सरकार उद्योग जगत को उन दस्तावेजों से परिचित कराने में मदद करने की योजना बना रही है, जिनकी आवश्यकता निर्यात उत्पादों पर शुल्कों या करों में छूट (आरओडीटीईपी) संबंधी प्रतिपूर्ति के लिए होती है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी।
पिछले साल अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) ने भारत की निर्यात प्रोत्साहन योजना के खिलाफ कुछ उत्पादों पर प्रतिकारात्मक या एंटी सब्सिडी ड्यूटी लगा दी थी, क्योंकि उद्योग उन्हें जरूरी साक्ष्य नहीं दे सका था। इसे देखते हुए सरकार निर्यातकों को जागरूक करने की कवायद कर रही है।
आरओडीटीईपी योजना के तहत निर्यातकों के इनपुट पर केंद्र, राज्य और स्थानीय प्रशासन द्वारा लगाए गए कर को वापस कर दिया जाता है और यह विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के मानकों के अनुरूप है।
सरकार के अधिकारियों का मानना है कि भारत के उत्पादों पर सब्सिडी के खिलाफ शुल्क इसलिए लगाया गया था क्योंकि उद्योग जगत विदेश के प्रतिनिधियों की जांच के दौरान कर वापस किए जाने का पर्याप्त सबूत नहीं दिखा सका था।
इसकी वजह से अमेरिकी अधिकारियों ने माना कि भारत के निर्यातकों को आरओडीटीईपी योजना के तहत सब्सिडी मिल रही है और यह वैश्विक व्यापार के नियमों के खिलाफ है। प्रतिकारात्मक शुल्क आयात की जाने वाली वस्तुओं पर लगाया गया था, जिससे निर्यातकों को उनके देश में मिल रहे सब्सिडी के लाभ का प्रतिकार किया जा सके।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘प्रतिकारात्मक शुल्क के लिए जांच चल रही थी, उस दौरान जांचकर्ता (अन्य देशों के) भारत आए। उन्होंने संयंत्रों का दौरा किया और संबंधित दस्तावेजों के बारे में जानकारी मांगी। दस्तावेज दिखाना अहम था।’
अधिकारी ने कहा, ‘जब जांचकर्ता आए, निर्यातकों को कहना था कि आरओडीटीईपी वापसी पर आधारित योजना है और उसके लिए उन्हें बिजली, राज्य स्तर पर लगने वाले ईंधन की लागत (वैट) व अन्य साक्ष्य दिखाने पड़ते हैं। हम निर्यातकों को इसके बारे में जागरूक करने के लिए कदम उठा रहे हैं, जिससे निर्यातक पूरी जानकारी हासिल कर सकें और कागजात संबंधी जरूरतें पूरी कर सकें।’