जरूरी रक्षा सामान बनाने में भारत अब आगे बढ़ रहा है। पिछले दो साल से भारत एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के सामान खुद बना रहा है। 2023-24 में ये आंकड़ा 1.27 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पहले सालाना बढ़त कम थी, मगर अब कोरोना के बाद ये बढ़त 17 फीसदी के करीब पहुंच गई है। (चार्ट 1)
भारत में भले ही रक्षा सामान बनाने वाली प्राइवेट कंपनियां और स्टार्ट-अप्स बढ़ रहे हैं, पर अभी भी ज़्यादातर रक्षा सामान सरकारी कंपनियां ही बनाती हैं। प्राइवेट कंपनियों का हिस्सा करीब 20 फीसदी ही है। सरकार छोटे कारोबारों (MSME) को भी रक्षा के काम में लगाना चाहती है। ये छोटी कंपनियां बड़ी कंपनियों को रक्षा सामान बनाने के लिए पुर्जे (parts) देती हैं। इस वजह से छोटे कारखानों को भी अब ज्यादा काम मिल रहा है। (चार्ट 2)
भारत ने रक्षा सामान के निर्यात में रिकॉर्ड बनाया है! 2023-24 में भारत ने 21,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का रक्षा सामान विदेशों को बेचा। इसमें छोटे हथियार, सुरक्षा के गियर और तोप जैसी चीज़ें शामिल हैं। ये आंकड़ा 2018-19 के मुकाबले दोगुना से भी ज्यादा है। (चार्ट 3)
भारत रक्षा सामान बेच तो रहा है, पर खुद भी बाहर से हथियार खरीदता है। दुनिया के सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाले देशों में से एक भारत भी है। 2018 से 2023 के बीच भारत के बाद सऊदी अरब और कतर जैसे देश सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वालों में से हैं।
हालांकि, अच्छी बात ये है कि भारत रूस से हथियार खरीदने पर पहले जितना निर्भर करता था, अब उसमें कमी आई है। पहले रूस से 58% से ज्यादा हथियार खरीदे जाते थे, जो अब घटकर 36% रह गया है। (चार्ट 4,5)
रक्षा बजट का ज्यादातर हिस्सा (53%) सैनिकों की तनख्वाह, भत्ते और उनकी रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन पर खर्च हो जाता है। पहले की तुलना में कुल सरकारी खर्च में रक्षा क्षेत्र का हिस्सा कम हुआ है और फरवरी में पेश किए गए अंतरिम बजट में ये 13% था, जैसा कि बिजनेस स्टैंडर्ड ने पहले रिपोर्ट किया था।
गौर करने वाली बात ये है कि भारत अपनी आमदनी (जीडीपी) के हिसाब से रक्षा पर कई दूसरे उभरते देशों से ज्यादा खर्च करता है। उभरते देशों के बीच सिर्फ रूस ही भारत से ज्यादा रक्षा पर खर्च करता है। विकसित देशों में अमेरिका रक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करता है, लेकिन जापान और जर्मनी जैसे देश रक्षा पर बहुत कम खर्च करते हैं। (चार्ट 6)