भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मानकों का उल्लंघन करने पर संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (एआरसी) के खिलाफ नियामकीय या पर्यवेक्षी कार्रवाई करने की चेतावनी दी है। एआरसी के निदेशक मंडल को संबोधित करते हुए डिप्टी गवर्नर स्वामीनाथन जानकीरमन ने कहा कि कार्यस्थल पर जांच के दौरान हमने ऐसे उदाहरण देखे हैं जहां एआरसी का इस्तेमाल किया गया है या उन्होंने संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के लिए मार्ग के रूप में खुद को इस्तेमाल करने की अनुमति दी।
उन्होंने 17 मई को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आयोजित एआरसी के निदेशक मंडल के उद्घाटन सम्मेलन के दौरान कहा, ‘यह भी देखा गया है कि जब किसी खास गतिविधि को उल्लंघन या चूक मान लिया जाता है तो कुछ इकाइयां अपने डिजाइन के भीतर नए रास्ते तलाश लेती हैं।’ इस भाषण की प्रति रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर आज अपलोड की गई है।
रिजर्व बैंक ने कहा कि जहां भी इस तरह की गतिविधियां सामने आईं, उसने संस्थाओं को लाभ पर पूंजीगत शुल्क अलग रखने सहित सुधार के निर्देश दिए हैं। स्वामीनाथन ने कहा, ‘ऐसी स्थिति में चरम मामलों में नियामक या पर्यवेक्षी कार्रवाई भी की जा सकती है। हालांकि हम इसे अंतिम उपाय के रूप में ही इस्तेमाल करना चाहेंगे।’
इस समय नियामक से कुल 27 एआरसी पंजीकृत हैं। आज बैंकिंग नियामक ने एडलवाइस एआरसी पर वित्तीय संपत्तियों के अधिग्रहण और सिक्योरिटी रिसीट पर रोक लगा दी। एडलवाइज ग्रुप की एनबीएफसी इकाई, ईसीएल फाइनैंस को भी होलसेल एक्पोजरों के संबंध में कोई भी ढांचागत लेनदेन करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
रिजर्व बैंक ने इस समूह की संस्थाओं के आपसी तालमेल के साथ काम करने के कारण पैदा चिंता का हवाला देते हुए यह प्रतिबंध लगाए हैं। रिजर्व बैंक ने एआरसी से अनुरोध किया कि वे नियमन के साथ ऐसे तरीकों को स्वीकार करें, जिसमें न सिर्फ नियमों का अनुपालन हो, बल्कि उसकी भावना भी कार्रवाई में निहित हो। डिप्टी गवर्नर ने इन फर्मों के बिजनेस मॉडल पर भी सवाल उठाए हैं।
ऐसा पाया गया है कि वे एकमुश्त समाधान और ऋण के पुनर्गठन का काम कर रही हैं, जैसा कि बैंक भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘एआरसी ढांचे का मकसद ऋण देने वालों को उनके खातों से दबाव वाली संपत्तियों को हटाकर ऋण देने के अपने मूल कार्यों पर ध्यान देने की सुविधा देना था।
आंकड़ों की समीक्षा से पता चलता है कि एआरसी द्वारा एक मुश्त समाधान और कर्ज के पुनर्गठन कदम बहुत ज्यादा उठाए जा रहे हैं। तार्किक बात यह है कि ये कदम कर्जदाताओं द्वारा खुद उठाए जा सकते थे।’उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक के सामने कई मामले ऐसे आए हैं जहां एआरसी ने संकट में फंसी संपत्ति को अपने पास रख लिया है, जबकि कर्ज देने वाले संग्रह के साथ उधारी लेने वाले की प्रतिभूतियां रखने का काम जारी रखे हुए हैं।
एआरसी को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि क्या वे शुल्क के लिए वेयरहाउस एजेंसी बनना चाहती हैं, जो इसके ढांचे का मकसद नहीं था। व्यवस्था के भीतर दबाव वाली संपत्तियों के समाधान के लिए एआरसी की क्षमता का केवल तभी बेहतर उपयोग हो सकता है जब संचालन व्यवस्था मजबूत हो और गतिविधियों के स्तर पर नीतियों का पालन हो।