भारत के शेयर बाजार में बदलाव आ रहा है और प्रवर्तक अप्रत्याशित तेजी से कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम कर रहे हैं। शीर्ष 200 निजी स्वामित्व वाली सूचीबद्ध कंपनियों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी करीब 600 आधार अंक घट गई है। इन कंपनियों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2021 में 43 फीसदी थी जो वित्त वर्ष 2025 के अंत में घटकर 37 फीसदी रह गई।
प्रवर्तकों द्वारा ब्लॉक डील के जरिये शेयर बेचने की वजह से हिस्सेदारी में गिरावट आई है। इनमें से ज्यादातर शेयर घरेलू म्युचुअल फंडों (एमएफ) ने खरीदे हैं। वित्त वर्ष 2021 और वित्त वर्ष 2025 के बीच बीएसई 200 कंपनियों में म्युचुअल फंडों की शेयरधारिता 360 आधार अंक बढ़कर 10.9 फीसदी हो गई जबकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की हिस्सेदारी 420 आधार अंक घटकर 24.4 फीसदी रह गई।
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के अनुसार शेयरधारिता में बदलाव प्रवर्तकों द्वारा उच्च मूल्यांकन का लाभ उठाने और म्युचुअल फंडों द्वारा मूल्य तटस्थ यानी उतार-चढ़ाव से बेअसर खरीदार बनने को दर्शाता है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने एक नोट में कहा है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बिकवाली के बावजूद घरेलू संस्थागत निवेशकों की ओर से प्रवाह बना हुआ है।
वर्ष 2025 की पहली छमाही के दौरान घरेलू संस्थागत निवेशकों ने सूचीबद्ध शेयरों में 3.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जो पिछले वर्ष की समान अवधि के दौरान 2.4 लाख करोड़ रुपये था। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इस दौरान 82,000 करोड़ रुपये से अधिक की शुद्ध बिकवाली की थी।
घरेलू संस्थागत निवेश के निरंतर प्रवाह ने बाजार में बड़ी हिस्सेदारी बिक्री को अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ाया है। इस साल की शुरुआत में ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको (बीएटी) ने आईटीसी में और सिंगटेल ने भारती एयरटेल में करीब 13,000-13,000 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यूआर भट्ट ने कहा, ‘कई प्रवर्तकों ने नई परियोजनाओं के लिए या कर्ज कम करने के लिए पूंजी जुटाई है।’
प्रवर्तकों की कम शेयरधारिता ने भारतीय इक्विटी के फ्री-फ्लोट बाजार पूंजीकरण (एमकैप) को बढ़ा दिया है जिससे एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट्स (ईएम) इंडेक्स जैसे वैश्विक बेंचमार्क में भारत का भार बढ़ गया है। जून 2025 तक एमएससीआई ईएम इंडेक्स में भारत का भार 18.12 फीसदी तक पहुंच गया जो 2021 में 8 फीसदी से भी कम था। इंडेक्स में भार के लिहाज से भारत केवल चीन से पीछे है जिसका भार 28.4 फीसदी है।
भारत में गैर-प्रवर्तकों की शेयरधारिता हमेशा से अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, ताइवान, दक्षिण कोरिया, ब्राजील और सिंगापुर जैसे वैश्विक बाजारों से पीछे रही है। आम तौर पर विकसित दुनिया में फ्री फ्लोट एमकैप 90 फीसदी से
अधिक है। हालिया गिरावट से भारत का फ्री फ्लोट दक्षिण कोरिया, ब्राजील और ताइवान जैसे एशियाई बाजारों के करीब आया है।
प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 2009 के मुकाबले बहुत कम हो गई है। उस साल अनिवार्य 25 फीसदी न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों की शुरुआत से नहीं हुई थी। मार्च 2009 में प्रवर्तकों की शेयरधारिता 19 साल के उच्च स्तर 57.6 फीसदी पर थी।