मंदी की आहट सुनकर सरकार भी चौकन्नी हो गई है और कम से कम चुनाव से पहले उसे टालने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है।
इसी सिलसिले में सरकार बैंकों को भी तलब कर रही है, ताकि पिछले 6 महीने में उनकी ओर से दिए गए कर्ज का जायजा लिया जा सके। दरअसल सरकार को लगता है कि बैंक और दूसरे कर्जदाता उद्योगों को पर्याप्त धन मुहैया नहीं करा रहे हैं।
कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर इसी मामले में 27 मार्च को बैंकरों और उद्योग जगत के प्रमुखों से मिलने वाले थे। लेकिन वह बैठक अब अगले महीने के लिए टाल दी गई है। इस बारे में पूछने पर चंद्रशेखर ने कहा, ‘हमें असली फिक्र इस बात की है कि हमने जो कुछ किया है, उसकी वजह से पर्याप्त नकदी और फायदा अर्थव्यवस्था को मिलना चाहिए।’
इस बैठक में कुछ निजी और विदेशी बैंकों को भी बुलाया जा सकता है। लेकिन एक सरकारी बैंक के चेयरमैन के मुताबिक सरकार के इस फरमान के कुछ और मायने हैं। उन्हें लगता है कि सरकार ब्याज दरों में और कटौती करने का इशारा बैंकों को कर रही है।
हालांकि कैबिनेट सचिव ने इस मसले पर कुछ और नहीं कहा, लेकिन अधिकारियों के मुताबिक बैंक जोखिम नहीं उठा रहे हैं और रिवर्स रेपो तथा सरकारी प्रतिभूतियों का फायदा उठाते हुए नकदी अपने पास जमा कर रहे हैं। अधिकारी ने कहा कि जब तक बैंक कर्ज नहीं देते, राहत पैकेज का सही असर नहीं दिख सकता।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक तकरीबन 5,00,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज दिए जा चुके हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक पिछले वर्ष सितंबर से दरों में कटौती जैसे जो कदम उठाए गए हैं, उनसे बैंकिंग प्रणाली में 3,88,000 करोड़ रुपये की नकदी आनी चाहिए। इसके अलावा सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) में कमी करने की वजह से भी कर्ज देने के लिए बैंकों के पास 40,000 करोड़ रुपये आने का अनुमान है।
अधिकारियों के मुताबिक बैंकों के पास जरूरत से ज्यादा एसएलआर है, जिसकी वजह से कर्ज मिलने में परेशानी हो रही है। इसी वर्ष 2 जनवरी को वाणिज्यिक बैंकों की एसएलआर होल्डिंग कुल मांग और देनदारियों की 28.9 फीसदी थी, जबकि मार्च 2008 में यह 27.8 फीसदी ही थी।
दिलचस्प है कि बैंक रिवर्स रेपो के जरिये अपनी अतिरिक्त नकदी रिजर्व बैंक को दे रहे हैं। बैंकों ने आज इसके जरिये 11,605 करोड़ रुपये रिजर्व बैंक के पास रखे, जबकि शुक्रवार को 50,000 करोड़ रुपये रखे गए थे।
सरकार इस बात से भी परेशान है कि निजी और विदेशी बैंक कर्ज पर ब्याज की दरें कम नहीं कर रहे हैं। इसकी वजह से उपभोक्ता खरीदारी में कोताही बरत रहे हैं। हालांकि सरकारी बैंकों ने अपनी प्रधान उधारी दरों में 2 फीसदी तक की कमी की है। लेकिन चुनिंदा निजी बैंकों ने इनमें केवल 0.5 फीसदी की कटौती की है। विदेशी बैंक और भी सुस्त हैं।
सरकारी राहत पैकेजों के बावजूद बैंक नहीं दे रहे पर्याप्त कर्ज
पैकेज से 5,00,000 करोड़, आरबीआई से 4,28,000 करोड़ रुपये की मदद
ज्यादा नकदी पर रिवर्स रेपो के जरिये फायदा उठा रहे बैंक
ज्यादातर बैंक नहीं घटा रहे हैं अपनी प्रधान उधारी दरें