वामपंथी दल खाद्य तेलों के वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं।
वहीं आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार पर बनी समिति के चेयरमैन अभिजीत सेन का कहना है कि इस तरह के प्रतिबंध से घरेलू बाजार में खाद्य तेल की कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।सेन ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हमारी कुल खपत का आधा खाद्य तेल आयात किया जाता है। शायद ही किसी ऐसे खाद्य तेल का वायदा कारोबार होता है, जिसका आयात न किया जाता हो। भारत में केवल सोयाबीन तेल का कारोबार अधिक होता है।’
भारत में 110 लाख मीट्रिक टन खाद्य तेलों की प्रतिवर्ष खपत है, जिसमें से भारत 40 लाख मीट्रिक टन पाम आयल, 20 लाख मीट्रिक टन सोयाबीन आयल का आयात करता है। भारत के कमोडिटी एक्सचेंजों में ज्यादातर सोयाबीन तेल और सरसो तेल का वायदा कारोबार होता है। 2007-08 के दौरान भारतीय कमोडिटी एक्सचेंजों में मासिक वायदा कारोबार 22 लाख मीट्रिक टन का रहा है।
सेन ने कहा, ‘अगर सोयाबीन तेल के वायदा कारोबार पर रोक लगा दी जाए तब भी कोई असर नहीं पड़ेगा। भारतीय सोयाबीन तेल की कीमतें भी दुनिया के अन्य बाजारों से कदम मिलाकर चलती हैं। पाम आयाल का व्यापार मलेशिया और सोयाबीन तेल का अमेरिका में होता है। हमारा वायदा कारोबार हमारी व्यापार नीति का आइना है। अन्यथा हमें क्वालालमपुर या अमेरिकी एक्सचेंजों से आंकड़े एकत्र करने पड़ेंगे।’
सरकार ने सोमवार को कच्चे खाद्य तेल से आयात शुल्क घटाकर शून्य कर दिया है। साथ ही रिफाइंड खाद्य तेलों पर आयात शुल्क 7.5 प्रतिशत रखा गया है।वायदा कारोबार पर तैयार रिपोर्ट को सौंपे जाने पर स्थिति स्पष्ट होने या न होने के बारे में उन्होंने कहा कि मैं सोचता हूं कि स्थितियां साफ होंगी, लेकिन दुर्भाग्य से मैं अभी रिपोर्ट सौंपने की स्थिति में नहीं हूं। मैं यह अगले सप्ताह करूंगा। कमोवेश ज्यादा कुछ तैयार है।
बहरहाल सेन ने इस बाद से साफ इनकार किया कि समिति किसी तरह के दबाव में है, जिसके चलते रिपोर्ट जारी किए जाने में देरी हो रही है। सेन ने स्पष्ट किया कि, ‘यह कतई सही नहीं है। मेरी कुछ व्यक्तिगत समस्याएं हैं और कुछ आंकड़ों को जुटाने की समस्या है जिसकी वजह से देरी हो रही है।’ सरकार ने 24 जनवरी 2007 तूर और उड़द की दाल के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया था और पिछले साल 28 फरवरी से चावल के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध है।