फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने वाले केंद्र सरकार के प्रमुख निकाय कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने सब्सिडी वाले उर्वरक की बोरी की संख्या सीमित करने का सुझाव दिया है, जिसका उपयोग प्रत्येक किसान सब्सिडी के बोझ का प्रबंधन में कर सकता है। आयोग ने यूरिया को पोषक आधारित सब्सिडी में लाने का भी सुझाव दिया है।
आयोग ने पीएम आशा योजना की भी कड़ी आलोचना की है। इसका गठन कीमतों में गिरावट के समय तिलहन और दालों की खरीद के लिए किया गया है। आयोग ने कहा है कि राज्यों की ओर से रुचि न लिए जाने के कारण पीएम आशा का प्रदर्शन बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है। आयोग ने उन राज्यों से धान की खरीद सीमित करने की वकालत की है, जिन्होंने एमएसपी पर बोनस की घोषणा की है या अतिरिक्त उपकर और अधिभार लगाया है।
ये सिफारिशें परामर्श की तरह हैं और यह जरूरी नहीं है कि सरकार इन्हें लागू ही करे। इसके पहले इस तरह की जिंसों की कीमत से इतर की गई आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया गया है। हालांकि सीएसीपी ने कहा है कि पीएम आशा के तहत तिलहन के मामले में राज्यों के पास मू्ल्य अंतर भुगतान व्यवस्था लागू करने का विकल्प है और प्रायोगिक आधार पर जिलों और चुनिंदा एपीएमसी में निजी खरीद और स्टॉकिस्ट योजना लागू कर सकती हैं, लेकिन राज्यों ने यह योजना लागू नहीं की है।
इसमें कहा गया है कि पीएम-आशा के लिए आवंटन 2019-20 के 1,500 करोड़ रुपये से घटकर 2020-21 में 500 करोड़ रुपये रह गया है। यह आगे 2022-23 में घटकर 1 करोड़ रुपये रह गया और 2023-24 के बजट अनुमान में सिर्फ 1 लाख रुपये रह गया।
सीएसीपी ने कहा, ‘इसे देखते हुए पीएम-आशा योजना की समीक्षा की जरूरत है।’सब्सिडी वाले उर्वरक की बोरी की संख्या सीमित किए जाने बारे में आयोग ने कहा कि इसके कारण जो संसाधन बचेगा उसका इस्तेमाल कृषि आरऐंडडी और बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश के लिए किया जा सकता है।
राज्यों द्वारा चावल की खरीद पर बाजार शुल्क, ग्रामीण विकास उपकर, कमीशन आदि सहित विभिन्न शुल्क लगाने पर आयोग ने कहा कि इससे अनाज पर आने वाली लागत बढ़ती है और निजी क्षेत्र की भागीदारी भी प्रतिबंधित होती है।
इसमें सुझाव दिया गया है कि ऐसे राज्यों से खरीद को प्रोत्साहन न देने के अलावा लगाए जाने वाले शुल्क की राशि मात्रा के हिसाब (प्रति क्विंटल) होनी चाहिए न कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के प्रतिशत के रूप में।
2022-23 खरीफ विपणन सत्र में केरल और तमिलनाडु ने धान पर बोनस की घोषणा की थी। केरल ने धान पर प्रति क्विंटल 780 रुपये बोनस दिया, जबकि तमिलनाडु ने कॉमन ग्रेड पर 75 रुपये प्रति क्विंटल और ग्रेड ए पर 100 रुपये बोनस दिया।
सीएसीपी की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘खासकर धान पर एमएसपी से ऊपर बोनस देने से बाजार में विकृति आती है। इससे निजी कारोबारियों की भागीदारी प्रतिबंधित होती है और यह कारोबार में प्रतिस्पर्धा को रोकती है।’कमीशन ने यह भी कहा है कि फसलों पर आयात शुल्क ऐसे तरीके से लगाया जा सकता है कि आयातित फसलों की कीमत एमएसपी से नीचे न रहे।