केंद्र के बढ़े सार्वजनिक ऋण और जीडीपी अनुपात की चिंता के बीच प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन विवेक देवराय ने असित रंजन मिश्र के साथ बातचीत में कहा कि सरकार के कर्ज का प्रबंधन कठिन नहीं है, लेकिन इसके लिए मध्यावधि राजकोषीय रणनीति की जरूरत है। प्रमुख अंश
बजट को लेकर तरह-तरह के विचार आ रहे हैं। आईएमएफ ने कहा है कि केंद्र को ज्यादा महत्त्वाकांक्षी राजकोषीय राह अपनाने की जरूरत है, जबकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि वैश्विक उतार-चढ़ाव के बीच वृद्धि को समर्थन देना प्राथमिकता होनी चाहिए। आपका क्या विचार है?
यह सरकार हमेशा राजकोषीय हिसाब से रूढ़िवादी रही है। इसने कभी राजकोषीय फिजूलखर्ची का सहारा नहीं लिया। सरकार ने कभी भी ज्यादा कर्ज नहीं लिया, जबकि व्यापक (सार्वजनिक वित्त) का प्रबंधन बेहतर तरीके से किया गया है। आंशिक रूप से कोविड के कारण केंद्र सरकार का कर्ज मामूली बढ़ा है। अहम सवाल यह है कि क्या आप कर्ज के भुगतान की स्थिति में हैं और क्या आप कर्ज बढ़ा रहे हैं। मुझे नहीं लगता है कि केंद्र सरकार के कर्ज का प्रबंधन करना कठिन है।
वित्त मंत्री की राजकोषीय निशानेबाजी बहुत अच्छी रही है। ऐसे में बजट अनुमान और संशोधित अनुमान में कोई अंतर नहीं होगा। और वित्त वर्ष के अंत में हम पाएंगे कि राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशत है। हमें इसे 6.4 प्रतिशत से घटाकर 4.5 प्रतिशत करने की जरूरत है। इसका मतलब यह हुआ कि अगले बजट में हमें 5.8 प्रतिशत घटाने की जरूरत है, जिससे समयसीमा में बंधे रहा जाए। यह मुश्किल है क्योंकि कम अवधि में अधिकांश राजस्व व्यय रुक जाता है। एक मध्यावधि राजकोषीय रणनीति की जरूरत है, क्योंकि ज्यादा कर्ज की अपनी कीमत होती है, जिसमें निजी उधारी से बाहर होना भी शामिल है। वैश्विक विपरीत स्थितियों के बावजूद एक आम राय है कि इस साल (वित्त वर्ष 23) भारत की अर्थव्यवस्था 6.8 से 7 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी।
तमाम विशेषज्ञों का कहना है कि अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 24 में 6 प्रतिशत वृद्धि हासिल करने में भी सफल नहीं होगी?
ऐसा होने दिया जाए। ये लोग जो चाहते हैं, दरअसल उसी से देशों को परेशानी हुई है। ये वही लोग हैं, जो चाहते हैं कि भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए। संकट यह है कि इस फालतू सलाह के लिए उन्हें दंडित नहीं किया जाता। उन्हें काम पर नहीं लगाया जाता। वे शायद ही कहते हों कि मेरी गलती है। पूंजीगत व्यय में एक निश्चित अवशोषण क्षमता होती है। दरअसल उनका मतलब होता है कि राजस्व व्यय को बढ़ाया जाए और कर घटाया जाए।
विपरीत वैश्विक परिस्थितियों में आपको किस चीज से भरोसा मिल रहा है कि अगले साल वृद्धि दर 6.5 से 7 प्रतिशत रहेगी?
मध्यावधि के बाद अगला साल आएगा। मध्यावधि में हमारी वृद्धि दर 6.5 से 7 प्रतिशत रहेगी। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि अगले साल 6.5 से 7 प्रतिशत वृद्धि दर बेहतर होगी। मेरे खयाल से अगले साल यह 6.5 प्रतिशत होगी क्योंकि सरकार ने मई 2014 से तमाम बदलाव किए हैं जिसे व्यापक रूप से आपूर्ति में सुधार कह सकते हैं, जिसका असर पड़ेगा। आप पहले ही देख रहे हैं कि खपत में सुधार हो रहा है, यहां तक कि विवेकाधीन हिस्से में भी सुधार है। रूस यूक्रेन युद्ध या चीन में कोविड की वजह से वैश्विक अनिश्चितता है और हमें नहीं पता कि क्या होने जा रहा है। घरेलू स्तर पर कोई अनिश्चितता या नीतिगत अस्थिरता नहीं है, जिससे ग्राहकों को व्यय को लेकर भरोसा है।
अगले वित्त वर्ष में पूंजीगत व्यय बढ़ाने में सरकार कितना आगे बढ़ेगी? क्या अवशोषण की पर्याप्त क्षमता है?
राज्यों का पूंजीगत व्यय नहीं बढ़ रहा है। धन की कोई कमी नहीं है, उसके बावजूद व्यय नहीं हो रहा है। मुझसे न पूछें कि ऐसा क्यों हो रहा है, मेरे पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। संभवतः प्रशासनिक मशीनरी कोविड के असर से उबर नहीं पाई है। जहां तक केंद्र सरकार की बात है, यह कहने के लिए कोई आधार नहीं है कि पूंजीगत व्यय बढ़ाया जाए, अगर परियोजनाओं की राह में बाधा है। परियोजनाओं को पूरा करने में भूमि अधिग्रहण मसला होगा। पूंजीगत व्यय की मात्रा क्या होगी, मुझे नहीं पता। वित्त मंत्री हमें बताएंगी। मुझे नहीं लगता कि यह ओपन एंडेड मामला हो सकता है और इसे सभी सीमाओं के पार तक बढ़ाया जा सकता है।
आपने छूट रहित कर व्यवस्था की तरफ बढ़ने की वकालत की है। लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि अगर बचत के प्रोत्साहन वापस ले लिए जाएं तो बचत घट जाएगी?
यह बचत के लिए प्रोत्साहन नहीं है, ऐसा केवल लगता है। ये कर घटाने की योजनाएं हैं। सीधा है। अगर आप आयकर रिटर्न दाखिल करने वाले लोगों की संख्या देखें और आयकर भुगतान करने वालों की संख्या देखें तो इसमें बड़ा अंतर है। बड़े पैमाने पर कर चोरी होती है, इसका मतलब यह है कि मैं अपना कर घटाने के लिए कानूनी छूट का उपयोग कर रहा हूं, जिसका मुझे भुगतान करना चाहिए। प्रोत्साहन ढांचा ऐसा है कि मुझे छूट रहित व्यवस्था में जाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है। मुझे उम्मीद है कि यह बजट लोगों को छूट रहित व्यवस्था की ओर प्रोत्साहित करने वाला होगा।
जनगणना में देरी हो रही है, क्या आपको लगता है कि यह चिंता का विषय है?
मेरे पास इसका संतोषजनक उत्तर नहीं है कि जनगणना में देरी क्यों हो रही है। लेकिन भारत के आंकड़ों की गुणवत्ता को लेकर सवाल है। अगर देरी को छोड़ दें तो वृहद आंकड़े सही हैं। लेकिन अन्य आंकड़ों के मामले में आंकड़ों की निरंतरता और उनकी गुणवत्ता गंभीर समस्या है। अंतिम खपत व्यय सर्वे 2011-12 में हुआ था। क्या यह चिंता का विषय है? निश्चित रूप से यह चिंता का विषय है। तमाम आंकड़े सर्वे से आते हैं। एकमात्र संतोषजनक आंकड़ा, जिसमें पूरी गणना होती है, जनगणना ही है। जनगणना में देरी से क्या मैं चिंतित हूं, इसका निश्चित रूप से जवाब है, हां।