नीति आयोग के पूर्व सीईओ और जी20 के शेरपा अमिताभ कांत ने मंगलवार को कहा कि ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) में दूसरी पीढ़ी के सुधारों की जरूरत है, जिससे इसकी वर्तमान कार्यप्रणाली के संबंध में चिंता दूर की जा सके।
भारतीय ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) के वार्षिक समारोह में बोलते हुए कांत ने कहा कि पिछले वित्त वर्ष में राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (एनसीएलटी) के दिवाला समाधान में औसतन 716 दिन लगे हैं, जो 2022-23 के 654 दिन की तुलना में अधिक है। उन्होंने कहा कि मामले को दाखिल करने की औसत अवधि वित्त वर्ष 2021 के 468 दिन से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में 650 दिन हो गई है।
कांत ने कहा कि दाखिल किए गए दावों के प्रतिशत के हिसाब से रिकवरी की दर 2023-24 में गिरकर 27 प्रतिशत रह गई है, जो इसके पहले के वित्त वर्ष में 36 प्रतिशत थी। इसकी वजह से 2016 में आईबीसी पेश किए जाने के बाद से कुल मिलाकर रिकवरी घटकर 32 प्रतिशत पर आ गई है। कांत ने कहा, ‘देर से न्याय देना, न्याय देने से इनकार करना है। हमें इसका समाधान निकालने की जरूरत है।’