कंपनी को मंजूर किए जाने वाले ऋण के संबंध में निदेशकों, प्रवर्तकों द्वारा बैंक को दी जाने वाली व्यक्तिगत गारंटी को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाया जा सकता है।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि केंद्र द्वारा इस संबंध में ‘विशेष’ मामलों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक सर्कुलर जारी किए जाने की संभावना है, जिससे व्यक्तिगत गारंटी के मामले में 18 प्रतिशत की कर देनदारी को बढ़ावा मिल सकता है।
ये विशेष मामले ऐसे हालात से जुड़े हो सकते हैं जिनमें निदेशक (जिसने गारंटी दी थी) अब प्रबंधन से जुड़ा नहीं है, लेकिन उसकी गारंटी जरूरी है और बरकरार है, क्योंकि नए प्रबंधन की गारंटी या तो उपलब्ध नहीं है या फिर अपर्याप्त है। अधिकारी ने स्पष्ट किया कि इसके अलावा, जिन मामलों में प्रवर्तकों, मौजूदा निदेशकों, अन्य प्रबंधन कर्मियों और उधार लेने वाली कंपनियों के शेयरधारकों को किसी भी तरीके (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष) से पारिश्रमिक का भुगतान किया गया हो, उनमें भी जीएसटी देनदारी बढ़ सकती है।
जीएसटी परिषद ने शनिवार को हुई अपनी बैठक में निदेशकों, प्रवर्तकों द्वारा दी जाने वाली व्यक्तिगत गारंटी पर कर लगाए जाने को लेकर चिंताओं को दूर किया। इस बैठक में जीएसटी परिषद ने स्पष्ट किया कि उन लेनदेन पर कोई कर नहीं लगेगा, जिनमें संबंधित वैल्यू शून्य हो।
ईवाई इंडिया में टैक्स पार्टनर सौरभ अग्रवाल ने कहा, ‘व्यक्तिगत गारंटी के संदर्भ में स्पष्टता आरबीआई के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है।’जीएसटी के तहत रिवर्स चार्ज का मतलब है कि कर आपूर्तिकर्ता के बजाय सीधे तौर पर प्राप्तकर्ता द्वारा चुकाया जाएगा।
इसके विपरीत,जीएसटी परिषद ने संबंधित व्यक्तियों (जिसमें होल्डिंग कंपनी द्वारा अपनी सहायक इकाई को दी गई गारंटी भी शामिल है) को दी गई कॉरपोरेट गारंटी पर 18 प्रतिशत कर लगाने का भी निर्णय लिया है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कॉरपोरेट गारंटी के संबंध में निर्णय व्यावसायिक वास्तविकता के अनुरूप नहीं है।