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महंगा पड़ता है घर बैठे खाना मंगाना, जेब पर भारी ऐसी सहूलियत

जब आप ऑनलाइन ऑर्डर देकर भोजन या अन्य खाद्य पदार्थ मंगाते हैं तो आपको असली कीमत से थोड़ा अधिक भुगतान करना पड़ता है।

Last Updated- September 15, 2024 | 10:01 PM IST
Ordering food at home is expensive, such convenience is heavy on the pocket महंगा पड़ता है घर बैठे खाना मंगाना, जेब पर भारी ऐसी सहूलियत

घर बैठे ऑर्डर देकर खान-पान की वस्तुएं मंगाना सहूलियत भरा जरूर होता है मगर इसके लिए कीमत चुकानी पड़ती है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो जब आप ऑनलाइन ऑर्डर देकर भोजन या अन्य खाद्य पदार्थ मंगाते हैं तो आपको असली कीमत से थोड़ा अधिक भुगतान करना पड़ता है। अगर आप किसी रेस्टोरेंट में जाकर यही वस्तुएं ऑर्डर करें तो खाना पीना सस्ता पड़ेगा।

जब ऑनलाइन ऑर्डर देकर खान पान की वस्तुएं मंगाई जाती है तो उस पर डिफरेंशियल प्राइसिंग की शर्त लागू होती है। डिफरेंशियल प्राइसिंग एक तरह से नियम का उल्लंघन माना जा सकता है। ऑनलाइन ऑर्डर लेकर खान-पान पहुंचाने वाले ऑनलाइन ऐप ज्यादातर मामलों में अधिक कीमतें वसूलते हैं।

उदाहरण के लिए जब आप दिल्ली- एनसीआर, मुंबई, बेंगलूरु या किसी अन्य शहर में किसी रेस्टोरेंट में जाकर खाना खाते हैं तो वहां आपको एक मसालेदार चिली पोटैटो के लिए 499 रुपये देने पड़ते हैं। मगर जब आप वही खाना स्विगी या जोमैटो जैसी ऑनलाइन एप से मांगते हैं तो इसके लिए आपको 549 रुपये भुगतान करने पड़ेंगे। इसी तरह एक सुशी प्लेट 999 रुपये में मिलेगा लेकिन यही अगर आप ऑनलाइन एप से मांगते हैं तो आपको जेब अधिक ढीली करनी पड़ सकती है यानी लगभग 1,100 रुपये तक का भुगतान करना पड़ सकता है।

दिल्ली एनसीआर में चाप बेचने वाले एक मशहूर रेस्टोरेंट में मलाई चाप 120 रुपये में मिलता है मगर जब वह ऑनलाइन ऑर्डर लेकर खाना भेजता है तो180 रुपये लेता है। वेज तंदूरी मोमो की एक प्लेट की कीमत 180 रुपये होती है मगर जब आप ऐप से ऑर्डर करेंगे तो इसके लिए 260 रुपये चुकाने होंगे। ग्राहकों को तत्काल सेवा देने वाली एक रेस्टोरेंट कंपनी में डिफरेंशियल प्राइसिंग का पता लग जाता है। सूत्रों के अनुसार इसके बर्गर की कीमतों में 25 से लेकर 49 रुपये तक का फर्क देखने को मिल सकता है।

बिज़नेस स्टैंडर्ड ने पिछले एक सप्ताह के दौरान कई ऑनलाइन ऐप और रेस्टोरेंट के बिल देखे जिसमें डिफरेंशियल प्राइसिंग का मामला साफ दिखता है। कीमतों में डिलिवरी चार्ज या प्लेटफार्म फीस नहीं लगते हैं। ऑनलाइन और ऑफलाइन आप किसी भी माध्यम से खाना मंगाए या खाएं इस पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) एक जैसा ही लगता है। जब आप किसी रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं तो बिल के साथ सर्विस चार्ज यानी सेवा शुल्क भी जुड़ कर आता है। मगर यह वैकल्पिक होता है और आप वेटर को देना चाहे तो दे सकते हैं या फिर नहीं। जब आप ऑनलाइन ऑर्डर देकर खाना मंगाते हैं तो आप खाना पहुंचाने वाले व्यक्ति को स्वेच्छा से टिप दे सकते हैं।

डिफरेंशियल प्राइसिंग पर जब जोमैटो और स्विगी को ईमेल किया गया तो उनका कोई जवाब नहीं आया। एक रेस्टोरेंट मालिक ने कहा, ‘प्लेटफॉर्म शुल्क अधिक होने के कारण हम डिफरेंशियल प्राइसिंग की नीति अपनाते हैं। लोग जोमैटो और स्विगी जैसे प्लेटफॉर्म पर डिस्काउंट कूपन का इस्तेमाल करते हैं जिससे हमारे मार्जिन पर असर पड़ता है। स्विगी और जोमैटो रेस्टोरेंट से 22 से 35 प्रतिशत के बीच कमीशन लेते हैं।’

नैशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष प्रणव रुंगटा कहते हैं, प्लेटफॉर्म 18 से 19 प्रतिशत कमीशन लेते हैं। इसके अलावा जीएसटी और पेमेंट गेटवे सहित पूरा खर्च 24 से 25 प्रतिशत तक बैठ जाता है।

First Published - September 15, 2024 | 10:01 PM IST

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