वर्ष 2023 में बीते साल की तुलना में 10 प्रतिशत कम नई औपचारिक नौकरियां सृजित हुईं। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के हालिया जारी आंकड़ों के बिज़नेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण से औपचारिक नौकरियों में गिरावट उजागर होती है। दरअसल केवल औपचारिक श्रमबल को ही श्रम कानूनों के तहत संरक्षित सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलता है। ऐसे में गिरावट का यह आंकड़ा खासतौर पर महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
ईपीएफओ के हालिया आंकड़ों के अनुसार जनवरी से अक्टूबर 2023 तक कर्मचारी भविष्य निधि कोष (ईपीएफ) में 90.6 लाख नए सदस्य जुड़े थे जबकि बीते साल की इस अवधि में 101 लाख नए सदस्य जुड़े थे। इस क्रम में 18-28 वर्ष के समूह के नए सदस्यों की संख्या इस साल 11 फीसदी गिरकर 59.7 लाख हो गई जबकि बीते साल की इस अवधि में यह संख्या 67.1 लाख थी। यह संख्या इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस आयु वर्ग के लोग आमतौर पहली बार श्रम मार्केट में आते हैं।
टीम लीज की सह संस्थापक ऋतुपर्णा चक्रवर्ती के अनुसार सेवा क्षेत्र में ज्यादातर औपचारिक श्रमबल है और यह तकनीक व ज्ञान आधारित क्षेत्र में है। इन क्षेत्रों ने राजस्व घटने और मांग सिकुड़ने के कारण श्रमबल को तार्किक आधार पर कम करने की कोशिश की है। इससे नई नौकरियों में गिरावट आई है। आंकड़ों के अनुसार नई महिला सदस्यों की संख्या 12 फीसदी गिरकर 23.5 लाख हो गई जबकि बीते साल यह संख्या 26.8 लाख थी।
चक्रवर्ती ने कहा, ‘महामारी के बाद ज्यादातर महिलाएं घर से काम करने को प्राथमिकता दे रही हैं। लेकिन अब कंपनियों अपने कर्मचारियों को कार्यालय में आकर कार्य करने को बढ़ावा दे रही हैं। इससे महिलाओं को घर संभालने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप श्रम बल में महिलाओं की हिस्सेदारी गिरी है।’
देश में बीते छह वर्षों के दौरान बेरोजगारी दर सबसे निचले स्तर पर पहुंचने के दौरान रोजगार की गुणवत्ता में गिरावट आई है। हालिया जारी सालाना आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के मुताबिक जुलाई – जून 2022-23 में बेरोजगारी की दर गिरकर छह साल के निचले स्तर 3.2 प्रतिशत पर आ गई जबकि यह जुलाई – जून 2021-22 की अवधि में 4.1 प्रतिशत थी।
श्रम अर्थशास्त्री के आर श्याम सुंदर ने बताया कि ईपीएफओ के पेरोल का आंकड़ा देश में श्रम बल के बहुत छोटे हिस्से से संबंधित है और यह देश में रोजगार सृजन को विस्तृत आधार पर प्रदर्शित नहीं करता है। सुंदर ने कहा, ‘ईपीएफओ का आंकड़ा केवल औपचारिक श्रम बल को प्रदर्शित करता है। यह दिखाता है कि इतने लोगों को सामाजिक सुरक्षा का फायदा मिल रहा है। अगर गिरावट (इसमें भी) होती है तो यह चिंता का विषय है। पीएलएफएस का आंकड़ा दर्शाता है कि लोगों ने अपने को स्वरोजगार श्रेणी में रखा है। स्वरोजगार श्रेणी में खेती में काम करने वाले लोग और घर में बिना किसी भुगतान के काम करने वाले लोग हैं। इनकी संख्या में भी हाल के दिनों में इजाफा हुआ है।’
पीएलएफएस सर्वेक्षण में यह जानकारी भी दी गई है कि खेती में काम करने वाले लोगों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। वर्ष 2022-23 की अवधि में खेती में काम करने वालों की संख्या तेजी से बढ़कर 45.8 प्रतिशत हो गई जबकि यह आंकड़ा 2011-22 में 45.5 प्रतिशत था। हालांकि इस अवधि के दौरान विनिर्माण क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या गिरकर 11.4 फीसदी हो गई जबकि पहले यह 11.6 प्रतिशत थी।
हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि महिलाओं के रोजगार सहित भारत का श्रम बाजार स्व उद्यमिता के कारण ढांचागत बदलाव के दौर से गुजर रहा है। भारत का श्रम बाजार सभी स्तरों पर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा है और औपचारिक क्रेडिट कार्यक्रमों जैसे मुद्रा योजना और पीएम स्वनिधि से अपने को सक्षम बना रहा है।