उच्चतम न्यायालय ने 2 मई को भूषण पावर ऐंड स्टील (बीपीएसएल) के मामले में अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) और उसके अपीली निकाय के पास धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 की न्यायिक समीक्षा का अधिकार नहीं है।
अधिग्रहण के 4 साल बाद भूषण स्टील के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील की समाधान योजना को खारिज करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि पीएमएलए एक सार्वजनिक कानून है, जिसके तहत व्यक्ति और सरकार व उसकी इकाइयों के संबंधों का संचालन होता है। राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण को कोई शक्ति या अधिकार क्षेत्र नहीं है, जिससे वह पीएमएलए के तहत आने वाले वैधानिक प्राधिकरण के फैसले की समीक्षा करे।
न्यायालय ने कहा कि एनसीएलटी और एनसीएलएटी का गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 और 410 के तहत किया गया है, न कि आईबीसी के तहत।
सार्वजनिक कानून के दायरे में आने वाले किसी मामले के संबंध में सरकार या वैधानिक प्राधिकरण द्वारा लिए गए निर्णय पर न तो एनसीएलटी और न ही एनसीएलएटी को न्यायिक समीक्षा की शक्तियां प्राप्त हैं।
जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कंपनी के पूर्व प्रमोटरों द्वारा पीएमएलए अधिनियम के कथित उल्लंघन के मामले में अक्टूबर 2019 में बीपीसीएल की 4,025.23 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति की अनंतिम कुर्की (पीएओ) का आदेश जारी कर दिया, जब इसमें पीएमएलए का मसला आया। जेएसडब्ल्यू की समाधान योजना को एनसीएलटी से मंजूरी मिलने के एक महीने बाद यह आदेश आया था।
जेएसडब्ल्यू ने पीएओ पारित करने की ईडी की शक्तियों को चुनौती देते हुए एनसीएलएटी में अपील दायर की। इस आदेश पर 18 अक्टूबर, 2019 को रोक लगा दी गई। उच्चतम न्यायालय ने पाया कि इसके दो महीने बाद आईबीसी में धारा 32ए जोड़ा गया, जो 12 दिसंबर, 2019 से प्रभावी हुआ।
अगर समाधान योजना को निर्णायक प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित कर दिया गया हो तो धारा 32ए कॉरपोरेट दीवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) शुरू होने से पहले किए गए अपराध के लिए कॉरपोरेट देनदार को अभियोजन से संरक्षण प्रदान करता है।
एनसीएलएटी ने जेएसडब्ल्यू स्टील की समाधान योजना को बरकरार रखते हुए कहा कि धारा 32ए के मद्देनजर प्रवर्तन निदेशालय/जांच एजेंसियों के पास कॉरपोरेट देनदार (बीपीएसएल) की संपत्ति कुर्क करने की शक्तियां नहीं हैं और कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ आपराधिक जांच नहीं हो सकती है।
कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) ने पीएओ को भी उच्चतम न्यायालय में दायर विशेष अनुमति याचिका में चुनौती दी थी, जिस पर 18 दिसंबर, 2019 को रोक लगा दी गई थी।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि चूंकि मामला उसके समक्ष लंबित है, इसलिए एनसीएलएटी को इस मुद्दे पर निर्णय नहीं करना चाहिए था, इस मुद्दे पर निर्णय करना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।