बेहद अमीर लोगों पर संपत्ति व विरासत कर लगाने से भारत अपने कर राजस्व को बढ़ा सकता है। एक नए अध्ययन के अनुसार यह कर लगाए जाने पर एक फीसदी से भी कम आबादी प्रभावित होगी।
सैम पित्रोदा ने हाल ही में अमेरिका का उदाहरण देकर विरासत कर का जिक्र किया था। इसके बाद विरासत कर के इर्दगिर्द चर्चा शुरू हो गई थी। वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब ने शुक्रवार को नवीनतम अध्ययन ‘भारत में कर न्याय और संपत्ति के पुन: वितरण’ में कहा कि 10 करोड़ से अधिक शुद्ध संपत्ति व अचल संपत्ति होने पर 2 फीसदी संपत्ति कर और 33 फीसदी विरासत शुल्क लगाए जाने की स्थिति में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.7 फीसदी के बराबर कर राजस्व प्राप्त किया जा सकता है।
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के नितिन कुमार भारती, हार्वर्ड केनेडी स्कूल के लुकास चांसल और पेरिस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के थॉमस पिकेटी व अनमोल सोमांची ने 2022-23 के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इन लेखकों के अनुसार यह कर लगाए जाने की स्थिति में महज 0.04 फीसदी 3,30,000 वयस्कों की आबादी पर कर लगेगा और ऐसे में 99.96 प्रतिशत आबादी अप्रभावित रहेगी।
सामान्य वेरिएंट में 100 करोड़ रुपये से अधिक संपत्ति या अचल संपत्ति वाले लोगों पर संपत्ति कर बढ़ाकर 4 फीसदी और विरासत कर 45 फीसदी किया जा सकता है। ऐसे में कर राजस्व जीडीपी का 4.6 फीसदी हो सकता है।
महत्त्वाकांक्षी वेरिएंट में 100 करोड़ रुपये से अधिक संपत्ति या अचल संपत्ति वाले लोगों पर संपत्ति कर की दर 3 से 5 फीसदी और विरासत कर को 45 से 55 फीसदी किया जा सकता है। ऐसे में जीडीपी के 6.1 फीसदी तक कर राजस्व हासिल किया जा सकता है। अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होने पर इसे सामाजिक क्षेत्रों पर अधिक खर्च किया जा सकता है।
हाल के वर्षों में आमदनी का अंतर बढ़ा है। साल 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार, देश की राष्ट्रीय आय का 22.6 फीसदी शीर्ष 1 प्रतिशत आबादी के पास है, जबकि नीचे की 50 फीसदी आबादी राष्ट्रीय आय का महज 15 फीसदी कमाती है।
वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब की पुरानी रिपोर्ट के अनुसार 2023 में राष्ट्रीय संपदा का करीब 40 फीसदी पर शीर्ष 1 फीसदी आबादी का कब्जा है जबकि नीचे की 50 फीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय संपदा का महज 6.4 फीसदी है।