निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लाभांश (Dividend) को विनिवेश से हुई आमदनी में शामिल करने का सुझाव दिया है, क्योंकि दोनों मद से आने वाला राजस्व सरकार को मिलता है। विनिवेश का काम देख रहे इस विभाग ने वित्त मंत्रालय को यह सुझाव देते हुए कहा है कि बाजार से जुड़े सौदों में एक निश्चित लक्ष्य या एक निश्चित खाका काम नहीं करता है। विभाग ने सुझाव दिया है कि 1 फरवरी को पेश होने जा रहे बजट में विनिवेश के कुल लक्ष्य में लाभांश को शामिल करने पर भी विचार किया जाना चाहिए। इस समय सरकारी कंपनियों को होने वाले लाभ में केंद्र सरकार को जो हिस्सा मिलता है, उसे विनिवेश लक्ष्य में शामिल नही किया जाता है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘सीपीएसई से लाभांश (जो गैर कर राजस्व है) और विनिवेश (जो विविध पूंजी प्राप्तियों में शामिल है) दीपम के दायित्व में आते हैं। दोनों को सरकार के संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए।’दीपम को अब तक विनिवेश और लाभांश प्राप्तियों से 66,046 करोड़ रुपये मिले हैं। इसमें से 31,106 करोड़ रुपये विनिवेश प्राप्तियों से आया है और 34,940 करोड़ रुपये लाभांश से मिला है। सरकार ने इस वित्त वर्ष में 65,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा था और वह विनिवेश लक्ष्य की आधी राह तक ही पहुंची है।
सीपीएसई से पूरे साल के बजट में 40,000 करोड़ रुपये लाभांश प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया था। बजट लक्ष्य का करीब 85 प्रतिशत सरकारी कंपनियों ने दे दिया है। विभाग के सूत्रों ने कहा कि वित्त वर्ष 23 में लाभांश का लक्ष्य वित्त वर्ष 22 के लक्ष्य को पार कर सकता है। इससे सरकार को गैर कर राजस्व लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी। पिछले साल सरकारी कंपनियों से 59,000 करोड़ रुपये लाभांश मिला था, जो उस साल के 46,000 करोड़ रुपये लक्ष्य से 28 प्रतिशत ज्यादा है। जिंसों के बढ़े दाम की वजह से ऐसा हुआ, क्योंकि इससे कंपनियों का मुनाफा बढ़ गया था।
इस चर्चा में शामिल एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘विनिवेश का लक्ष्य तय कर देने से यह संकेत जाता है कि सरकार अब सरकारी कंपनी को बेचने जा रही है। ऐसे में अक्सर उस सरकारी कंपनी के शेयर के दाम गिर जा रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि बाजार पर भूराजनीतिक असर को ध्यान में रखते हुए कोई खाका पेश करना कठिन है। विनिवेश में लंबा वक्त लगता है और इसकी योजना में लगने वाले समय की वजह से बाजार आधारित सौदे सही ढंग से काम नहीं करते। सरकार की निजीकरण की प्रमुख योजनाओं में आईडीबीआई बैंक की हिस्सेदारी बेचना और कंटेनर कॉर्पोरेशन आफ इंडिया (कॉनकॉर) और शिपिंग कॉर्पोरेशन को बेचना शामिल है।
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सरकार को उम्मीद है कि इसमें से ज्यादातर काम, खासकर आईडीबीईआई बैंक में हिस्सेदारी बेचने का काम वित्त वर्ष 24 में हो जाएगा। आईडीबीआई दो चरणों की प्रक्रिया है, जहां क्षमतावान बोलीकर्ताओं को रिजर्व बैंक के ‘फिट ऐंड प्रॉपर’ मानदंड को वित्तीय बोली के पहले पूरा करना होगा। पहली बोली 7 जनवरी को होने की संभावना है। वहीं कॉनकॉर के लिए रुचि पत्र (ईओआई) किसी समय जनवरी में आने की संभावना है।
इस माह की शुरुआत में एक चर्चा के दौरान दीपम के सचिव तुहिनकांत पांडेय ने कहा था कि लाभांश के साथ विनिवेश लक्ष्य पटरी पर है। उन्होंने कहा लाभांश से होने वाली प्राप्तियों की उपेक्षा क्यों की जाए, वह भी धन की प्राप्ति है। दीपम के सचिव यह प्रतिक्रिया तब दे रहे थे, जब विनिवेश लक्ष्य पर बहुत ज्यादा जोर देने को सही तरीका नहीं बताया जा रहा था। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई जब संदेह बढ़ रहा है कि सरकार अपना विनिवेश लक्ष्य गंवा देगी और वित्त वर्ष 24 में भी बजट लक्ष्य कम रखा जा सकता है। 2014 के बाद अब तक सरकार को विनिवेश से करीब 4 लाख करोड़ रुपये मिले हैं।