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Economic Survey 2024: बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले 13.5 करोड़ भारतीय, गांवों में बेहतर प्रदर्शन

Economic Survey: सबसे महत्त्वपूर्ण सुधार बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान जैसे राज्यों में हुआ है। इनमें UP में सबसे ज्यादा गरीबों की संख्या में गिरावट आई।

Last Updated- July 22, 2024 | 11:29 PM IST
Economic Survey 2024: 13.5 crore Indians came out of multidimensional poverty, better performance in villages Economic Survey 2024: बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले 13.5 करोड़ भारतीय, गांवों में बेहतर प्रदर्शन

Economic Survey 2024: आर्थिक समीक्षा 2023-24 में कहा गया है कि वर्ष 2015-16 से 2019-21 के दौरान 13.5 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बाहर आ गए हैं। यह महत्त्वपूर्ण प्रगति राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) में तेज गिरावट से पता चली है। एमपीआई 2015-16 में 0.117 था जो 2019-21 में आधा गिरकर 0.066 हो गया।

ग्रामीण भारत ने इन रुझानों की अगुआई की है। सबसे महत्त्वपूर्ण सुधार बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान जैसे राज्यों में हुआ है। इनमें उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गरीबों की संख्या में गिरावट आई जहां 2015-16 से 2019-21 के बीच 3.43 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले।

यह उल्लेखनीय है कि 2016 से 2021 के दौरान 10 प्रतिशत से कम बहुआयामी गरीबी वाले राज्यों की संख्या 7 से बढ़कर 14 हो गई। वर्ष 2017-18 से 2023-24 के दौरान सामाजिक सेवाओं पर जीडीपी का खर्च 6.7 प्रतिशत से बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गया।

एमपीआई में गिरावट दर्शाती है कि लोगों की संख्या के अनुपात में कमी आई है और गरीबी की तीव्रता में भी काफी गिरावट आई है। भारत 2030 तक बहुआयामी गरीबी को मौजूदा से घटाकर कम से कम आधी करने के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के रास्ते पर है।

नीति आयोग एमपीआई की गणना करता है और यह यूएनडीपी के वैश्विक एमपीआई प्रारूप के अनुरूप है। इसमें तीन बराबर भारांश वाले आयाम : स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर शामिल हैं। इन आयामों को गरीबी के स्तर के आकलन के लिए फिर 12 भारांश सूचकांक में विभाजित किया गया है।

हालांकि लोगों का अनुपात बहुआयामी गरीबी के प्रसार को मापता है और बहुआयामी गरीबी की तीव्रता की गणना वंचित स्कोर से की जाती है (यानी एक गरीब किन किन चीजों से वंचित है)। अगर वेटेड वंचित स्कोर 0.33 है तो वह परिवार एमपीआई – गरीब माना जाएगा। इस प्रकार सूचकांक को लोगों के अनुपात (एचसीआर) और तीव्रता के उत्पाद के रूप में प्राप्त किया जाता है।

हालांकि अर्थशास्त्रियों ने कहा कि एमपीआई गरीबी का सूचकांक नहीं है और यह अभावों का सूचकांक ज्यादा है। एमपीआई आमदनी के बारे में कुछ भी नहीं कहता। आईएमएफ के कार्यकारी निदेशक सुरजीत भल्ला और सांख्यिकी पर स्थायी समिति के चेयरमैन प्रणव सेन ने इस महीने कहा था कि भारत को गरीबी रेखा की सख्त जरूरत है। इतना ही नहीं, शिक्षा और कौशल विकास बढ़ने के साथ-साथ अन्य पहलों के कारण महिला सशक्तीकरण बढ़ा है। इस कारण महिला श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) 2017-18 के 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 37 प्रतिशत हो गई है।

हालांकि ग्रामीण भारत ने रुझानों को बढ़ाया है जहां तीन चौथाई महिला श्रमिक कृषि के कामों से जुड़ी हुई हैं। समीक्षा में कहा गया है कि बढ़ती महिला श्रमबल भागीदारी दर को ग्रामीण महिला श्रमबल की पात्रता और जरूरतों के अनुरूप ऊंचे मूल्य वर्धित क्षेत्रों में इस्तेमाल करने की जरूरत है।’

स्वास्थ्य सेवा किफायती हुई

आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि भारत में स्वास्थ्य देखभाल अधिक किफायती और लोगों की पहुंच में आई है। इसका कारण यह है कि कुल स्वास्थ्य खर्च (टीएचई) में सरकारी स्वास्थ्य के खर्च (जीएचई) की हिस्सेदारी अधिक बढ़ गई है। वित्त वर्ष 20 का राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा दर्शाता है कि कुल जीडीपी में सरकारी स्वास्थ्य खर्च (जीएचई) की हिस्सेदारी के साथ साथ टीएचई में जीएचई की हिस्सेदारी बढ़ी है।

GHE में प्राथमिक स्वास्थ्य व्यय वित्त वर्ष 15 में जीएचई का 51.3 प्रतिशत था जो वित्त वर्ष 20 में बढ़कर 55.9 प्रतिशत हो गया। दूसरी तरफ निजी स्वास्थ्य खर्च में प्राथमिक और द्वितीयक देखभाल की हिस्सेदारी 83.30 प्रतिशत से गिरकर 73.7 प्रतिशत रह गई। इसकी वजह हार्ट, मधुमेह जैसे असाध्य (टेरिटरी) रोगों का दबाव बढ़ना और प्राथमिक स्वास्थ्य के लिए सरकारी सुविधाओं का इस्तेमाल बढ़ना है।

अधिक पंजीकरण लेकिन प्रदर्शन गिरा

भारत में वित्त वर्ष 18 से वित्त वर्ष 24 के दौरान शिक्षा पर खर्च 9.4 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। लेकिन छात्रों का प्रदर्शन इसके अनुकूल नहीं बढ़ा है। इस क्रम में कक्षा तीन से कक्षा 10 के छात्रों के प्रदर्शन में गिरावट आई है।

First Published - July 22, 2024 | 11:29 PM IST

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