दक्षिण पश्चिमी मॉनसून की शुरुआत कमजोर रही है और इससे खरीफ की बोआई में देरी हो सकती है। यह चिंता का विषय है, लेकिन स्थिति अभी ऐसी नहीं है कि किसी त्वरित प्रतिक्रिया की जरूरत है। मौसम विभाग व उद्योग से जुड़े लोगों के मुताबिक अच्छी खबर यह है कि आने वाले कुछ सप्ताह में बेहतर बारिश होने वाली है।
इसके पहले भी ऐसी स्थिति आई है, जब जून में बारिश कम हुई है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पूरे सीजन में बारिश कमजोर रहेगी। हाल में 2019 में दक्षिण पश्चिमी मॉनसून की बारिश जून महीने में सामान्य से 32 प्रतिशत कम थी, क्योंकि मॉनसून करीब 7 दिन की देरी से 8 जून को आया था। उस साल बारिश की प्रगति भी धीमी थी, जैसा कि इस साल है। अरब सागर में वायु नामक चक्रवात के असर के कारण ऐसा हुआ था। लेकिन चक्रवात का असर कम होने के साथ जुलाई में बारिश बहाल हुई और 2019 का साल सामान्य मॉनसूनी साल था।
इस साल भी मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि मॉनसून बहाल होगा और इससे बारिश में अब तक हुई कमी की भरपाई हो जाएगी। पिछले कुछ दिन से ऐसा शुरू भी हो चुका है। मौसम के जाने-माने जानकार और भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) में वैज्ञानिक डी शिवानंद पई ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘दक्षिण पश्चिमी मॉनसून का दूसरा दौर शुरू हो गया है और यह जुलाई के मध्य तक रहेगा। हम मध्य, पश्चिमी और उत्तर भारत में अगले सप्ताह अच्छी मॉनसूनी बारिश की उम्मीद कर सकते हैं, जहां बारिश कम हुई है। जुलाई के मध्य तक पूरे देश में बारिश होने लगेगी और बारिश की कमी भी बहुत कम रह जाएगी। लेकिन जून के बारे में यह सही है कि सामान्य से कम बारिश हुई है।’
उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति अफरातफरी में या अनावश्यक रूप से चिंता में पड़ सकता है, अगर कुछ अज्ञात या पहले से अनुमानित नहीं होता है, लेकिन जहां तक अनुमान की बात है, अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है, जो पहले नहीं देखा गया है।
पई ने कहा, ‘बोआई में देरी हुई है, लेकिन कृषि संबंधी उचित परामर्श के साथ पहले ही इसके लिए उपाय किए गए हैं।’
उन्होंने कहा कि अगर बोआई के बाद लंबे समय तक बारिश नहीं होती तो ज्यादा चिंता वाली बात होती, जबकि ऐसा नहीं हुआ है। 16 जून तक खरीफ की फसल की बोआई पिछले साल की तुलना में मामूली कम है। धान, दलहन और तिलहन की बोआई पिछले साल से कम हुई है।
कोर्टेवा एग्रीसाइंस के प्रेसीडेंट (दक्षिण एशिया) रविंदर बालियान ने कहा कि दक्षिण पश्चिमी मॉनसून की प्रगति में देरी से देश में एग्रोकेमिकल्स की मांग पर मामूली असर होगा, लेकिन यह अस्थायी होगा। बालियान ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘एग्रोकेमिकल उद्योग देरी और कम बारिश की वजह से पैदा हुए मसलों के समाधान के लिए पूरी तरह तैयार है। आज हमारे पास जलवायु के मुताबिक समाधान है, जो पर्यावरण के हिसाब से लाभदायक है। इनमें हाइब्रिड बीज और जैव कीटनाशक शामिल हैं। इनसे पानी की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का समाधान होता है।’
आईग्रेन इंडिया में जिंस विश्लेषक राहुल चौहान ने कहा कि बारिश में देरी होने से किसान कम समय में तैयार होने वाली और पानी की कम जरूरत वाली फसलों जैसे दलहन, मक्का, ज्वार और बाजरे का विकल्प चुन सकते हैं।