केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) को 1 मई से 3 प्रतिशत से घटाकर 2 प्रतिशत किया जाना था लेकिन केंद्र और राज्यों के बीच इसके बंटवारे को लेकर मतभेद के कारण इसे अधिसूचित नहीं किया जा सका।
इस मतभेद को 5-6 मई को होनेवाली राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की बैठक में सुलझाया जा सकता है।2007 की घोषणा के अनुसार सीएसटी में कटौती को 1 अप्रैल 2008 से लागू होनी थी। बाद में इसे बढाकर 1 मई कर दिया गया।
सीएसटी को 3 से 2 प्रतिशत करने के कारण राजस्व पर 2008-09 में 7,000 करोड रुपये का बोझ आएगा। दरअसल केंद्र और राज्य सरकारों में इसकी भरपाई के लिए किसी प्रकार का कदम नहीं उठाया गया। पिछले साल जब इस दर को 4 प्रतिशत से कम कर 3 प्रतिशत किया गया था तो राजस्व पर 6,000 करोड रुपये का बोझ आया था।
केंद्र ने राज्यों से वैट को 4 प्रतिशत से 5 प्रतिशत करने और टेक्सटाइल पर भी वैट लगाने को कहा है। इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए राज्य सरकारों ने केंद्र से सीधे रियायत मांगने की बात कही है।जब तक केंद्र सरकार नए सीएसटी को लागू नहीं करती है तब तक राज्यों के अंदर होने वाली बिक्री पर 3 प्रतिशत सीएसटी ही लगेगा।
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि राज्यों के वैट की सीमा को नहीं बढाने और टेक्सटाइल पर वैट नहीं लगाने से केंद्र सरकार पर बोझ ज्यादा बढ़ गया है और इसे वहन करना केंद्र के लिए थोड़ा मुश्किल हो रहा है। अधिकारी ने बताया कि इस मुद्दे पर राज्यों से बातचीत चल रही है।राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 5-6 मई को राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति में ही इस मुद्दे पर बात होगी कि राज्य इस रियायत के साथ समझौता करेंगे या नहीं।
बहुत सारे राज्यों ने केंद्र पर यह आरोप लगाया है कि उसे अभी तक पिछले साल सीएसटी में हुए घाटे की राशि नहीं दी गई है। सीएसटी एक केंद्रीय कर है लेकिन इसे राज्यों द्वारा ही संग्रहित किया जाता है।