बीएस बातचीत
पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान बॉन्ड प्रतिफल में भारी तेजी ने इक्विटी बाजारों को प्रभावित किया है। यूटीआई एएमसी के समूह अध्यक्ष एवं प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) अमनदीप चोपड़ा ने पुनीत वाधवा को एक साक्षात्कार में बताया कि यदि निवेश अवधि तीन साल से कम रखी जाए तो निवेशक लो-ड्यूरेशन और शॉर्ट-टर्म फंड जैसे फंडों पर विचार कर सकते हैं। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
क्या आप बॉन्ड प्रतिफल में भारी तेजी की वजह से रणनीति में बदलाव ला रहे हैं?
हमने अपनी प्रमुख योजनाओं में अवधि घटाई है जिससे बढ़ते प्रतिफल का प्रभाव कम हुआ है। हम कुछ समय से यह कहते रहे हैं कि हमें आरबीआई द्वारा अब और ज्यादा नरमी की उम्मीद नहीं है। रिकवरी की रफ्तार कोविड-19 की दूसरी लहर के साथ अब धीमी रह सकती है। इसलिए आरबीआई तरलता बरकरार रखकर वृद्घि को मजबूती प्रदान करेगा।
क्या आप इस तेजी को नियंत्रित करने के लिए वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा और ज्यादा समन्वित कदमों की उम्मीद कर रहे हैं?
वैश्विक आर्थिक परिदृश्य वर्ष 2020 के मुकाबले काफी सुधरा है और कई प्रमुख संकेतक सुधर रहे हैं। कोविड टीके की तेज पेशकश से बाजार धारणा सुधरी है। आक्रामक वित्तीय प्रोत्साहन और केंद्रीय बैंक की नरमी से कुछ मुद्रास्फीतिकारी आशंकाओं को बढ़ावा मिल सकता है। इससे वैश्विक बॉन्ड प्रतिफल में तेजी को बढ़ावा मिला है और अमेरिकी फेडरल रिजर्व तथा अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा अनुकूल रुख की उम्मीद की जा रही है।
अगले कुछ महीनों में आरबीआई से किस तरह के कदमों की उम्मीद है?
आरबीआई ने नकदी समर्थन वापस लेने का कार्यक्रम पेश किया है जिससे अल्पावधि दरें रिवर्स रीपो के अनुकूल होंगी। अतिरिक्त तरलता से तीन महीने की दर को रिवर्स रीपो से नीचे कारोबार करने का बढ़ावा मिला था और इससे अल्पावधि प्रतिफल में अंतर पैदा हुआ है। साथ ही कोविड की दूसरी लहर से हालात सामान्य होने में एक या दो तिमाही तक का समय लग सकता है। संक्षिप्त अवधि में प्रतिफल व्यवस्था में नकदी की वजह से अनुकूल रहेगा। हालांकि दीर्घावधि में प्रतिफल अस्थिर रह सकता है और यह अमेरिकी बॉन्ड की गति, कच्चे तेल की रफ्तार जैसे वैश्विक कारकों और मुद्रास्फीति की गति, दरों आदि पर आरबीआई के नजरिये जैसे घरेलू कारकों पर निर्भर कर सकती है।
बॉन्ड निवेशकों को डेट बाजारों को लेकर कैसा रुख अपनाना चाहिए?
निवेशकों को दीर्घावधि लक्ष्यों के लिए निवेश के अपने संपत्ति आवंटन को बरकरार रखना चाहिए। यदि निवेश अवधि तीन साल से कम हो तो वे लो-ड्यूरेशन और शॉर्ट-टर्म फंडों जैसे फंडों पर विचार कर सकते हैं। 3 महीने से 5 साल का परिदृश्य उचित है और यह निवेशकों के लिए अच्छा अंतर प्रदान करता है। लंबी अवधि के फंड पिछले साल जैसा प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।
क्या आप डेट श्रेणी से और अधिक निकासी की उम्मीद देख रहे हैं?
रिपोर्टों से पता चलता है कि क्रेडिट के मोर्चे पर, बुरा समय बीत चुका है, क्योंकि क्रेडिट रेशियो (अपग्रेड से डाउनग्रेड) इस वित्त वर्ष अक्टूबर और फरवरी के बीच धीमी गति से बढ़ा। हमने उन एक्रूअल-केंद्रित श्रेणियों और फंडों में तेजी दर्ज की, जो अच्छी गुणवत्ता के पोर्टफोलियो (अल्ट्रा-शॉर्ट टर्म, लो ड्यूरेशन, शॉर्ट टर्म, कॉरपोरेट बॉन्ड और बैंकिंग एवं पीएसयू फंड) से जुड़ी थीं। इन श्रेणियों में तेजी बरकरार रह सकती है।