विदेशी मुद्रा अनिवासी बैंक जमाओं (एफसीएनआर-बी) पर ब्याज दरों की सीमा बढ़ाने के आरबीआई के फैसले से रकम आकर्षित करने पर सीमित असर पड़ेगा क्योंकि वैश्विक बाजारों में दरें नरम होने के कारण भारतीय बैंक विदेशी निवेशकों से काफी प्रतिस्पर्धी दर पर रकम जुटा रहे हैं। उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि बैंक अब एनआरआई जमाओं की ओर देखने के बजाय वैश्विक पूंजी बाजारों से रकम जुटाने का विकल्प चुन सकते हैं।
शुक्रवार को आरबीआई ने ऐलान किया कि अधिक पूंजी आकर्षित करने के लिए बैंकों को 6 दिसंबर से 1 वर्ष से लेकर 3 वर्ष से कम की परिपक्वता वाली नई एफसीएनआर (बी) जमा राशि को वैकल्पिक संदर्भ दर (एआरआर) से अधिक दरों पर जुटाने की अनुमति दी गई है, जो वैकल्पिक संदर्भ दर और 400 आधार अंकों के जोड़ से ज्यादा नहीं हो सकती। साथ ही 3 से 5 साल के बीच परिपक्वता वाली जमा दरें एआरआर व 500 आधार अंकों के जोड़ से ज्यादा नहीं हो सकतीं। आरबीआई की यह छूट 31 मार्च 2025 तक उपलब्ध है।
अभी एफसीएनआर-बी जमाओं पर ब्याज दर की सीमा संबंधित करेंसी/स्वैप के लिए ओवरनाइट एआरआर प्लस 250 आधार अंक एक साल से 3 साल से कम परिपक्वता अवधि वाली जमाओं पर लागू है। यह 3 से 5 साल में परिपक्व होने वाली जमाओं पर ओवरनाइट एआरआर और 350 आधार अंक है।
एफसीएनआर (बी) खाता ग्राहकों को एक से पांच साल तक की अवधि के लिए स्वतंत्र रूप से परिवर्तनीय विदेशी मुद्राओं में भारत में सावधि जमा बनाए रखने की सुविधा मिलती है। चूंकि खाता विदेशी मुद्रा में रखा जाता है, इसलिए जमा अवधि के दौरान यह मुद्रा में उतार-चढ़ाव से धन की सुरक्षा करता है।
सार्वजनिक क्षेत्र के एक वरिष्ठ बैंकर के अनुसार आरबीआई का यह कदम शायद कारगर नहीं होगा क्योंकि बैंक पहले से ही मौजूदा ब्याज दर सीमा पर एफसीएनआर (बी) जमा जुटाने में बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं हैं। उन्होंने कहा कि बैंकों को एफसीएनआर (बी) जमा की तुलना में सस्ती दरों पर विदेशी मुद्रा में आसानी से धन मिल जाएगा।
उनकी राय को दोहराते हुए जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के प्रमुख (ट्रेजरी और पूंजी बाजार) गोपाल त्रिपाठी ने कहा कि अमेरिका और भारत दोनों में ओवरनाइट ब्याज दरों का अंतर कम होने के कारण बैंकों को इस चैनल के माध्यम से धन जुटाने में कठिनाई हो रही है।
हालांकि, उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच ब्याज दर का अंतर कम है। ऐसे में आरबीआई के इस कदम का मकसद बैंकों को धन जुटाने के लिए अतिरिक्त अवसर उपलब्ध करना है, जिससे ज्यादा से ज्यादा डॉलर जमा आ सके। इससे रुपये को भी सहारा मिलने की संभावना है।
आरबीआई के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-सितंबर 2024 के दौरान एफसीएनआर (बी) खातों में लगभग 5.34 अरब डॉलर आए। एक साल पहले इसी अवधि में यह रकम 1.92 अरब डॉलर थी। एफसीएनआर (बी) खातों में जमा राशि 31.08 अरब डॉलर थी। एसबीआई इकनॉमिक रिसर्च ने एक नोट में कहा कि एफसीएनआर दरों की ऊपरी सीमा बढ़ाने के फैसले से कोई नई पूंजी नहीं आएगी। इसके बजाय ऐसी जमाओं को लेकर नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कटौती ज्यादा मददगार होती।
सार्वजनिक क्षेत्र के तीन वरिष्ठ बैंक अधिकारियों के अनुसार एफसीएनआर (बी) जमाओं के लिए ब्याज दर सीमा में ढील का न्यूनतम प्रभाव होगा क्योंकि ऐसी जमाओं पर दी जाने वाली ब्याज दरें मौजूदा सीमा के भीतर हैं। उन्होंने कहा कि जब वैश्विक बाजारों में दरें नरम हो रही हैं तो बैंक खुद को लंबी अवधि के लिए उच्च दरों के बोझ से बचना चाहेंगे। उनके लिए एफसीएनआर (बी) जमा हासिल करने की तुलना में बाजार से विदेशी मुद्रा जुटाना सस्ता होगा।