ओपेक प्लस देशों द्वारा कच्चे तेल का उत्पादन मौजूदा स्तर पर जारी रखे जाने से भारत की आपूर्ति प्रभावित होने की आशंका नहीं है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि वैश्विक औद्योगिक मांग कम रहने और रूस के कच्चे तेल पर छूट जारी रहने की स्थिति में भारत की आपूर्ति प्रभावित नहीं होगी।
रविवार को ओपेक प्लस देशों ने उत्पादन में स्वैच्छिक कटौती की अवधि आगे बढ़ाने का फैसला किया था। इस समूह ने उत्पादन में कुल 58.6 लाख बैरल प्रतिदिन या तेल की वैश्विक मांग का 5.7 प्रतिशत कटौती जारी रखने की घोषणा की है।
इसमें प्रमुख उत्पादन में 36.6 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती 2025 के अंत तक किया जाना शामिल है। साथ ही सऊदी अरब और रूस सहित 8 देशों द्वारा वर्तमान में लागू की जा रही 22 लाख बैरल प्रतिदिन उत्पादन में कटौती को भी 3 महीने के लिए सितंबर के अंत तक बढ़ा दिया जाएगा। कटौती की यह योजनाएं जून के अंत तक खत्म होने वाली थीं, लेकिन अब इसे अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 के बीच चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाएगा।
एक अधिकारी ने कहा, ‘ताजा घोषणा उत्पादन में मौजूदा कटौती को जारी रखने की है। इससे भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति में कोई बदलाव होने की संभावना नहीं है।’
अधिकारियों ने कहा कि ढुलाई की लागत बढ़ने और जहाजों की लूट के जोखिम से भारत को तेल की आपूर्ति बाधित होने से अस्थायी रूप से तेल के दाम में उतार चढ़ाव हो सकता है।
एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘हम लाल सागर और फारस की खाड़ी में स्थिति की निगरानी कर रहे हैं। 2022 से भूराजनीतिक जोखिम बार बार बढ़ने से इस क्षेत्र में समुद्री व्यापार मार्ग बाधित हुए हैं। अब तक भारत का आयात बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है, लेकिन स्थिति लगातार गतिशील बनी हुई है।’
कच्चे तेल की वैश्विक मांग में गिरावट की चिंता से तेल उत्पादक देशों की चिंता बढ़ी है। ओपेक ने 2024 के आखिरी महीनों में तेल की मांग बढ़ने का अनुमान लगाया है, वहीं मांग में वृद्धि को लेकर स्थिति अनिश्चित है।
चीन सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल महीने में चीन के कच्चे तेल का उत्पादन 3.3 प्रतिशत घटकर 143.6 लाख बैरल प्रति दिन रह गया, जो अगस्त 2022 के बाद सालाना आधार पर पहली मासिक गिरावट है।
अधिकारियों को उम्मीद है कि कम मांग के कारण कीमतों में कमी रहेगी। अप्रैल की शुरुआत में कई बार 90 डॉलर प्रति बैरल के पार जाने के बाद ब्रेंट क्रूड अब मई में 81-82 डॉलर के स्तर पर स्थिर हो गया है।
ओपेक प्लस की घोषणा के बाद कीमत 80.75 डॉलर के स्तर पर स्थिर है और यह सोमवार को रिपोर्ट लिखे जाने के वक्त 80.8 डॉलर प्रति बैरल थी।
बहरहाल अधिकारियों ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में बढ़ती अनिश्चितता से ओपेक को आगे कदम उठाने को मजबूर होना पड़ सकता है और आगे अगर और कटौती होती है तो इससे आपूर्ति का संतुलन प्रभावित हो सकता है। ओपेक ने 2024 तेल के वैश्विक मांग में वृद्धि का अनुमान लगाया था। मार्च से अब तक इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है और 22 लाख बैरल प्रतिदिन बना हुआ है।
अधिकारियों ने यह भी कहा कि भारत के तेलशोधकों को छूट पर रूस से लगातार तेल मिलते रहने का आश्वासन मिला है।
एक सरकारी रिफाइनरी के अधिकारी ने कहा, ‘रूस के तेल पर छूट 2023 के मध्य में कम हो गई थी, लेकिन बाद के महीनों में फिर छूट मिलने लगी। मौजूदा स्थितियों को देखते हुए इस बात के कोई संकेत नहीं हैं, कि छूट में अचानक कोई भारी कमी कर दी जाएगी।’
वैश्विक ट्रेड इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म केप्लर के अनुमान के मुताबिक मई तक भारत के कुल आयात में रूस के कच्चे तेल की हिस्सेदारी 40.9 प्रतिशत बनी हुई है, जो 42 प्रतिशत के ऐतिहासिक उच्च स्तर की तुलना में थोड़ा कम है।