अर्थव्यवस्था

विकास यात्रा पर निकले भारत जितनी शानदार और दिलचस्प जगह कोई नहीं: अनंत नागेश्वरन

बीएफएसआई इनसाइट समिट में तमाल बंद्योपाध्याय से बातचीत में अनंत नागेश्वरन ने अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर साझा किए अपने विचार और अनुभव

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- November 08, 2024 | 10:36 PM IST

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने बीएफएसआई इनसाइट समिट में बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक तमाल बंद्योपाध्याय से अमेरिकी चुनाव परिणाम, जीडीपी वृद्धि, कृषि से लेकर अर्थव्यवस्था पर अपने निजी अनुभव तक तमाम मसलों पर बातचीत की। प्रमुख अंश…

अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद हमने देखा कि रुपये के साथ क्या हुआ। डॉलर सूचकांक ऊपर जा रहा है। आप वित्तीय क्षेत्र पर अमेरिकी चुनाव के परिणामों के असर को किस रूप में देख रहे हैं?

मुझे लगता है कि वित्तीय क्षेत्र में जो कुछ भी हो रहा है, उसकी वजह पूरी तरह से चुनाव परिणाम को मानना जल्दबाजी होगी। इसमें से कुछ रुझान पहले से ही असर डाल रहे थे। चुनाव नतीजों पर बाजार की शुरुआती प्रतिक्रिया के हमें बहुत ज्यादा अर्थ नहीं निकालने चाहिए। मुझे इसमें ज्यादा चिंता की कोई वजह नहीं दिखती, चाहे वह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मसला हो या मुद्रा के गिरने-बढ़ने का।

वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि को लेकर आपका अनुमान रूढ़िवादी, 6.5 से 7 प्रतिशत रहा है। रिजर्व बैंक के गवर्नर को आपकी तुलना में वृद्धि ज्यादा नजर आ रही है और वह 7.2 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगा रहे हैं। क्या आप वृद्धि अनुमान बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं?

चालू वित्त वर्ष के लिए हम अपने संभावित अनुमान की वर्तमान सीमा से संतुष्ट हैं। अगर रिजर्व बैंक का अनुमान हमारे अनुमान की तुलना में सही साबित होता है तो मुझे बड़ी खुशी होगी। पूर्वानुमान हमें यह बताते हैं कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। साल के शुरुआती 5 महीनों में पूंजीगत व्यय पिछले साल की तुलना में कम रहा है। मुझे भरोसा है कि वित्त वर्ष के शेष बचे 7 महीनों के दौरान अक्टूबर से यह व्यय रफ्तार पकड़ेगा। यह व्यय पिछले वित्त वर्ष के वास्तविक पूंजीगत व्यय की तुलना में थोड़ा अधिक हो सकता है।

रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों पर फैसला करते समय मुद्रास्फीति के समूह से खाद्य वस्तुओं को अलग रखने के आपके विचार का कई लोग समर्थन नहीं कर रहे हैं। क्या आपने अपना विचार बदला है?

केंद्रीय बैंक पर मुद्रास्फीति के किसी खास बड़े घटक को लक्ष्य करने का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए, जो सीधे-सीधे उनके नियंत्रण में नहीं है। मेरा कहने का मतलब यह नहीं है कि हमें खाद्य महंगाई दर की चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन इससे निपटने के और भी तरीके हैं। इस अवधारणा को ज्यादा लोग नहीं मानते थे। कभी-कभी जब हम किसी खास मार्ग राह को तय कर लेते हैं, भले ही हम सहमत हों कि विपरीत दृष्टिकोण अपनाने का उचित आधार है, लेकिन पहले से बने हुए ढांचे को उलटने की कीमत भी चुकानी पड़ सकती है।

संभवतः हमें इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए कि किस तरह से बदलाव हो रहे हैं। जब हमारे परिवार के मासिक बजट में खाद्यान्न पर व्यय महत्त्वपूर्ण नहीं रह जाएगा, तब संभवतः इस बदलाव के बारे में बात करना ज्यादा आसान होगा।

बैंकर जमा वृद्धि को चुनौती के रूप में देख रहे हैं। आप वित्तीयकरण और बचतकर्ताओं के निवेशक बन जाने को किस रूप में देख रहे हैं?

अगर बचत करने वाले निवेशक बन रहे हैं तो यह अच्छी बात है। सट्टेबाजी जरूरी है, लेकिन यह संयमित होना चाहिए। हम नहीं चाहते कि बचत करने वाले सिर्फ सट्टेबाज बन जाएं। और यह उनके खुद के हित में नहीं है कि वे अपनी बचत फ्यूचर्स और ऑप्शंस में लगा दें या उसे बहुत कम समय के लिए निवेश करें। आखिरकार वह धन बैंकिंग व्यवस्था में वापस आ जाएगा। इसलिए यह कोई समस्या नहीं है।

वित्तीयकरण एक ऐसा शब्द है जो वैश्विक वित्त में भी तब अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गया था, जब अधिकांश आर्थिक गतिविधियां वित्तीय क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों से निर्धारित होती थीं। विकासशील देशों के लिए यह और ज्यादा बुरा साबित होगा, अगर वित्तीय क्षेत्र के परिणामों या बाजार मूल्यांकन की तुलना में वास्तविक आर्थिक परिणाम पीछे रह जाते हैं। हमें वृद्धि के लिए वास्तविक परिसंपत्तियों की जरूरत है, क्योंकि हमें ऊर्जा परिवर्तन के प्रबंधन के लिए निरंतर निवेश और आवास क्षेत्र में बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है।

क्या आपको लगता है कि आयात शुल्कों पर पुनर्विचार का वक्त आ गया है?

यह मेरे दायरे में नहीं है। मगर यह विषय कई मौको पर सामने आया है और सरकार इस पर विचार कर रही है। घरेलू उद्योग को आगे बढ़ने के लिए वक्त देने के लिए आयात शुल्क लगाने का मामला बन सकता है। बहरहाल अगर कोई वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बने रहना चाहता है तो शुल्क कम ही होना चाहिए और कम से कम उत्पादन के शुरुआती घटकों पर यह कम होना चाहिए। बजट में इसकी शुरुआत की गई है।

लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए भारत का आयात शुल्क अब उस स्तर पर नहीं है, जहां 20-30 साल पहले था। जब हम यह बात करते हैं कि हमें कहां जाना है, तो हमें वैश्विक स्थिति को ध्यान में रखने की जरूरत है। वैश्विक संदर्भ चाहे जो हो, मैं आपसे सहमत हूं कि अगर हमें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनना है और साथ ही निर्यातक भी बनना है, तो कई क्षेत्रों में आयात शुल्कों को धीरे-धीरे कम करने की आवश्यकता है।

आपने कहा कि हमें ब्राजील का उदाहरण अपनाने की जरूरत है, जहां युवा कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों में हिस्सा ले रहे हैं। आप कृषि को वृद्धि के इंजन के रूप में किस तरह देख रहे हैं?

दूसरे दशक में विनिर्माण को बढ़ाने के हमारे प्रयास इस वजह से बाधित हुए क्योंकि कॉर्पोरेट और बैंकिंग प्रणाली में बैलेंस शीट की समस्या थी। लेकिन अब भौतिक बुनियादी ढांचे में सुधार और कारोबारी सुगमता, कॉर्पोरेट द्वारा पूंजी के सृजन के कारण जीडीपी में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए।

सेवा क्षेत्र को आर्टिफिशल इंटेलिजेंस से प्रतिस्पर्धा की चुनौती है। कृषि क्षेत्र अभी भी आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है, बशर्ते हम मूल्यवर्धन की गतिविधियों, खाद्य प्रसंस्करण और कोल्ड चेन में भंडारण का उपयोग कर सकें।

कृषि को केवल अनाज उत्पादन का मामला न मानकर इसे आधुनिक जरूरत के हिसाब से बनाना होगा। केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर नीतियां ऐसी होनी चाहिए कि युवा वर्ग कृषि क्षेत्र में हिस्सेदारी के लिए प्रोत्साहित हो और इसे व्यावहारिक आर्थिक गतिविधि माने।

लेकिन ग्रामीण भारत तो नौकरियों की तलाश में है, आप कृषि की ओर लौटने की बात कर रहे हैं?

हमें प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक सभी 3 क्षेत्रों को आर्थिक वृद्धि में अहम योगदान देने वाला बनाने की जरूरत है। हम सिर्फ सेवा और विनिर्माण की राह नहीं चुन सकते। 1 40 करोड़ लोगों के देश के रूप में आगे बढ़ने के लिए हम एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते। अलग-अलग राज्य विशिष्ट क्षेत्रों का चयन कर सकते हैं लेकिन सामूहिक रूप से देश के रूप में हम ऐसा नहीं कर सकते। हमें क्षेत्र को लेकर निरपेक्ष होना होगा।

ऐसी खबरें हैं कि ग्रामीण मांग से एफएमसीजी क्षेत्र में वृद्धि हो रही है। ग्रामीण कर्ज को लेकर बैंक प्रायः चिंता जताते हैं। क्या आपको लगता है कि यह चिंता जायज है या वृद्धि वापस लौट रही है?

पिछले वित्त वर्ष की तुलना में चालू वित्त वर्ष के शुरुआती 6 महीनों के दौरान ऑटोमोबाइल की सभी श्रेणियों में ग्रामीण भारत में बिक्री बढ़ी है। अगर कुछ है तो वह शहरी क्षेत्र की खपत के संकेतक हैं जो पीछे हैं। यही वजह है कि मैंने कहा कि भर्तियां और वेतन इसके अनुरूप बढ़ना चाहिए। अगर यह पूरी तरह नहीं हो, तब भी मुनाफे में वृद्धि के मुताबिक होना चाहिए।

मेक इन इंडिया पहल में आप कैसी प्रगति देख रहे हैं?

हम खासकर मशीनरी और उपकरणों में निवेश की बहाली देख रहे हैं, जो महत्त्वपूर्ण है। फैक्टरियों की संख्या में वृद्धि या 100 से ज्यादा कर्मचारियों की नियुक्ति करने वाली फैक्टरियों की संख्या में वृद्धि इससे कम लोगों को रोजगार में देने वाली फैक्टरियों की तुलना में तेज वृद्धि हुई है। फैक्टरियों में औपचारीकरण बढ़ा है, साथ ही बड़े आकार की फैक्टरियों की वृद्धि दर छोटी फैक्टरियों की तुलना में अधिक है। हमारे मेक इन इंडिया के लक्ष्यों के अनुरूप है।

आपने सार्वजनिक निजी हिस्सेदारी से हटते हुए केंद्र, राज्य और निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी का प्रस्ताव रखा है। क्या आप इसे विस्तार से बता सकते हैं?

केंद्र सरकार का ध्यान वित्तीय क्षेत्र में सुधार, कराधान, देशव्यापी बुनियादी ढांचा तैयार करने, पैमाने और कुशलता पर है। लेकिन जब जमीन, श्रम, शिक्षा, बिजली क्षेत्र और जमीनी स्तर पर कारोबार सुगमता की बात आती है तो यह राज्य स्तर पर काफी कुछ किया जाना है।

जब निजी क्षेत्र की बात आती है तो पूंजी और श्रम के बीच भरोसा सुनिश्चित करना वाकई महत्त्वपूर्ण है। साथ ही उत्पादों की गुणवत्ता, शोध और विकास में निवेश और कौशल शिक्षा के लिए शिक्षण क्षेत्र संग साझेदारी सुनिश्चित करना जरूरी है।

वित्त मंत्रालय से जुड़ने से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में ऐसी कौन सी नई बातें हैं जो आप नहीं जानते थे?

भारत की विकास यात्रा जितनी आकर्षक और दिलचस्प है, उतनी कोई और जगह नहीं हो सकती। यहां रहकर आप जो ऊर्जा महसूस करते हैं, वह बाहर की तुलना में अलग है। इस लिहाज से पिछले 3 वर्षों में यह सीखने का एक अद्भुत अनुभव रहा है।

First Published : November 8, 2024 | 10:36 PM IST