राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीन और हॉन्गकॉन्ग से कम कीमत वाले आयात को अमेरिका में बिना शुल्क आने देने की व्यवस्था खत्म करने का फैसला किया है। ऐसे में भारत को यह बात देखनी होगी कि अमेरिका के साथ बढ़ते उसके ई-कॉमर्स व्यापार पर इसका क्या असर पड़ेगा।
व्हाइट हाउस ने गुरुवार को (भारतीय समय के अनुसार) बयान में कहा, ‘वाणिज्य मंत्री की अधिसूचना के बाद कि शुल्क राजस्व एकत्र करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था मौजूद है, राष्ट्रपति ट्रंप 2 मई, 2025 को रात 12:01 बजे ईडीटी से पीप्लस रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) और हॉन्गकॉन्ग से आने वाले सामान के लिए डी मिनिमिस सुविधा खत्म कर रहे हैं।’
डी मिनिमिस व्यवस्था के तहत 800 डॉलर से कम कीमत के उत्पादों और आपूर्ति को बिना किसी शुल्क और न्यूनतम निरीक्षण के साथ अमेरिका में प्रवेश की अनुमति थी। चीनी ई-कॉमर्स कंपनियां इसका इस्तेमाल अमेरिका में सीधे ग्राहकों को सामान भेजने के लिए करती थीं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार इस व्यवस्था का इस्तेमाल करने वाले खेपों की संख्या हाल के वर्षों में बढ़कर साल 2024 में 1.4 अरब तक पहुंच गई है। ऐसी व्यवस्था में से लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा चीन का है।
भारत पर प्रभाव
भारत उन 100 देशों में शामिल है जिन्होंने इस व्यवस्था का इस्तेमाल किया है और फिलहाल यह समझना जल्दबाजी होगी कि इसके खत्म होने का देश के ई-कॉमर्स उद्योग और छोटे कारोबारों पर क्या असर होगा। मीडिया की खबरों के अनुसार भारत की डी मिनिमिस सीमा 5,000 रुपये या 60 डॉलर है जो अन्य देशों की तुलना में काफी कम है। ईवाई इंडिया में पार्टनर और रिटेल टैक्स लीडर परेश पारेख ने कहा कि भारतीय ई-कॉमर्स और डी2सी (डायरेक्ट-टु-कंज्यूमर) क्षेत्र ज्यादातर भारत में निर्मित या चीन सहित अन्य देशों से आयातित उत्पादों को बेचते अथवा सूचीबद्ध करते हैं। इसलिए अमेरिकी शुल्क का केवल अप्रत्यक्ष असर हो सकता है।
पारेख ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हालांकि कथित तौर पर खपत के स्वरूप पर असर आदि जैसे पहलुओं तथा चीन और हॉन्गकॉन्ग आदि से कम मूल्य वाले आयात के मामले में अमेरिका द्वारा डी मिनिमिस व्यवस्था को समाप्त करने के कारण अमेरिका के डी2सी ई-कॉमर्स पर बड़ा असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा, ‘भारतीय ई-कॉमर्स पर इसके परोक्ष और प्रत्यक्ष असर का विश्लेषण करने की जरूरत है। यह देखने की भी जरूरत है कि क्या भारत सरकार भारतीय डी-मिनिमिस सीमा को बदलना चाहेगी जो वर्तमान में पहले से ही काफी कम है।’
उद्योग के कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि लंबी अवधि में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के जवाबी शुल्क से भारत में ई-कॉमर्स क्षेत्र पर असर पड़ सकता है, खास तौर पर बढ़ी हुई लागत और उपभोक्ता के बदले हुए व्यवहार के जरिये। उदाहरण के लिए इस शुल्क से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले भारतीय सामान की लागत बढ़ सकती है। खर्च करने की क्षमता में कमी से आयातित वस्तुओं की मांग घट सकती है। विदेशी से व्यापार पर निर्भर रहने वाले ई-कॉमर्स कारोबारों को शुल्क वृद्धि के कारण आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है और इसका उनके मार्जिन पर असर पड़ सकता है। पारेख ने कहा कि अमेरिका में आयात के लिए अमेरिकी शुल्क और अमेरिकी आयात के लिए डी-मिनिमिस नियमों में बदलाव से अमेरिका में सामान महंगा हो सकता है और अमेरिकी खपत का स्वरूप बदल सकता है।
पारेख ने कहा ‘भारत में सामान बेचने वाले भारतीय डी2सी और ई-कॉमर्स या तो भारत में निर्मित होते हैं या चीन वगैरह से आयात किए जाते हैं। इसलिए जहां अमेरिकी शुल्क के कारण अमेरिका के उपभोक्ताओं को बढ़ी हुई कीमतों का सामना करना पड़ सकता है, जब तक कि विक्रेता मार्जिन का बोझ नहीं उठाते, वहीं अमेरिकी शुल्क का भारत में वस्तुओं की कीमतों पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए और भारतीय उपभोक्ता व्यवहार में भारी बदलाव की आशंका नहीं है।’