एफएमसीजी उत्पादों के वितरकों और सीधे कारोबारियों को माल देने वाली (बी2बी) वितरण कंपनियों के बीच मार्जिन के अंतर का मामला गरमा गया है। वितरकों के शीर्ष संगठन ने एफएमसीजी कंपनियों को चि_ी लिखकर सामान्य वितरकों और ऑफलाइन तथा ऑनलाइन बी2बी वितरण कंपनियों के बीच कीमतों में अंतर की शिकायत की है।
पिछले कुछ साल में संगठित क्षेत्र की बी2बी वितरण कंपनियां बाजार में फैल गई हैं। उन्हें एफएमसीजी कंपनियों से ज्यादा मार्जिन मिलता है यानी उन्हें सामान्य वितरकों के मुकाबले कम कीमत पर सामान मिल जाता है। इससे पारंपरिक वितरकों के कारोबार पर चोट पड़ रही है।
देश भर में 4.50 लाख वितरक सदस्यों वाले अखिल भारतीय उपभोक्ता उत्पाद वितरक संघ (एआईसीपीडीएफ) ने उपभोक्ता कंपनियों को पत्र लिखकर पारंपरिक वितरक नेटवर्क और बी2बी वितरकों जैसे जियोमार्ट, मेट्रो कैश ऐंड कैरी, बुकर तथा ई-कॉमर्स कंपनियों जैसे उड़ान और इलास्टिक रन आदि के बीच उत्पादों के मूल्य निर्धारण की समस्या हल करने के लिए बैठक करने को कहा है।
एआईसीपीडीएफ के अध्यक्ष धैर्यशील पाटिल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘अन्य भागीदारों द्वारा भारी छूट दिए जाने से बाजार में एकाधिकार की स्थिति बन रही है और पारंपरिक व्यापार बरबाद हो रहा है। इससे बेरोजगारी भी बढ़ रही है, जबकि ये एफएमसीजी कंपनियों की आपूर्ति शृंखला के लिए अहम हैं। हमें ग्राहकों को लाभ दिए जाने पर आपत्ति नहीं है, लेकिन रिटेलर अनैतिक रूप से पैसे खर्च कर बाजार में उत्पादों की कीमतें बिगाडऩे का काम कर रहे हैं।’
रिटेलर भी नई पीढ़ी के वितरकों से खरीदारी करना पसंद कर रहे हैं क्योंकि वे पारंपरिक वितरकों की तुलना में ज्यादा मार्जिन देते हैं। पारंपरिक वितरक 8 से 12 फीसदी मार्जिन देते हैं, जबकि बड़े बी2बी स्टोर और ऑनलाइन वितरक 15 से 20 फीसदी तक का मार्जिन दे रहे हैं। एआईसीपीडीएफ ने कहा कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी जाती हैं तो वे 1 जनवरी, 2020 से सभी एफएमसीजी कंपनियों के खिलाफ ‘असहयोग आंदोलन’ शुरू करेंगे। मांगों की सूची में देश भर में सभी वितरकों के लिए एकसमान मूल्य निर्धारण और योजनाएं देना शामिल है।
वितरकों ने कहा कि सभी योजनाएं प्राथमिक आधार पर दी जाएं और लगातार बढ़ती लागत को ध्यान में रखकर तथा उसे महंगाई के मुताबिक ढालकर मार्जिन दोबारा तय किया जाए। पत्र में यह भी कहा गया है कि रिटेलरों द्वारा दी जाने वाली योजनाएं वित्तीय क्रेडिट नोट वाली होनी चाहिए और उद्यम संसाधन योजना (ईआरपी) करोपरांत होनी चाहिए, कर पूर्व नहीं ताकि इनपुट कर में फंसने वाली रकम निकल सके।
वित्तीय क्रेडिट नोट कंपनियां रिटेलरों को दी जाने वाली योजनाओं के लिए जारी करती हैं और वितरक इसमें मदद करते हैं। वितरकों द्वारा सुझाए तरीके से यह काम किया गया तो वितरक इनपुट कर क्रेडिट चुन सकते हैं। ईआरपी की बात करते हुए एक वितरक ने कहा कि योजना की राशि वितरकों को दिए जाने वाले बिल पर होनी चाहिए, रिटेलर को दिए जाने वाले बिल में नहीं।
वितरकों ने कंपनियों से क्षतिग्रस्त, वैधता तिथि खत्म होने वाले उत्पादों को वापस लेने के लिए भी कहा है। वितरकों ने नया करार तथा मसौदा समिति गठित करने की मांग की है जिसमें सभी संबंधित पक्षों और नियामकीय निकाय को शामिल किया जाए।
एआईसीपीडीएफ के पत्र में कहा गया है कि प्रत्येक एफएमसीजी कंपनी को एक स्वतंत्र लोकपाल नियुक्त करना चाहिए, जो सभी व्यापार चैनल की शिकायतों को देखेगा। बिजनेस स्टैंडर्ड ने उपभोक्ता कंपनियों (हिंदुस्तान यूनिलीवर, टाटा कंज्यूमर, आईटीसी, मैरिको, डाबर, ब्रिटानिया, मॉन्डलेज इंडिया, गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, रैकेट बेंकिसर इंडिया और कॉलगेट पामोलिव इंडिया) को ईमेल भेजकर पूछा कि उन्हें वितरकों का पत्र मिला या नहीं और उनकी मांगें मानी जाएंगी या नहीं। मगर कंपनियों ने जवाब नहीं दिया।
नेस्ले इंडिया ने ईमेल में कहा कि उसे एफएमसीजी कंपनियों को भेजा गया पत्र मिला है।
वितरकों की आगे की योजना
वितरक संगठन ने कहा कि अगर कंपनियां नई पीढ़ी के वितरकों जितना मार्जिन नहीं देती हैं तो वे संगठित बी2बी वितरकों द्वारा बेचे जाने वाले उत्पादन बेचना बंद कर देंगे। अगर कंपनियां समान मौका उपलब्ध कराने में विफल रहती हैं तो वितरक जियोमार्ट/बी2बी कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले उत्पादों को अपने पोर्टफोलियो से हटा लेंगे।
पारंपरिक वितरक कपनियों द्वारा उतारे गए नए उत्पाद भी रिटेलरों के पास नहीं पहुंचाएंगे।
