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Free schemes: खजाने पर भारी पड़ रहीं चुनावी रेवड़ियां

कई राज्यों में बिजली सब्सिडी जैसी कल्याणकारी योजनाओं पर लटकी तलवार

Last Updated- January 10, 2025 | 10:23 PM IST
DA hike

चुनावों के समय ऐलान की जाने वाली लोकलुभावन योजनाएं सरकारी खजाने पर भारी पड़ रही हैं। जो भी राजनीतिक दल इनके बल पर चुनाव जीतता है,उस पर इन्हें लागू करने का दबाव रहता है। ऐसे में इन योजनाओं के लिए रकम जुटाने को अन्य मदों में या तो कटौती की जाती है या शुल्क बढ़ोतरी के रास्ते तलाशे जाते हैं। अब कई राज्यों की सरकारें उसी दौर से गुजर रही हैं।

साल 2024 में लोक सभा समेत 8 राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में सभी राजनीतिक दलों ने महिलाओं को नकद भुगतान समेत तमाम कल्याणकारी योजनाओं के वादों से मतदाताओं को लुभाया। इस वर्ष केवल दिल्ली और बिहार में विधान सभा चुनाव होने हैं। इससे राजनीतिक दलों पर ज्यादा दबाव नहीं है और अगले चुनाव तक स्थितियों को संतुलित करने के लिए उनके पास काफी समय है। इसलिए कई राज्यों की सरकारें अभी से मुफ्त बिजली जैसी योजनाओं की सब्सिडी में कटौती के संकेत देने लगी हैं। इसके लिए वे महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा और नकद योजनाओं में होने वाले भारी-भरकम खर्च का हवाला दे रही हैं।

दिल्ली में फरवरी की शुरुआत में विधान सभा चुनाव होंगे। इसके बाद पुजारियों के लिए प्रति माह 18,000 रुपये और महिलाओं को 2,100 रुपये नकद देने की एक और मुफ्त योजना शुरू हो सकती है। लेकिन, नए साल के पहले सप्ताह में कई राज्य सरकारों ने ऐसे संकेत दिए हैं कि नकद भुगतान और इसी तरह की अन्य मुफ्त योजनाओं से उन पर भारी वित्तीय दबाव है और वे मुफ्त योजनाओं में कटौती के विकल्प तलाश रही हैं। पिछले कुछ सप्ताह में हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश ने बिजली सब्सिडी कम करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, जबकि कर्नाटक की सरकार ने राज्य परिवहन की बसों के किराये में वृद्धि कर दी है।

हिमाचल प्रदेश में बिजली

बीते 1 जनवरी को हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने नाम पर पंजीकृत सभी पांच बिजली कनेक्शनों की सब्सिडी खत्म कर दी। उन्होंने राज्य के समृद्ध और खासकर एक से अधिक कनेक्शन वाले उपभोक्ताओं से भी ऐसा ही कदम उठाने का अनुरोध किया है, क्योंकि उन्हें प्रत्येक कनेक्शन पर 125 यूनिट बिजली मुफ्त मिलती है।

हिमाचल पर 86,589 करोड़ रुपये का ऋण भार है। पिछले साल सरकारी कर्मचारियों को वेतन देर से मिला था। सरकार की कुछ कल्याणकारी योजनाओं से राज्य के संसाधनों पर दबाव आ पड़ा है। एक साल पहले राज्य सरकार ने इंदिरा गांधी प्यारी सुख सम्मान निधि योजना लागू की थी, जिसके तहत 18 वर्ष से अधिक उम्र की पात्र महिलाओं को हर माह 1,500 रुपये दिए जाने का प्रावधान है। पिछले सप्ताह शिमला में मुख्यमंत्री और उनके सभी मंत्रियों-विधायकों ने अपनी सब्सिडी छोड़ने का ऐलान किया था।

हिमाचल में बिजली सब्सिडी पर 2,200 करोड़ रुपये और बिजली बोर्ड के कर्मचारियों के वेतन व पेंशन पर हर महीने 200 करोड़ यानी सालाना 2,400 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। यहां हाल ही में बिजली बोर्ड ने साफ कह दिया कि सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को 1 जनवरी से 125 यूनिट बिजली मुफ्त नहीं मिलेगी। इससे सरकार को करीब 750 करोड़ रुपये की बचत होगी। सरकार के इस कदम की विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कड़ी आलोचना की। उन्होंने सरकार पर न केवल 2022 के चुनावों में किए गए 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने के अपने वादे से मुकरने बल्कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई 125 यूनिट मुफ्त बिजली छीनने का भी आरोप लगाया।

कर्नाटक में बस किराया

कर्नाटक में नए साल की पहली कैबिनेट बैठक में बीते 2 जनवरी को बस किराये में 15 फीसदी इजाफे पर मुहर लगा दी गई। राज्य की कांग्रेस सरकार ने मई 2023 में अपना चुनावी वादा पूरा करते हुए महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा की शक्ति योजना शुरू की थी। अब बढ़े किराए का सीधा असर पुरुष यात्रियों पर पड़ेगा। किराया वृद्धि से सरकार को सालाना 784 करोड़ रुपये अतिरिक्त मिलेंगे। सरकार का तर्क है कि पिछली बार किराया 2015 में बढ़ा था और अब नया स्लैब लागू होने के बाद भी यहां किराया महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से कम है। विपक्षी दल भाजपा ने सरकार के इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है।

परिवहन मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि राज्य की महिलाएं भाजपा को वोट नहीं देंगीं। सिद्धरमैया सरकार ने कहा था कि वह गृह लक्ष्मी योजना जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है जिसके तहत पात्र महिलाओं को 2,000 रुपये मासिक दिए जाते हैं। लेकिन, दिव्यांग लोगों समेत अन्य के लिए चलाई जाने वाली कुछ योजनाओं के बजट आवंटन में कटौती कर दी गई है। ये बात केवल कांग्रेस की कर्नाटक और हिमाचल सरकार ही नहीं हैं, जो अपने वित्तीय ढांचे को दुरुस्त करने में जुटी हैं, मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार भी इसी राह पर है।

मध्य प्रदेश में गैर जरूरी व्यय

हाल ही में बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा था कि उनकी सरकार खास कर बिजली क्षेत्र में गैर जरूरी व्यय पर लगाम लगाने की कोशिश में जुटी है। यादव ने कहा, ‘राज्य में किसानों को हर साल 15,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जाती है, जो उनकी कुल बिजली खपत की 93 फीसदी है। यदि हम हस्तक्षेप नहीं करते हैं तो यह बोझ बढ़ता जाएगा। सोलर पंप के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराकर हम तीन वर्षों में बिजली सब्सिडी को शून्य करना चाहते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘राज्य में शहरी और किसान उपभोक्ताओं को लगभग 25,000 करोड़ रुपये सब्सिडी जाती है। हमारा लक्ष्य इसे खत्म करना है।’

डगमगा रहा आत्मविश्वास?

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि आठ राज्यों महाराष्ट्र, दिल्ली, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और पश्चिम बंगाल में महिलाओं को नकदी देने की योजना पर कुल 2.11 लाख करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। चूंकि इस रिपोर्ट में असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और झारखंड में चल रही योजनाओं के आंकड़े शामिल नहीं हैं, तो यदि इन्हें भी मिलाया जाए तो यह रकम दोगुनी से भी अधिक होगी।

कर्नाटक में महिलाओं के लिए नकद योजना पर 28,608 करोड़ की रकम खर्च होती है जो राज्य की कुल राजस्व प्राप्ति की 11 फीसदी के बराबर है। मध्य प्रदेश में यह 7 फीसदी और महाराष्ट्र में 9 फीसदी है। महाराष्ट्र की नई सरकार अपना चुनावी वादा पूरा करती है तो यह रकम और बढ़ जाएगी। बढ़ते ऋण भार के कारण पंजाब की आप सरकार इस प्रकार की योजना को लागू करने से बच रही है।

दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं कि मुफ्त योजनाएं मतदाताओं में राजनीतिक दलों के डगमागते आत्मविश्वास को दर्शाती हैं, क्योंकि वे उन्हें मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने में नाकाम रहती हैं। इसलिए वे मतदाताओं का दिल जीतने के लिए मुफ्त योजनाओं का सहारा लेती हैं। वह कहते हैं, ‘दीर्घावधि में इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।’

First Published - January 10, 2025 | 10:23 PM IST

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