टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के दफ्तरों में सोमवार की सुबह हर तरफ निराशा और आशंका का माहौल नजर आया। कंपनी के 2 प्रतिशत यानी 12,000 से ज्यादा कर्मचारियों को नौकरी से निकाले जाने की खबर ज्यादातर कर्मचारियों तक आधिकारिक सूचना के जरिये नहीं बल्कि सुबह के अखबारों से मिली जिससे वे सकते में आ गए। उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि इतने बड़े पैमाने पर छंटनी होगी। भारत की सबसे बड़ी आईटी सेवा कंपनी टीसीएस लंबे समय से नौकरी के लिहाज से स्थिर और सुरक्षित कंपनी मानी जाती रही है।
एक मध्यम स्तर के कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘मुझे लगता है कि कंपनी के आंतरिक पोर्टल पर यह अपडेट रविवार दोपहर को ही आ गया होगा, लेकिन हममें से ज्यादातर लोगों ने उसे नहीं देखा।’
यह पहली बार है जब टीसीएस ने आधिकारिक रूप से बड़े पैमाने पर छंटनी की घोषणा की है। इससे पहले 2012 में ऐसा ही मामला सामने आया था, जब कंपनी ने लगभग 2,500 कर्मचारियों की छंटनी की थी। टाटा समूह की कंपनियों और खास तौर पर टीसीएस ने कोविड-19 और 2008 के वित्तीय संकट जैसी परिस्थितियों में भी कर्मचारियों की कोई छंटनी नहीं की थी, ऐसे में कंपनी में यह एक बड़ा बदलाव है।
एक अन्य कर्मचारी ने कहा, ‘टीसीएस, एक सुरक्षित कंपनी मानी जाती थी। इसने हर मुश्किल दौर में कर्मचारियों का साथ दिया। इसी वजह से इस बात को पचा पाना मुश्किल हो रहा है।’ कई लोगों ने कहा कि कंपनी टाटा के मूल्यों से अलग राह पर चल रही है जबकि एक कर्मचारी ने अपनी बेचैनी जाहिर करते हुए कहा, ‘यह सब कुछ रतन टाटा के निधन के ठीक एक साल बाद हो रहा है।’
कई कर्मचारियों ने यह भी कहा कि कंपनी लगातार एआई (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस) पर जोर दे रही थी और कर्मचारियों को इसके लिए अपना कौशल बढ़ाने और एआई प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसे में यह कदम विरोधाभासी लगता है।
अब आशंका के बादल टीसीएस के अलावा अन्य कंपनियों पर भी दिख रहे हैं और यह चिंता जताई जा रही है कि दूसरी बड़ी आईटी कंपनियां भी ऐसे ही कदम उठा सकती हैं। कई लोगों को यह भी आशंका है कि टीसीएस में छंटनी के वास्तविक आंकड़े कहीं ज्यादा होंगे।
इस बीच कर्मचारी संगठन, कर्नाटक राज्य आईटी कर्मचारी संघ (केआईटीयू) ने एक पत्र में इस छंटनी को टीसीएस प्रबंधन द्वारा अवैध कार्रवाई बताते हुए इसकी निंदा की। कर्मचारी संगठन ने कहा कि वह इस गैरकानूनी कदम के खिलाफ श्रम विभाग से संपर्क कर रहा है।
केआईटीयू ने अपने पत्र में लिखा, ‘औद्योगिक विवाद अधिनियम के अनुसार, किसी कंपनी का किसी कर्मचारी को इस्तीफा देने के लिए मजबूर करना दंडनीय अपराध है। हर कर्मचारी पास यह कानूनी अधिकार है कि वह जबरन इस्तीफे पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दे।’
इस उद्योग के विशेषज्ञ और एचआर विभाग से जुड़े लोग इस तरह के फैसले के लिए महामारी के वर्षों के दौरान अधिक भर्ती की मची होड़ को जिम्मेदार मानते हैं। विशेषज्ञों को इस बात से हैरानी हो रही है कि छंटनी मध्य-से-वरिष्ठ स्तरों पर केंद्रित है जो आमतौर पर आईटी कंपनियों में सबसे स्थिर वर्ग होता है।
विशेषज्ञ स्टाफिंग कंपनी एक्सफेनो के आंकड़ों के अनुसार भारतीय आईटी कंपनियों में सबसे अधिक छंटनी 1-5 साल के अनुभव वाले वर्ग (17 फीसदी) में होती है, इसके बाद 5-10 साल के अनुभव वर्ग (12 फीसदी) में होती है। इसके विपरीत, 10-15 साल के अनुभव वाले लोगों में छंटनी की दर घटकर 7 फीसदी और15 साल से अधिक अनुभव वाले कर्मचारियों के लिए यह महज 4 फीसदी रह जाती है।
एक्सफेनो के सह संस्थापक कमल कारंत ने कहा कि मध्यम स्तर पर बहुत भर्ती हुई लेकिन निचले स्तर पर फ्रेशर की भर्ती की रफ्तार कम रही। टीमलीज डिजिटल की सीईओ नीति शर्मा ने कहा कि 15-20 वर्ष के अनुभव वाले लोग इससे ज्यादा प्रभावित होंगे।