सरकार ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (IBC) से संबंधित मामले निपटाने के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (NCLT) के नियमों में बदलाव की योजना बना रही है। आधिकारिक सूत्रों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी दी।
इसके साथ ही कंपनी मामलों का मंत्रालय भी विभिन्न NCLT पीठों में खाली पड़े पद अगस्त तक भरने की उम्मीद कर रहा है। इसके अलावा मामले संभालने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) यानी कृत्रिम मेधा वाली आईटी प्रणाली भी स्थापित की जाएगी।
IBC लागू होने से पहले कंपनी संबंधी विवादों को निपटाने के लिए एक सक्षम प्राधिकरण के तौर पर NCLT का गठन किया गया था। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘NCLT के पास उन कंपनियों को बंद करने के लिए नियम हैं, जो कंपनी अधिनियम से संबंधित हैं। मगर IBC काफी अलग कानून है।’
नियमों का मसौदा पंचाट के लिए दिशानिर्देश के तौर पर काम करेगा। उदाहरण के लिए NCLT को उन फालतू आवेदनों के लिए दंडित करने का अधिकार मिल सकता है जिनका उद्देश्य कॉरपोरेट समाधान प्रक्रिया में देरी करना मात्र होता है। इसके अलावा कुछ मामले तेजी से निपटाने के लिए प्राथमिकता सूची भी हो सकती है।
IBC के वकील अक्सर कहते हैं कि श्रमबल, बुनियादी ढांचे और डोमेन विशेषज्ञता के अभाव में NCLT और IBC का ठीक से तालमेल नहीं बैठ पाता। जून 2016 में IBC आने के बाद NCLT ने पूरी क्षमता से कभी काम नहीं किया।
इस समस्या से निपटने के लिए सरकार दोतरफा रणनीति पर अमल करना चाहती है। कंपनी मामलों का मंत्रालय पंचाट के विभिन्न पीठों में 22 रिक्त पदों को अगस्त तक भरने की योजना बना रहा है। इसके अलावा IBC मामले संभालने के लिए आईटी क्षमता वाली प्रणाली स्थापित करने की भी मंत्रालय की योजना है।
उदाहरण के लिए यदि किसी मामले में ट्रिब्यूनल को समाधान पेशेवर (RP) नियुक्त करना है तो भारतीय ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया बोर्ड (IBBI) में पंजीकृत पेशेवरों की सूची से AI के जरिये किसी को चुना और नियुक्त किया जाएगा।
अधिकारियों ने यह भी कहा कि कानून एवं अन्य जानकारियों के लिए न्यायाधीशों की कनिष्ठ कर्मचारियों पर निर्भरता भी सूचना प्रौद्योगिकी से लैस प्रणाली के जरिये कम की जाएगी। मंत्रालय IBC में भी ई-मेल के जरिये नोटिस आदि भेजने के लिए आईटी प्रणाली के उपयोग पर विचार कर रहा है।
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लॉ फर्म अल्वारेज ऐंड मार्शल ने अपने एक परिपत्र में कहा है कि NCLT के पीठ में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने में पंजीकरण के स्तर पर पारदर्शिता का अभाव था, जिसके लिए अक्सर बाद में पूछते रहना पड़ता था। डिजिटल व्यवस्था नहीं होना इसकी असली वजह थी।
दिवालिया पेशेवर अभिलाष लाल ने कहा, ‘दस्तावेजों और प्रक्रियाओं की अधिकता के कारण NCLT में मामले निपटाने की रफ्तार सुस्त पड़ जाती थी। NCLT में मामले दाखिल करने का लिहाज से प्रक्रियाएं व्यवस्थित करने, अनावश्यक प्रशासनिक दखल खत्म करने और कोविड के दौरान अपनाई गई प्रक्रिया को ई-मोड या डिजिटल में बदलने से मुकदमों का बोझ कम करने में मदद मिलेगी।
ट्रिब्यूनल के आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2017 और अगस्त 2022 के बीच NCLT में कुल 31,203 मामले थे। इनमें से 7,175 मामले अदालत में स्वीकार होने से पहले के चरण में अटके थे और 3,369 मामले स्वीकार होने के बाद अटके पड़े थे।