देश की आबादी के बदलते खपत संबंधी रुझानों की बेहतर पड़ताल के लिए सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) का अंतराल कम करने और महत्त्वपूर्ण वृहद आर्थिक संकेतकों मसलन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार वर्ष में संशोधन का अंतराल घटाने पर विचार कर रहा है। ये संकेतक अर्थव्यवस्था में कीमतों में बदलाव पर नजर रखने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण हैं।
एक सूत्र ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘देश में खपत का रुझान बहुत तेजी से बदल रहा है, क्योंकि लोगों की आय बढ़ रही है और उपभोक्ता उत्पादों में विविधिता आ रही है। तेजी से उभरते खपत रुझानों को समझने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि एचसीईएस सर्वेक्षण जल्दी-जल्दी करवाए जाएं। हम एचसीईएस को हर तीन साल पर और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार वर्ष को 4 साल में संशोधित करने पर विचार कर रहे हैं। हालांकि अभी यह एकदम आरंभिक स्तर पर है क्योंकि आधार वर्ष संशोधन की प्रक्रिया अभी चल रही है।’
फिलहाल सांख्यिकी मंत्रालय प्रमुख वृहद आर्थिक संकेतकों के लिए आधार वर्ष बदल रहा है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक यानी आईआईपी और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिए इसे वित्त वर्ष 2023 किया जा रहा है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के लिए इसे कैलेंडर वर्ष 2024 किया जा रहा है। इसके फरवरी 2026 तक लागू होने की उम्मीद है। इससे पहले मंत्रालय ने इन अहम वृहद आर्थिक संकेतकों के आधार वर्ष में जनवरी 2015 में संशोधन किया था।
सूत्र ने कहा, ‘विचार यह है कि आने वाले वर्षों में इतना लंबा अंतराल नहीं रहने दिया जाए। आधार वर्ष में संशोधन बार-बार होना चाहिए क्योंकि अर्थव्यवस्था तेजी से बदल रही है। ऐसे में खपत सर्वेक्षण की आवृत्ति कम की गई है, क्योंकि यह सभी संकेतकों के आधार वर्ष में संशोधन का सबसे अहम डेटासेट है।’
फिलहाल उपभोग सर्वेक्षण पांच साल के अंतराल पर होते हैं। नवीनतम उपभोग संबंधी आंकड़े जो इस वर्ष के आरंभ में जारी किए गए, वे अगस्त 2023 से जुलाई 2024 की अवधि के हैं। यह बीते कई सालों में दूसरा उपभोग सर्वेक्षण था।
इससे पहले 2019 में सरकार ने 2017-18 के उपभोग व्यय सर्वेक्षण के आंकड़ों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि डेटा की गुणवत्ता सही नहीं है। उसके बाद ही प्रविधि में बदलाव किया गया था। परंतु इससे खपत के आंकड़ों में 11 साल का अंतराल आ गया, क्योंकि पिछले उपलब्ध आंकड़े जुलाई 2011 से जून 2012 के बीच के थे। इससे सीपीआई, जीडीपी और आईआईपी जैसे सभी वृहद-आर्थिक संकेतकों के आधार वर्ष संशोधन की कवायद में भी देरी हुई।
एचसीईएस के नवीनतम डेटा सेट में पिछले दशक के खपत रुझान में महत्त्वपूर्ण बदलाव दर्ज किया गया। पहली बार ग्रामीण भारत का खाद्य वस्तुओं पर व्यय 50 फीसदी से कम हो गया। इस बीच, देश भर में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का उपभोग बढ़ा है। यात्रा व्यय गैर खाद्य व्यय में सबसे बड़ा खर्च है। शहरी इलाकों में कुल व्यय का 10 फीसदी ऑनलाइन खरीदारी में जाता है, जबकि ग्रामीण भारत में यह 3-4 फीसदी है।