF ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 5.9 प्रतिशत रह सकती है। उसने पिछले वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर 6.8 रहने का अनुमान जताया था।
IMF का अनुमान भारत की वृद्धि के बारे में तमाम वैश्विक संस्थाओं के अनुमान में सबसे कम है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए विश्व बैंक ने 6.3 प्रतिशत और एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) ने 6.4 प्रतिशत वृद्धि दर का अनुमान लगाया है।
IMF ने साल में दो बार प्रकाशित होने वाले अपने विश्व आर्थिक अनुमान की ताजी रिपोर्ट में कहा है कि वित्त वर्ष 2023 में भारत में खुदरा महंगाई दर 6.7 प्रतिशत रही थी, जो चालू वित्त वर्ष में घटकर 4.9 प्रतिशत रह सकती है। इसी तरह चालू खाते का घाटा भी पिछले वित्त वर्ष के अनुमानित 2.6 प्रतिशत के मुकाबले कम होकर 2.2 प्रतिशत ही रहना चाहिए। क्रय शक्ति समानता की बात करें तो भारत में प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि 4.9 प्रतिशत रह जाने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2023 में 5.8 प्रतिशत थी।
IMF में मुख्य अर्थशास्त्री पियरे-ऑलिवियर गुरिंचस ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था महामारी और यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई से पैदा हुए संकटों से उबर रही है मगर हालिया बैंकिंग संकट से पता चलता है कि हालत अभी नाजुक है। उन्होंने कहा, ‘चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से सामान्य हो रही है। आपूर्ति श्रृंखला में आई रुकावट दूर हो रही है और युद्ध के कारण ऊर्जा और खाद्य बाजार में हुई उठापटक भी धीरे-धीरे कम हो रही है। साथ ही दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीति में एक साथ की गई भारी सख्ती के कारण मुद्रास्फीति में भी कमी आनी चाहिए।’
IMF का अनुमान है कि अगले साल 3 प्रतिशत की रफ्तार हासिल करने से पहले 2023 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर कम होकर 2.8 प्रतिशत ही रह सकती है।
वाशिंगटन में मुख्यालय वाले IMF ने कहा कि अनिश्चितताओं से निपटने के लिए नीति निर्धारकों को सधे हाथों और स्पष्ट संवाद के साथ काम करना होगा। गुरिंचस ने कहा, ‘वित्तीय अस्थितरता पर काबू होने के बाद मौद्रिक नीति का जोर मुद्रास्फीति को नीचे लाने पर होना चाहिए मगर उसे वित्तीय घटनाक्रमों के हिसाब से बदलने को भी तैयार रहना चाहिए। उम्मीद की किरण यह है कि बैंकिंग संकट से सभी प्रकार की गतिविधियां धीमी होंगी क्योंकि बैंक उधार देने में कमी करेंगे। इससे मौद्रिक नीति कड़ी करने की जरूरत भी कम होनी चाहिए। मगर यह उम्मीद करना ठीक नहीं होगा कि बैंक महंगाई के खिलाफ जंग जल्दी छोड़ देंगे। ऐसा हुआ तो प्रतिफल कम हो जाएंगे, जरूरत से ज्यादा गतिविधियां होंगी और मौद्रिक समितियों का काम मुश्किल हो जाएगा।’
IMF ने कहा कि वैश्विक वित्तीय शर्तें कड़ी करने से तेजी से उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से रकम बाहर निकल जाएगी और देशों के खजानों पर असर पड़ेगा। इससे कारोबार के लिए हालात मुश्किल हो जाएंगे।