वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि लगातार चल रही आर्थिक चुनौतियां और प्रौद्योगिकी में तेजी से हो रहे बदलाव रोजगार बाजार में जा रहे युवाओं के लिए जरूरी कौशल को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं। इसके कारण रोजगार दुनिया भर में सबसे अहम समस्या बन गया है। विश्व बैंक अधिक रोजगार उत्पन्न करने में कैसे मदद कर सकता है, इस विषय पर वॉशिंगटन डीसी में चल रही चर्चा के दौरान वित्त मंत्री ने यह बात कही।
सीतारमण ने आंकड़ों, विश्लेषण और ज्ञान पर आधारित काम से जुड़े रोजगार सृजन करने वाले उच्च प्राथमिकता के कौशल क्षेत्रों की पहचान करने के लिए विश्व बैंक से देशों के साथ सहयोग करने का आह्वान किया, जिसमें रोजगार के सृजन, कौशल के मिलान और श्रमिकों को बनाए रखने जैसे मसलों पर ध्यान केंद्रित हो।
‘विश्व बैंक को अपनी भविष्य की रणनीतिक दिशा कैसे तय करनी चाहिए तथा उभरते मेगाट्रेंड के साथ तालमेल रखने के लिए अधिक नौकरियों के सृजन में ग्राहकों की कैसे मदद करनी चाहिए’, इस विषय पर एक चर्चा के दौरान सीतारमण ने यह टिप्पणी की।
सीतारमण ने वृद्धि की वैकल्पिक रणनीतियों की तलाश की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि परंपरागत विनिर्माण के नेतृत्त्व में विकास की राह पर चलने के अलावा अलग तरह के रोजगार सृजित किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि वक्त की जरूरत है कि अधिक व्यापक, बहुक्षेत्रीय विश्लेषण किया जाए, जिसमें यह जांच की जाए कि उभरते रुझान किस प्रकार एक दूसरे पर असर डालते हैं तथा नौकरी छूटने और नौकरी सृजन दोनों को प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा, ‘इस विश्लेषण में भू-राजनीतिक अंतर और खाद्य उत्पादन, निर्यात और इसे जुड़े रोजगार जैसे क्षेत्रों पर इसके प्रभाव के कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिए।’
वित्त मंत्री ने परिणाम पर केंद्रित खाके के महत्त्व को रेखांकित किया, जिसमें योजना को लागू करने की पूरी रणनीति और कार्ययोजना शामिल हो। वाशिंगटन डीसी में जी-20 के वित्त, जलवायु एवं पर्यावरण, तथा विदेश मामलों के मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की संयुक्त बैठक में सीतारमण ने विकासशील देशों को उचित लागत पर वित्तीय संसाधनों और प्रौद्योगिकियों तक अधिक पहुंच प्रदान करके वैश्विक प्रयासों को दिशा प्रदान करते हुए विकास की प्राथमिकताओं और जलवायु कार्रवाई के बीच संतुलन बनाने का आह्वान किया है।
उन्होंने नए सामूहिक लक्ष्य तैयार करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिसमें विकासशील देशों की जरूरतें शामिल हों और उसमें वित्त का प्रावधान किया गया हो। सीतारमण ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मसले पर यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) और पेरिस समझौते के मुताबिक विकसित और विकासशील देशों के बीच तालमेल के साथ प्रभावी वैश्विक प्रतिक्रिया देने की जरूरत है, जिसमें समता के सिद्धांतों का पालन हो, लेकिन देशों की क्षमता के मुताबिक अलग-अलग दायित्व सौंपे जाएं।