नैशनल लॉजिस्टिक्स को दुरुस्त करने की योजना के तहत केंद्र सरकार 5 तटीय शिपिंग परियोजनाओं में निजी हिस्सेदारी आमंत्रित कर सकती है। बिजनेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (बीजीएफ) के प्रावधानों के साथ इस योजना को मूर्त रूप दिया जा सकता है।
केंद्रीय बजट पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा की गई घोषणाओं के मुताबिक यह कदम उठाया जा रहा है। उन्होंने कहा था, ‘सार्वजनिक निजी हिस्सेदारी (पीपीपी) मॉडल पर वीजीएफ के साथ यात्रियों की आवाजाही और माल ढुलाई दोनों में ही तटीय शिपिंग को प्रोत्साहन दिया जाएगा, जो ऊर्जा सक्षम और परिवहन का सस्ता माध्यम है।’
एक अधिकारी ने कहा, ‘इन 5 परियोजनाओं को चिह्नित करने पर काम चल रहा है। इसका मकसद ज्यादा मांग वाले आर्थिक क्षेत्रों को जोड़ना है, जहां बुनियादी ढांचे की कमी है या सड़क व रेल मार्ग जैसे परिवहन के परंपरागत तरीके अपनी पूरी क्षमता पर पहुंच चुके हैं।’
अधिकारी ने कहा कि यह तटीय शिपिंग को प्रोत्साहन देने के लिए बनी कार्ययोजना का हिस्सा है, जिसमें केंद्र की बहुलांश हिस्सेदारी है।
बंदरगाह, जहाजरानी एवं जलमार्ग मंत्रालय ने 12 रोड शो करने की योजना बनाई है। साथ ही इसमें कई प्रावधान किए जाएंगे, जिससे तटीय शिपिंग परियोजना में निजी क्षेत्र की दिलचस्पी हो सके।
इन प्रावधानों में प्रमुख जिंसों जैसे कोयला और उर्वरकों की इन परियोजनाओं के माध्यम से न्यूनतम गारंटीयुक्त मात्रा में ढुलाई का प्रावधान किया जाना शामिल है। ढुलाई की मात्रा को लेकर निजी कारोबारियों की कुछ चिंता है।
एशियन डेवलपमेंट बैंक ने भी 2019 की अपनी रिपोर्ट में तटीय शिपिंग को बढ़ावा देने के मसले का उल्लेख किया था।
कॉर्गो की मात्रा का आश्वासन भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि रेल-समुद्र-रेल के माध्यम से ढुलाई पूरी तरह से रेल से ढुलाई की तुलना में महंगी है। यह निजी कारोबारियों के लिए चिंता का विषय है। सार्वजनिक कंपनियां प्रमुख जिंसों जैसे कोले की ढुलाई इस तरीके से कर सकती हैं क्योंकि गर्मियों के समय में रेल से ढुलाई की व्यवस्था पर बोझ बहुत ज्यादा होता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने में भारत के बंदरगाहों की भूमिका अहम हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में गंभीर कारोबारी मौजूद हैं।